सादर वन्दे
जाते हुए साल को सलाम
आने वाले साल के बारे में
पहले देखें वो क्या लेकर आता है
तदानुरूप स्वागत करेंगे
आज की पहली रचना
हिन्दी आभा भारत से
चुल्लूभर पानी ...रवीन्द्र सिंह यादव
तुम्हारे लिए
कोई
चुल्लूभर पानी
लिए खड़ा है
शर्म हो
तो डूब मरो...
कठोर होना पड़ता है पिता को
ऐसे ही झटक देना होगा विवेक से
और स्वयं में पूर्णतया का अनुभव कर
अपनी ही गरिमा में ठहरना सीखना होगा
मन तो बच्चा है लाख समझाओ
वही उसकी फितरत है
वह बड़ा होना नहीं चाहता !
सीता-हरण की पटकथा ...सुजाता प्रिय
सिर झुका कर चल पड़ी वह
उसकी बताई राह पर।
छोकरा तब मुस्कुराया,
उसकी झुकी निगाह पर।
कुछ दूर जा वह मूक लड़की,
घूम कर पीछे मुड़ी।
नागिन सी फुफकार कर,
उसपर अचानक टूट पड़ी।
प्रहार वह करने लगी,
पकड़ मुट्ठी में कलम।
तुम तरक़्क़ी की सीढ़ियों को
गोल-गोल घुमावदार बनाते हो
उन पर ग़लीचा गुमान का बिछाया
अपेक्षा को उन्नति का जामा
उद्देश्य को लिबास प्रगति का पहनाया
कूड़े के ढ़ेर पर महल मंशा का कैसे सजाओगे?
चिंता भय शोक में डूबा हुआ मानव
तेरे सानिध्य में बनता इंसान है
दुःखों का अंबार बौना नज़र आता है
करती अकाट्य कष्टों का निदान है
हर इरादा मोहब्बत का नाकाम आया है .....पावनी जानिब
सुना है दोस्ती से बड़ा कोई रिश्ता नहीं होता
मेरे दुश्मनों में दोस्तों का ही नाम आया है।
वो ख़त जो हमने लिखे थे उनको बेकरारी में
जवाब में हमारी मौत का फरमान आया है।
दूर हटो तुम सब
यदि नहीं भाता ,
मेरा तरीका तुमको
मत सिखाओ मुझे
ये करो
ये न करो
ऐसे बोलो
ऐसा न बोलो
वहाँ जाओ
यहाँ मत जाओ
....
बस
कल शायद दीदी आएगी
आज घर आ गई है
सादर
शानदार चयन..
ReplyDeleteआभार..
सादर..
दिल से आभार दिव्या जी सांध्य दैनिक पर स्थान देने हेतु।
ReplyDeleteसादर
स्तरीय रचनाओं की प्रस्तुति। बहुत सुंदर और सारगर्भित
ReplyDeleteसुन्दर संयोजन और प्रस्तुतीकरण के लिए दिव्या जी आपको बहुत धन्यावाद..साथ ही मेरी रचना शामिल करने के लिए हृदय से आभार..
Deleteबहुत सुंदर चयन, सभी लिंक एक से बढ़़कर एक । धन्यवाद !!
ReplyDelete