अगस्त की विदाई...
आगमन नौवें महीनें का..
अब 100% उम्मीद है की
2020 आएगा ही....
सादर अभिवादन...
आइए रचनाओं डालें एक नज़र...
100 वाँ जन्मदिन मुबारक हो माझा ...डॉ. जेन्नी शबनम
जन्मदिन मुबारक हो माझा!
सौ साल की हो गई तुम, मेरी माझा।
गर्म चाय की दो प्याली लिए हुए
इमा अपनी माझा को जन्मदिन की बधाई दे रहे हैं।
माझा कुछ नहीं कहती बस मुस्कुरा देती है।
इमा-माझा का प्यार शब्दों का मोहताज़ कभी रहा ही नहीं।
चाय धीरे-धीरे ठंडी हो रही है।
माझा अपने कमरे में नज़्म लिख रही है
टिकुली की माला... नूपुर शांडिल्य
पीला गेंदा, नारंगी गेंदा,
मोगरा, रजनीगंधा, हरसिंगार,
बेला, जूही और ये गुलाब !
टिकुली फूली नहीं समा रही थी !
सात साल की इस नन्ही परी के हाथों में
फूलों से भरी टोकरी नहीं,
फूलों की घाटी ही सिमट आई थी !
क्या .............ज्योति सिंह
क्या कहा जाये
क्या सुना जाये
इस क्या से आगे
यहाँ कैसे बढ़ा जाये
समझ आता नहीं ,
क्योंकि ये दुनिया अब
पहले जैसे सीधी रही नहीं ,
यह विश्राम की वेला है .... श्रीमति मुकुल सिन्हा
दिन ढ़ल चुका
सांझ घिर आई
शरीर थक चुका
अब यह विश्राम की वेला है
बंधनों में जकड़े चित्त को
अब मुक्ति चाहिए
चिर निद्रा में जाने से पहले
कर लूं खुद को थोड़ा निर्भार
दिल पर कोई बोझ न रहे
चलते-चलते चलें चलें
उफनती
नदी में
उछलती
नावों में
अफीम ले के
थोड़ी सी
हो सके
तो
सो जायें
खबर
मान लें
बेकार सी
फिसली हुई
‘उलूक’
के
झोले के छेदों से
जी डी पी
पी पी पी
जैसी
अफवाहों को
सपने देखें
अब बस..
चल चलें कुछ काम करें
सादर
100 वाँ जन्मदिन मुबारक हो माझा ...डॉ. जेन्नी शबनम
जन्मदिन मुबारक हो माझा!
सौ साल की हो गई तुम, मेरी माझा।
गर्म चाय की दो प्याली लिए हुए
इमा अपनी माझा को जन्मदिन की बधाई दे रहे हैं।
माझा कुछ नहीं कहती बस मुस्कुरा देती है।
इमा-माझा का प्यार शब्दों का मोहताज़ कभी रहा ही नहीं।
चाय धीरे-धीरे ठंडी हो रही है।
माझा अपने कमरे में नज़्म लिख रही है
टिकुली की माला... नूपुर शांडिल्य
पीला गेंदा, नारंगी गेंदा,
मोगरा, रजनीगंधा, हरसिंगार,
बेला, जूही और ये गुलाब !
टिकुली फूली नहीं समा रही थी !
सात साल की इस नन्ही परी के हाथों में
फूलों से भरी टोकरी नहीं,
फूलों की घाटी ही सिमट आई थी !
क्या .............ज्योति सिंह
क्या कहा जाये
क्या सुना जाये
इस क्या से आगे
यहाँ कैसे बढ़ा जाये
समझ आता नहीं ,
क्योंकि ये दुनिया अब
पहले जैसे सीधी रही नहीं ,
यह विश्राम की वेला है .... श्रीमति मुकुल सिन्हा
दिन ढ़ल चुका
सांझ घिर आई
शरीर थक चुका
अब यह विश्राम की वेला है
बंधनों में जकड़े चित्त को
अब मुक्ति चाहिए
चिर निद्रा में जाने से पहले
कर लूं खुद को थोड़ा निर्भार
दिल पर कोई बोझ न रहे
चलते-चलते चलें चलें
उफनती
नदी में
उछलती
नावों में
अफीम ले के
थोड़ी सी
हो सके
तो
सो जायें
खबर
मान लें
बेकार सी
फिसली हुई
‘उलूक’
के
झोले के छेदों से
जी डी पी
पी पी पी
जैसी
अफवाहों को
सपने देखें
अब बस..
चल चलें कुछ काम करें
सादर