सादर अभिवादन
अभी तक ठीक-ठाक है दिसम्बर
कोई नया लफड़ा नहीं
खुशी है इसी बात की
चलिए रचनाएँ देखते हैं....
तुम्हारे हुस्न से जलतीं हैं ,
कुछ हूरें भी जन्नत में ,
ये रश्क़-ए-माह-ए-कामिल है,
फ़लक जलता अदावत में ।
अभी खोल में ढका बीज है
अभी बंद है उसकी दुनिया,
उर्वर कोमल माटी पाकर
इक दिन सुंदर वृक्ष बनेगा !
क्षुधा तुम्हारी है असीम
कभी समाप्त नहीं होती
है ऐसा क्या उसमें विशेष
जिसे देख कर तृप्त नहीं होते |
इस प्यास का कोई तो उपचार होगा
अनेकों बार हम, ग़लत नहीं होते,
हमें जो सही, साबित कर सके,
बस, वो शब्द नहीं होते,
इसी बिंदु पर आ कर रुक जाती है ज़िन्दगी,
कैसे समझाएं तुम्हें,
हर इम्तहान के नतीजे,
शत प्रतिशत नहीं होते।
देखो ! नील मणि-सा नीला आसमान
सफ़ेद लिबास में इस पर दौड़ते अबोध छौने
तुम प्रेम के सागर में आँखें मूँद डूब जाओ
देखो! अपने पैरों से ध्यान हटाओ तुम
मैंने कहा न ध्यान हटाओ
अभी-अभी टूटी हैं बेड़ियाँ पैरों से
स्याही से लिखे फ़रमान की बातें न कहो तुम।
...
बस
कल आएगी सखी श्वेता
सादर
बस
कल आएगी सखी श्वेता
सादर
सुंदर संकलन।
ReplyDeleteसुन्दर संकलन व प्रस्तुति, मुझे जगह देने हेतु हार्दिक आभार - - नमन सह।
ReplyDeleteसराहनीय संकलन
ReplyDeleteसाधुवाद
उम्दा संकलन आज का |मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद |
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर रचना |
ReplyDeleteपठनीय रचनाओं का सुंदर संयोजन, आभार !
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