Saturday, July 31, 2021

716 ...तुम उस चाँद की तरह हो जो हर रोज़ अपनी जगह बदलता है

सादर अभिवादन
आज की दौड़ में हैं
आदरणीय सखी रिंकी राऊत  
दिल्ली वाली, 2013 से अब तक लिख रही हैं
58338 पृष्ठ दृष्य और 58 ही फॉलोव्हर हैं
दो काव्य संकलन है उड़ान और गुलिस्तां
आपने अपने ब्लॉग में उच्चस्तरीय रचनाकारों की रचनाएँ भी साझा की हैं 
सबसे पहले ले रही हूँ 2013 की एक रचना

सधी कलम है

बंधन में बंधी मैं
बंधन,
बेचेनी बढता है ,
साथ होना अच्छा तो है, पर
मेरे तन्हाई की साधना में कही
विघ्न सा पड़ जाता है

2014 मे 19 रचनाएँ हैं
बेटी शब्द मेरी पहली पहचान
बहन, कहलाना दूसरी पहचान बनी
पत्नी,बहु,माँ.भाभी अदि कई
नामों से मैं पहचानी जाती हूँ

वो खाली पेट भटक रहा
बंजर पड़ी ज़मीन को
तरही नज़र से ताक रहा
रोज़ सोचता गाँव छोड़े
शहर की तरफ खुद को मोड
वो देश का अनंदाता है
भूखे पेट रोज़ सो जाता है


जब कभी भी मैंनें आँखें बंद कर
सब के लिए दुआ मांगी
ईश्वर और मैं साथ थे

किसी के विश्वास पर उंगली नहीं उठाई
हर किसी की मान्यताओं का सम्मान किया
धर्म के परदे के पीछे छिपे
इन्सान को पहचाना
तब इश्वर और मैं साथ थे


शहर की सड़क नाप डाला गांव तक।
जो साथ चले थे नहीं पहुँचे घर आज तक।
कुछ सड़क पर ढ़ेर हुए, कुछ पटरी पर बिखर गए।
क्या तू भूल गया, पैर में पड़े छाले।
तेरे लब पर कोई सवाल क्यों नहीं उठता ?


तुम उस चाँद की तरह हो
जो हर रोज़ अपनी जगह बदलता है
कभी छुपता है,कभी बहुत करीब होता है।
पर हमेश दूर,मेरी पहुँच से दूर होता है
और ये ख्याल मुझे मज़बूर करता है
छू कर देखू तुम्हे।

...
आपकी अदालत में प्रस्तुत है आदरणीय रिंकी राऊत

सादर.. 

Friday, July 30, 2021

715 ..शरीर की ठण्ड तो सहन हो जाती है बाबूजी, मगर पेट की आग बर्दाश्त नहीं होती

सादर अभिवादन
मैराथन प्रस्तुति का शानदार
बारहवाँ अंक

“ओह, तो इसी से परेशान हो कर भाग गया होगा वह।” -मैंने ठहाका लगाया, फिर बात पूरी की- “तुम भी ना, अजीब आदमी हो! भले मानस, कुत्ते की पूँछ कभी सीधी हो सकती है क्या?”

 “क्यों नहीं हो सकती? मैं एक नया कुत्ता लाऊँगा और फिर कोशिश करूँगा। फिर भी सफल नहीं हुआ तो उसके कोई इंजेक्शन-विन्जेक्शन लगवाउँगा। कहते हैं न, ‘कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती’।”

 अब भला क्या कहता मैं? बस, उस महान दार्शनिक का मुँह ताकता रहा। सोचने लगा, ‘अगर यह सम्भव हो पाता तो दुनिया की कई समस्याएं आसानी से नहीं सुलझ जातीं?’


खोलकर निज अवगुंठन जब  कलियाँ लेती अंगड़ाई, 
झलके कपोलों पर जब यौवन की मादक अरुणाई,
करती है जब मधुप का शीश झुका कर अभिनंदन,
पुष्पों के मधु-सौरभ  से महक उठती  बगिया सारी।




बची हुई सब्ज़ी ख़त्म की और हाथ धो कर उठ खड़ा हुआ। सोच रहा हूँ कि श्रीमती जी मेरी  व्यस्तता और ज़िम्मेदारियों को क्यों नहीं समझतीं। एक तरफ साहित्य की सेवा में कुछ अर्पण करना तो दूसरी तरफ फेसबुक और व्हाट्सएप्प से सम्बंधित ज़िम्मेदारियाँ निभाना। अकेली जान, आखिर क्या-क्या करूँ मैं? वह जानती हैं कि सुबह से रात तक हर समय मोबाइल और कंप्यूटर में सिर खपाता रहता हूँ, फिर भी उनका मन नहीं पसीजता।



भैया जी, हमें कल पड़ोसी के घर में देख कर भी तुमने शोर नहीं मचाया, इसके लिए शुक्रिया! अगर तुम चिल्ला पड़ते तो मोहल्ले वाले शायद हमें पकड़ लेते। वैसे तुम्हारी ख़ामोशी का कोई ख़ास फायदा हमें नहीं मिला। कम्बख्त का पूरा घर छान मारा, मगर कुछ मिला नहीं। साला या तो कड़का है तुम्हारा पड़ोसी या शातिर कि घर में कुछ भी नहीं रखता। उसके कमरे की खिड़की की चिटखनी तो आसानी से टूट गई, लेकिन उसकी आलमारी को तोड़ने में हमें पसीने आ गये। इस सबके बाद भी हम उसके घर से कुल सात सौ बीस रुपये की नकदी ही ले जा सके। खैर, बदनसीबी हमारी!


विस्मय और क्षोभ भरी निगाहों से विशाखा की ओर देख रहे कमलेश व उनकी बेटी ने अर्दली की मदद से विशाखा को सम्हाला। वकील विजेंद्र सिंह भी उनके करीब आ गये।

जज साहब ने अभिजीत से पूछा- "अब भी तुम्हें अपने बचाव में कुछ कहना है?"

अभिजीत, जो अब तक विस्फारित नज़रों से अपनी माँ की ओर देखते हुए उनके द्वारा कही जा रही हर बात सुन रहा था, फीकी हँसी के साथ बोला- "नहीं जज साहब, 'मदर इण्डिया' ने जो कुछ कह दिया है, उसके बाद मुझे कोई सफाई नहीं देनी है। बस इतना कहना चाहता हूँ कि मेरा इरादा सुलेखा की हत्या करने का कतई नहीं था।"


उसके पास जा कर मैं क्रोध में बरसा- "तुम लोगों पर क्या दया करना? मैंने सुबह तुम्हें स्वेटर दिया और आज ही तुम उसे बेच आये।"
"शरीर की ठण्ड तो सहन हो जाती है बाबूजी, मगर पेट की आग बर्दाश्त नहीं होती। भीख नहीं मिलने से मुझे दो दिन से खाना नसीब नहीं हुआ था। मैंने पैसे मांगे थे और आपने स्वेटर दे दिया। बहुत भूख लग रही थी तो दोपहर में आपका दिया स्वेटर बेच कर अपना पेट भरा।... और करता भी क्या बाबूजी?"

Thursday, July 29, 2021

714 ..स्याही भी यही पूछती है मुझसे, क्यूँ लिखती हो उसका नाम

सादर अभिवादन
आज एक कोर-कट(नया) ब्लॉग
चालू तो है 2013 से और अब तक
चल रहा है.. विदित ऐसा होता कि 
रचनाकार सिर्फ और सिर्फ
अपनी संतुष्टि के लिए ही लिखती है
डॉ. वन्दना शर्मा..
आप हिन्दी का एक और अंग्रेजी के तीन ब्लॉग लिखती हैं 
अपने बारे में कुछ ऐसा भाव लिखी है
बिखरे हुए मोती, कुछ बिखरे हुए पल  

रचनाएँ देखें ...

उम्मीद से सजी है दुनिया मेरी ,
तुम्हारी ही कल्पनाओं से,
नमन है तुम्हें मेरा, इन कविताओं से l


देखूं जब बादलों को उड़ते ,
कुछ याद आता है।
तुम्हारा दर्द और कराहना ,
कभी रोना और चहचहाना ,
उम्मीद है स्मरण रखोगे बिताये पल,
जब भी तुम इस और आना।
यूँ ही बस कुछ याद आता  है............


अडिग, अखंड, पहाड़ों की छवि मन में उकेरित है ,
न जाने कितने मेरे स्वपन इन पहाड़ों से प्रेरित  हैं।

पहाड़ी धुन का राग  मन गुनगुनाता है ,
पहाड़ों की सुंदरता में ही जीवन समाता  है।


हर राह , हर मोड़ पर तुम्हें पाने की,
आदत हो गयी है।

कुछ लिखूं या न लिखूं ,
बस तुम्हारे बारे में लिखने की,
आदत हो गयी है।


अब पन्नों  की एक किताब,
फड़फड़ा  रही है,
रुआंसे कोने में |

स्याही भी यही पूछती है मुझसे,
क्यूँ लिखती हो उसका नाम,
जिससे  कभी ना जुड़ा तुम्हारा नाम?


ज्यों मोती गिरते झर-झर,
वैसे हैं बूंदों के स्वर।

एक सुन्दर स्वपन जैसा,
बूंदों का आवरण ऐसा।


अचानक यूँ चलते चलते इन सूनी राहों पर,
लगा, कि शायद तुम मिल जाओ,
न कोई सवाल, न कोई जवाब,
बस यूँ ही मुझे तुम मिल जाओ ।


Wednesday, July 28, 2021

713 ..भावनाओं का अद्धभुत संगम है , अमृत की रसधार है।

सादर अभिवादन

समंदर को ढूँढती है ये नदी जाने क्यूँ,
पानी को पानी की ये अजीब प्यास है!!

आज-कल मेरी हालत भी नदी जैसी ही है
हर दिन नए ब्लाग तलाशती रहती हूँ

आज लाई हूँ "उंचाइयाँ"
ऋतु आसूजा
ऋषिकेश , उत्तराखंड निवासी
2013 से आज तक लिखी चली आ रही है
जीते तो सभी है , पर जीवन वह सफल जो किसी के काम आ सके । जीवन का कोई मकसद होना जरूरी था ।परिस्थितियों और अपनी सीमाओं के अंदर रहते हुए ,कुछ करना था जो मेरे और मेरे समाज के लिए हितकर हो । साहित्य के प्रति रुचि होने के कारण ,परमात्मा की प्रेरणा से लिखना शुरू किया ,कुछ लेख ,समाचार पत्रों में भी छपे । मेरे एक मित्र ने मेरे लिखने के शौंक को देखकर ,इंटरनेट पर मेरा ब्लॉग बना दिया ,और कहा अब इस पर लिखो ,मेरे लिखने के शौक को तो मानों पंख लग गए

इनके ब्लॉग मे फॉलोव्हर अलबत्ता कम हैं पर
रचनाएँ सब सब समझाईश देती हुई ही है

पहली रचना...
खूबसूरत परिभाषा..
बता रही हैं कहानियों के माध्यम से

जिनके जीवन में उम्मीदों का संग है,
उन्हें मुश्किलों से लड़ जाना पसंद है।
उम्मीदें ही तो भरती जीवन में नया रंग हैं।
जीवन के केनवास  में सुन्दर  रंग भरना


फरिश्तों के जहां से ,
वात्सल्य कि सुनहरी चुनरियाँ ओढे ,
सुन्दर, सजीली ,मीठी ,रसीली ,
दिव्य आलौकिक प्रेम से प्रकाशित ममता की देवी  'माँ '
परस्पर प्रेम ज्ञान के दीपक जला ती रहती।


पर एक बार की बात है, खेलते खेलते हमारी बॉल पड़ोसन आन्टी के शीशे पर जा लगी और शीशा टूट गया ,बस क्या था हम दोनों सहेलियाँ अपने-अपने घरों में यूँ जा बैठी जैसे हम तो कई घंटों से अपनी जगह से हिली ही ना हों ।


जग मुझसे ही जलने लगा ,
मैं तो चिराग था ,फितरत से
मैं जल रहा था ,जग रोशन हो रहा था
कोई मुझको देख कर जलने लगा
स्वयं को ही जलाने लगा
इसमें मेरा क्या कसूर"


वरदान बनकर फलित
होता है नियति से मिला
जीवन का अभिशाप
समाहित होता है श्राप के
मध्य एक संताप स्वयं
के कर्मों का हिसाब।


उद्देश्य मेरा निस्वार्थ प्रेम का पौधारोपण
अपनत्व का गुण मेरे स्वभाव में
शायद इसी लिए नहीं रहता अभाव में
सर्वप्रथम खड़ा हूं पंक्ति में
समाज हित की पौध लिए
...
आज बस
कल के लिए नया कुछ तलाशती हूँ
सादर


Tuesday, July 27, 2021

712 ..सूर्य चमक कर देता खुशहाली का सन्देश, हवा महककर बोली; "मैं तो घूमी हर देश"

सादर अभिवादन..
जा रही है..
पकड़िए उसे
शान्त सी रही
रोक लीजिए इस जुलाई को
अगस्त का क्या भरोसा...
कोरोना से भय नहीं अब....पर
काफी से अधिक तैय्यारियाँ की है
आतंकवादियों नें...
कब कहाँ किस तरफ और कैसे
धाँय-धुड़ुम हो जाए पता नहीं
सब शुभ की अपेक्षा....
.....
आज फिर एक ही ब्लाग से...
नई सोच..
संवेदनशील हूँ,
मनमंथन से चुने भावों को
कलमबद्ध करने का प्रयास करती हूँ।
सुधा देवरानी... ज़िरकापुर,पंजाब की निवासिनी
2016 से ब्लॉग लिखना शुरु किया और अब तक जारी है
कुल पेज दृश्य 238 278 और 81 फॉलोव्हर के साथ प्रस्तुत है उनकी रचनाएँ

हरी - भरी धरती नीले अम्बर की छाँव
प्रकृति की शोभा बढाते ये गाँव।
सूर्य चमक कर देता खुशहाली का सन्देश,
हवा महककर बोली; "मैं तो घूमी हर देश"।।


बचपन में गिर जाता जमीं पर,
दौड़ी- दौड़ी आती थी।
गले मुझे लगाकर माँ तुम,
प्यार से यों सहलाती थी।
चोट को मेरी चूम चूम कर ,
इतना लाड़ लड़ाती थी।
और जमीं को डाँट-पीटकर
सबक सही सिखाती थी।


झगड़ते थे बचपन मे भी,
खिलौने भी छीन लेते थे एक-दूसरे के....
क्योंकि खिलौने लेने तो पास आयेगा दूसरा,
हाँ! "पास आयेगा" ये भाव था प्यार/अपनेपन का....
उन्ही प्यार के भावों में नफरत को भरते देखा है।
हाँ ! मैने कुछ रिश्तों को टूटते -बिखरते देखा है।


आभूषण रूपी बेड़ियाँ पहनकर...
अपमान, प्रताड़ना का दण्ड,
सहना नियति मान लिया...
अबला बनकर निर्भर रहकर,
जीना है यह जान लिया....
सदियों से हो रहा ये शोषण,
अब विनाश तक पहुँच गया ।
"नर-पिशाच" का फैला तोरण,
पूरे समाज तक पहुँच गया ।।


बेबसी सी कैसी छाई मुझमें
क्यों हर सुख-दुख देखूँ तुममें.....

कब चाहा ऐसे बन जाऊँ,
जजबाती फिर कहलाऊँ।
प्रेम-दीवानी सी बनकर......
फिर विरह-व्यथा में पछताऊँ ।


सूखी थी जब नदी गर्मी में
तब कचड़ा फैंके थे नदी में....?
रास्ता जब नदी का रोका......
पानी ने घर आकर टोका !

मौसम को बुरा कहते अब सब,
सावन को "निरा" कहते हैं सब ।
मत भूलो अपनी ही करनी है ,
फिर ये सब खुद ही तो भरनी है......


ये सब तो थी अनछुई रचनाएँ... अब कुछ और पढ़िए और

एक पत्ता गिरा जब किसी डाल से
नयी कोंपल निकल कर वहाँ खिल गयी

तुम गये जो घरोंदा ही निज त्याग कर
त्यागने की तुम्हें फिर वजह मिल गयी


कभी उसका भी वक्त आयेगा ?
कभी वह भी कुछ कह पायेगी ?
सहमत हो जो तुम चुप सुनते
मन हल्का वह कर पायेगी ?

हरदम तुम ही क्यों रूठे रहते
हर कमी उसी की होती क्यूँ....?
घर आँगन के हर कोने की
खामी उसकी ही होती क्यूँ....?
...
और अंत में
करत करत अभ्यास ते, जड़मति होत सुजान
रसरी आवत -जात ते सिल पर पड़े निशान

सादर

Monday, July 26, 2021

711 ..आप लोग को बुलाते हैं, त आपको भी बुलाया जाता है

सादर अभिवादन
परसों से सोच रही थी कि सावन के दूसरे दिन
क्या दिया जाए..
याद आई सदा दीदी, चर्चाकारा थी और अभी भी है
पर मोबाइल उन्हें रास नहीं आता...
मेरे निवेदन पर उन्होंने लिंक तो दिए सो
आज का अंक उनके नाम...सीमा सिंघल "सदा"
आभार उनको......
आज का अंक सदा के नाम...

बहुत आहिस्ता से जाना उनके करीब
चुपचाप बैठ जाना वहीं, बिना कुछ कहे
या ले लेना उनके हाथ का काम ताकि
औरतें सपने देखती रह सकें
और उनके सपनों की खुशबू से महक उठे यह संसार.


ई बात भले सोनी-सब टीवी का टैगलाइन है, बाकी बात एकदम सच है. परब-त्यौहार, दुख तकलीफ, सादी-बिआह, छट्ठी-मुँड़ना ई सब सामाजिक अबसर होता है, जब सबलोग एक जगह एकट्ठा होता है. घर-परिबार, हित-नाता, भाई-भतीजा, नैहर-ससुराल... जब सब लोग मिलता है, मिलकर आसीर्बाद देता है, तब जाकर बुझाता है कि अनुस्ठान पूरा हुआ. सायद एही से लोगबाग कह गए हैं कि खुसी बाँटने से बढ़ता है. आप लोग को बुलाते हैं, त आपको भी बुलाया जाता है अऊर एही परम्परा चलता रहता है. कोई छूट न जाए ई बात का बहुत ख्याल रखा जाता है. केतना रिस्तेदारी अइसा होता है जहाँ न्यौता देने के लिये खुद जाना पड़ता है.



बागवानी  करने और उसमें भी बागवानी शुरू करने वाले मित्रों को अब इसके लिए तत्पर हो जाना चाहिए। बागवानी के लिए वर्ष के सबसे उपयुक्त मौसम में से एक यानि बरसात और आर्द्र वातावरण बस सामने ही है।  इस मौसम में तो बेजान पेड़ पौधों में भी नवजीवन अंकुरित हो उठता है।  


महिलाओं के मन जीवन से जुड़े कुछ लेख



तीन तोते
मेरी समझ में यह नहीं आता कि क्यों मनुष्य सभी को पकड़ कर अपने जैसा बनाना चाहते हैं? सभी को स्वतंत्र होकर, अपने दिमाग से जीने/सोचने क्यों नहीं देते? भोजन के बदले पशु, पक्षी तो क्या, अपने बच्चों को भी, अपना गुलाम बनाना चाहते हैं? मुझे तो शक होता है... क्या धरती में, एक भी मनुष्य, मानसिक रूप से स्वतंत्र है?



ढूंढ रहा उपचार आदमी -सतीश सक्सेना
आज पहले दिन काफी दिन से खड़ी साईकिल राइडिंग के लिए उसका हेलमेट , हैंड ग्लव्स , शार्ट , रेफ्लेक्टेड जर्सी , फ़्लैश लाइट, वाटर बोतल , जीपीएस वाच , strava अप्प , स्पोर्ट्स शू , आई कार्ड , कुछ रूपये , गॉगल्स , हेड बैंड , स्माल टॉवल , एक्स्ट्रा टायर , टूल्स , एयर पंप , आदि संभाल कर रात को ही तैयार कर इकठ्ठा रख दिए थे ! सुबह सुबह ५ बजे वाच में से स्पोर्ट्स अप्प स्ट्रावा में साइकिल राइड ऑन कर चल दिया दिल्ली की और डीएनडी से आश्रम , इंडिया गेट , प्रगति मैदान , निजामुद्दीन ब्रिज, मयूर विहार होते हुए लगभग 7 बजे घर वापस पंहुचा तो पूरा शरीर पसीने के साथ आनंदमय था कि आज बहुत दिन बाद साइकिल से की गयी यात्रा 30.69 km को 17 km प्रति घंटा की एवरेज स्पीड से तय करने में 1:52 का समय लगा ! 
.....
इस सावन में सविनय शिव जी से प्रार्थना है
कि सदा दीदी को मोबाइल से लिंक लगाने की विद्या प्रदान करे
अब कल की कल
कुछ नयी सोचती हूँ
सादर


Sunday, July 25, 2021

710 ...कुछ शब्द और एक आवाज़ .....बस यही परिचय है

सादर अभिवादन
श्रावण बदी 1
"बोलबम" के उदघोष के साथ
मीरा चानू ने भारत को पहला रजत पदक दिलवाया
वेटलिफ्टिंग में मणिपुर की मीरा ने  "डिड नाट फिनिश" को सही साबित कर दिया

आज की रचनाएं अनुपमा दीदी की अनुपम रचनाओं के साथ
आदरणीय दीदी अपने बारे में स्वयं बता रही है
महाविद्यालय में पढ़ाया .आकाशवाणी में गाया और फिर सब सहर्ष छोड़ गृहस्थ जीवन में लीन हो गई .अभी भी लीन हूँ किन्तु कुछ मन में रह गया था जो उदगार पाना चाहता था .अब जब से लिखने लगी हूँ पुनः गाने लगी हूँ ...मन प्रसन्न रहता है .परिवार ...कुछ शब्द और एक आवाज़ .....बस यही परिचय है ....आप सभी मित्रों से स्नेह की अभिलाषा है ...
....
आज की तलाश....

जीवन है तो चलना है -
जग चार दिनों का मेला है -
इक रोज़ यहाँ ,इक रोज़ वहां -
हाँ ----ये ही रैन -बसेरा है .....!!

आँख से कहती हुई ,
बन बन में भटकती हुई
तेरे दीदार की हर पल में बसी
खुशनुमा ख़्वाहिश हूँ मैं !!


बिन सतगुरु आपनो नहीं कोई ...
आपनो नहीं कोई ...
जो यह राह बतावे ...
कहत कबीरा सुनो भाई साधो ..
सपने में प्रीतम आवै ...
तपन यह जिया की बुझावे ...
नैहरवा हमका न भावे



बुनकर सा हृदय आज भी
बुन लेता है
अभिरामिक शब्दों को
आमंजु अभिधा में ऐसे ,
जैसे तुम्हारी कविता
मेरे हृदय  में स्थापित होती है ,
अनुश्रुति सी ,अपने
अथक प्रयत्न के उपरान्त !!
हाँ ..... आज भी ..!!


कह तो लूँ .....
पर कोयल की भांति कहने का ...
अपना ही सुख है ...

बह तो लूँ ......
पर नदिया की भांति बहने का .....
अपना ही सुख है ...


अदृश्य होकर भी दृष्टोगोचर
लुकता नहीं है ,छिपता नहीं है ,
झुकता नहीं है प्रेम
गौरव से मस्तक है ऊँचा
ईश्वर के समरूप है सच्चा
निर्बल को भी बल देता है प्रेम ...............!!




कुछ दूर मुझसे यूँ  मेरा क़िरदार जा बसा ,
वही खोज तरन्नुम की जहाँ खो गया हूँ मैं

वाबस्ता नहीं  मुझसे ये दीदारे हुनर भी ,
इक बूँद में सागर का जिगर बांचता हूँ मैं
.....
आज बस यहीं तक
कल से तलाशी अभियान
में परिवर्तन, थोड़ा मुश्किल जरूर है
पर असंभव नहीं
सादर


Saturday, July 24, 2021

709 ..."लगता है गंगा मैया अपने सामने ही इनसे गाँठ भी जुड़वा लेंगी."

सादर अभिवादन
विश्वमोहन कुमार

जोकहा (बेतिया), ज़िला - पश्चिमी चंपारण , बिहार, वर्तमान निवास दिल्ली
पृष्ठदृष्य -151,827, कुल पोस्ट -188, फॉलोव्हर - 123

बेहद विलक्षण, बहुत विद्वान, कुशाग्र बुद्धि, बहुमुखी प्रतिभा के धनी अति विनम्र स्वभाव के साथ संवेदनशील बहुआयामी व्यक्तित्व विश्वमोहन जी स्वयं को कवि या साहित्यकार नहीं मानते हैं। 
 वर्तमान में प्रसार भारती के सिविल निर्माण स्कंद में अधिशासी अभियंता विश्वमोहन जी की 
रचनाएँ...


इंसानियत! चिचियाती चीत्कार।
लहू में सने सलोने
सपने स्याह !
उजड़ी कोखों की कातर कराह,
इंशा अल्लाह!
तेरी इस रहनुमाई को धिक्कार!

बनते कृष्ण, ये द्वापर के,
राम बने, त्रेता के।
साहित्य कला इतिहास साधक,
याचक अनुचर नेता के।
गांधीगिरी! अब गांधीबाजी!
बस शेष है, गांधी गाली।
उठ न बापू!जमुना तट पर,
क्या करता रखवाली?


थी अर्थनीति जब भरमाई,
ली कौटिल्य ने अंगड़ाई ।

पञ्च शतक सह सहस्त्र एक
अब रहे खेत, लकुटिया टेक।

जहां राजनीति का कीड़ा है,
बस वहीं भयंकर पीड़ा है ।


पर घर की आबरू,
भाई, सब पर भारी.
या लूटना ललना को,
राम-रहीम की लाचारी!

मेरा क्रांतिकारी कद!
कसम से कसमसाया.
पर पुचकार के पूछा,
तुम कौन! किसने बुलाया?


नवनिहारिका नशा नयन मद,
प्रेम अगन सघन वन दहके .
सुभग सुहागन अवनि अम्बर,
बिहँस विवश बस विश्व भी बहके.

क्रीड़ा-कंदर्प कण-कण-प्रतिकम्पन,
उदान  अपान  समान .
व्यान परम पुरुष प्रकृति भाषे,
ब्रह्म योग  चिर प्राण .


बगल का ओहार उठाकर एक नन्ही कली बहुरिया के शिविर में समाई और कुंवरजी के साथ अपनी बाल क्रीडा में मशगुल हो गयी. दोनों का खेल और आपसी संवाद बहुरिया का मन मोहे जा रहा था. उस मासूम बालिका को खोजते खोजते उसकी माँ भी इस बीच पहुँच गयी. लिहाज़ वश मुंह पर घूँघट ताने माँ ने बहुरिया से माफ़ी मांगी. बहुरिया ने उसे बिठाया, बताशा खिलाया और पानी पिलाया. "लगता है गंगा मैया अपने सामने ही इनसे गाँठ भी जुड़वा लेंगी."  उस बाल जोड़े की मोहक क्रीड़ा भंगिमा को निहारती पुलकित बहुरिया ने किलकारी मारी.
'इस गरीब के ऐसे भाग कहाँ, मालकिन!'
"गंगा मैया के इस पूरनमासी के परसाद को ऐसे कैसे बिग देंगे. हम जबान देते हैं कि इस जोड़ी को समय आने पर हम बियाह के गाँठ में बाँध देंगे." बहुरिया ने जबान दे दिया.
....
आज बस
कल कौन  अंदाजा लगाइए
सादर

Friday, July 23, 2021

708 ,,,आजकल लोग कई जगह नेकी की दीवार बना रहे हैं ...आपकी सहेली

सादर अभिवादन
ज्योति देहलीवाल अपरिचित नहीं है ब्लॉगजगत के लिए
तुमसर रोड, महाराष्ट्र, निवासी ज्योति बहन
अद्यतन जानकारी 84 फॉलोव्हर, 560 पोस्ट्स  और पृष्ठ दृश्य है 47, 66, 174
2014 से ब्लॉग लिख रही है अपना सखियों के लिए और पिछले दो वर्षों से ये पुरुषों द्वारा भी पढ़ी जा रही है वज़ह सर्वविदित है कोरोनाकाल में रसोई अधिकतर पुरुषों के हाथ में है ..वे भी सीख रहे हैं और नए प्रयोग भी कर रहे हैं

मैं भी खाई हूँ पनीर बटर मसाला और पनीर भुर्जी इनका बनाया हुआ
पूरा काजू-बादाम झोंक दिया 

हम अपनी कन्याओं को इस प्रकार शिक्षा और संस्कारों से विभूषित करे कि जिससे वे दृष्टों से अपने सतीत्व और सम्मान की रक्षा कर सके। निश्चय ही फैशन और अंगों को खुला रखने वाली वेषभूषा व्यभिचार की प्रवृत्ति को बढ़ावा देती है।


सूखे हुए खजूर को ही खारक ( छुआरा ) कहते है। खारक रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है। खारक में कार्बोहिड्रेटस, प्रोटीन, कैल्सियम, पौटेशियम, मैग्नेशियम, फॉस्फरस, लौह आदि प्रचुर मात्र में पाएं जाते है। आज मैं आपको खारक चूर्ण बनाने की विधि बताउंगी।


मन बहलाव व समाज सुधार का बन्दोबस्त भी है यहां पर
जमाना बहुत खराब आ गया है, जनाब! आज कोई भी किसी की नहीं सुनता! बेटा, बाप की नहीं सुनता और बहू, सास की नहीं सुनती!! भाई, भाई पर ही मुकदमा करता है! चोरी, डकैती, बलात्कार ये घटनाएं तो आम हो गई है! बहन-बेटियों का तो घर से निकलना ही दुश्वर हो गया है! जमाना बहुत खराब आ गया है!!
ये सब जुमलें हम आए दिन सुनते रहते है। लेकिन क्या वास्तव में, आज का ही जमाना खराब है? आज के ही लोग खराब है? पहले के जमाने के सभी लोग बिल्कुल अच्छे थे? आइए, हम थोड़ा इस बात पर गौर फरमाते है।


नोटबंदी के दौरान हो रहीं अच्छाइयां
नोटबंदी से पूरा देश कतार में लगा हुआ है। आम जनता को कई मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे वक्त में कुछ छोटे-छोटे आम इंसान महान कार्य कर रहे हैं। पटना की रहने वाली रेखा मोदी एवं उनकी बेटी ने घर में रखें चेंज के पांच हजार रुपये इकट्ठा किए। बैंक जाकर 10-10 हजार रुपये अपने-अपने खाते से निकाले। चार-चार हजार रुपये भी बदलवाए। फिर सोसायटी के वॉट्सएप ग्रुप पर मैसेज डाला कि वे रुपए चेंज करने जा रही हैं। इसके बाद सोसायटी के तीन अन्य लोग भी एक्सचेंज करवाए हुए रुपयों के साथ उनकी मदद के लिए पहुंचे। इस तरह उनके पास 50 हजार रुपए चेंज करने के लिए हो गए। इन लोगों ने पर्थला मार्केट के रेहड़ी पटरी वालों को और झुग्गियों में रहने वालों को उनके 500 और 1000 रुपए के नोट के बदले 100-100 के नोट दिए। ऐसा कार्य सिर्फ रेखा मोदी ने ही नहीं किया तो और भी कई जगहों से ऐसी ख़बरें आई है।


फिर से खाने खजाने की ओर
आपको अमरूद (जाम) की चटनी पिसते वक्त ये दिक्कत होती हैं कि यह चटनी बराबर पिसी नहीं जाती और कुछ डल्ले ( अमरूद की छोटी-छोटी फ़ाके) रह जाते हैं? यदि हां तो आइए, हम चटनी बनाने के लिए कुछ अलग तरीका अपनाते हैं।

नमक पारे कई तरह के बनते हैं। क्या आपने पालक के नमक पारे बनाये हैं? यदि नहीं तो अब ज़रुर बनाइए क्योंकि ये स्वादिष्ट होने के साथ-साथ पौष्टिक भी हैं। तो आइए, बनाते हैं पालक के कुरकुरे नमकपारे

और अंत में...
किसी एक कक्षा में सौ बच्चे हैं। उन सौ बच्चों में शिक्षक से सवाल सिर्फ़ दो-चार बच्चे ही पूछते हैं...क्यों? पाठ्यक्रम एक हैं...पढ़ाने वाले शिक्षक एक हैं...तो फ़िर सिर्फ़ दो-चार बच्चे ही सवाल क्यों पूछते हैं? कहा जाता हैं कि सवाल वो ही लोग करते हैं जिनमें सोचने-समझने की शक्ति हैं। सौ बच्चों में से सोचने समझने की शक्ति जिन दो-चार बच्चों में होगी, वो ही बच्चे सवाल पूछेंगे। मतलब ये कि किसी भी बात पर सवाल करने का संबंध सीधे-सीधे सवाल करने वाले की सोचने-समझने की शक्ति पर, उसकी योग्यता पर और उसकी शिक्षा पर निर्भर हैं।
....
आज बस
बड़ी मुश्किल से निकल पाई हूँ
सादर..