Thursday, October 31, 2019

161..‘लौहपुरुष’ सरदार वल्लभभाई पटेल की आज 144 वीं जयंती है

सादर अभिनन्दन
भारत के भू राजनीतिक एकीकरण के सूत्रधार 
‘लौहपुरुष’ सरदार वल्लभभाई पटेल की 
आज 144 वीं जयंती है। 
सादर नमन
आज से भारत के नक्शे मे एक बड़ा बदलाव आया है
आज से भारत में दो केन्द्रशासित प्रदेश बढ़ गए हैं
जम्मू-काश्मीर और लद्दाख
...
और तो और आज ही
भारत के प्रधान मंत्री श्रीमति इन्दिरा गाँधी की
हत्या उन्हीं के अंगरक्षकों ले कर दी
अश्रुपूरित श्रद्धासुमन
...

ब्लॉग जगत की कलम की धार 
कुछ मुड़ी है साहित्य की ओर ....

हरी है उम्मीद, खुले हैं उम्मीदों के पट! 
विपत्तियों के, ऊबते हर क्षण में, 
प्रतिक्षण, जूझते मन में, मंद पड़ते, 
डूबते उस प्रकाश-किरण में, 
कहीं पलती है, इक उम्मीद, 
उम्मीद की, इक महीन किरण, 
आशा के, उड़ते धूल कण, 
उम्मीदों के क्षण! 


बड़ा लोभी है मन ,कोई सुन्दर-सी चाज़ देखी नहीं कि अपने भीतर संजो लेने को उतावला हो उठता है. और तो और प्लास्टिक के सजीले पारदर्शी लिफ़ाफ़े जिसमें कोई आमंत्रण-अभिन्दन या कोई और वस्तु आई हो फेंकने को सहज तैयार नहीं होता. इसे लगता है कितना स्वच्छ है इसमें अपने लिखे-अधलिखे बिखरे पन्ने सहेज लें,जो अन्यथा दुष्प्राप्य हो जाते हैं.


सुनते सुनते थक गया हूं कि दुनिया रंगमंच है 
और तू है किरदार!
 मैं ही हमेशा क्यों किरदार बनूं !
अब नहीं जीना मुझे ये जीवन.
मेरी डोर  सदैव किसी के हाथ में क्यों रहे ...
कहते हुए बड़ी तेज गुस्से में चिल्लाया था "तन "
जी हाँ मेरा अपना " तन "
आज  से मैं रंगमंच हूँ...


आस्था और विश्वास का पर्व -
हिन्दूओं का एक मात्र ऐसा पौराणिक पर्व हैं जो ऊर्जा के देवता सूर्य और प्रकृति की देवी षष्ठी माता को समर्पित हैं। मान्यता है कि -षष्ठी माता ब्रह्माजी की मानस पुत्री हैं,
प्रकृति का छठा अंश होने के कारण उन्हें षष्ठी माता कहा गया जो लोकभाषा में छठी माता के नाम से प्रचलित हुई। पृथ्वी पर हमेशा लिए जीवन का वरदान पाने के लिए ,सूर्यदेव और षष्ठीमाता को धन्यवाद स्वरूप ये व्रत किया जाता हैं। सूर्यदेव की पूजा अन्न -धन पाने के लिए और षष्ठीमाता की पूजा संतान प्राप्ति के लिए ,यानि सम्पूर्ण सुख और आरोग्यता के कामना पूर्ति हेतु इस व्रत की परम्परा बनी। 


कौन चाहता है, सबसे अलग-थलग पड़ना 
क़िस्मत ने कर दिया किनारे, क्या करें ?

ख़ुद से ज्यादा एतबार था हमें उन पर 
बेवफ़ा निकले दोस्त हमारे, क्या करें ?
...
आज बस..
कल से माह-ए-नवम्बर का आगाज़ हो रहा है
कल ही हमारे राज्य छत्तीसगढ़ 
का स्थापना दिवस भी है
जुग-जुग जियो छत्तीसगढ़
सादर..


Wednesday, October 30, 2019

160 ...सब्र कर खुदा बने हुऐ ही उसे हुऐ कुछ महीने चंद हैं

सादर अभिनन्दन
अंततः दीपावली का समापन हुआ
दीपक की बुझी लौ में गर्मी जब तक है
दीपावली रहेगी..
आज की प्रस्तुति में विशेष
श्रीलंका निवासी मेरी फेसबुक मित्र
दुल्कान्ति समरसिंह ने 
नया ब्लॉग लिखना प्रारम्भ किया है
आज की प्रस्तुति की पहली रचना उन्हीं के ब्लॉग से

गंगा जमुना अचिरावती
नदियों के पानी जैसे
हम लोगों में खुशियाँ हैं
स्वर्ग की तरह है ये त्योहार  ।।

कविताओं का कंगन है
कहानियाँ तो कंचन हैं
भावनाओं का बंधन है
सुन्दरता का आंगन है  ।।

मैं तो उजियारों का दाता रहा सदा से
ख़ुद को भवित वेदना मुझको खली नहीं थी,
कर्तव्यों से अति घनिष्ठ नाता जन्मों का
मुझे जलाने वालों की भी कमी नहीं थी।

चलन, दौर का मुझपर थोप चुके थे साथी
ड्योढ़ी पर तस्वीर टाँग कर वंदन करते,
निज प्रभुता में चूर कुंजरों से विशृंखल
निंदनीय नारे केवल अभिनंदन करते।


सुबह के साढ़े चार बज रहे थे, जब मैं  होटल से बाहर निकला , तो देखा कि बुजुर्ग महिलाएँ टूटे सूप को पीट रही थीं ,कल दीपावली पर लक्ष्मी का आह्वान किया गया और आज दरिद्रता को घर से बाहर निकाला जा रहा था। जिसकी हमें आवश्यकता है ,उसका गुणगान करते हैं और अनुपयोगी वस्तुओं को पुराने सूप के समान दरिद्रता की निशानी बता,फेंक देते हैं , यद्यपि हम दूसरों को यह ज्ञान बांटते नहीं अघाते हैं कि सुख-दुःख सिक्के के दो पहलू हैं।

देश भर में पिछले 3 वर्षों से स्वच्छ शहरों में नं. 1 का खिताब जितने वाले इन्दौर में पिछले सप्ताह खबर सामने आई कि यहाँ के नगर-निगम में बायोमेट्रिक प्रणाली से उपस्थिति दर्शाने की अनिवार्यता के बावजूद 10 कर्मी ऐसे मिले जो पिछले कई वर्षों से कभी निगम में गये ही नहीं, किंतु प्रतिमाह हजारों रुपये उनके वेतन के सरकारी खजाने से निकलकर उनके बैंक खातों में जमा हो रहे हैं । चूंकि उपस्थिति बायोमेट्रिक प्रणाली से दर्ज होती थी इसलिये ये कर्मी निगम की किसी भी दूसरी ब्रांच में जाकर मशीनी सिस्टम पर अपनी उपस्थिति दर्शा देते और घर आकर दूसरे कामों में लग जाते ।

शब्दों
के
जोड़
जन्तर
जुगाड़ हैं

कुछ के
कुछ भी
कह लेने के

तरीके
बुलन्द हैं 

सच के
झूठ के
फटे में

किसने
देखना होता है
....
आज बस
कल फिर मिलती हूँ
सादर..







Tuesday, October 29, 2019

159..भाई दूज और चित्रगुप्त जयन्ती का अभूत पूर्व संगम..

सादर नमस्कार..
आज भगवान चित्रगुप्त जी की जयन्ती है..
समग्र विश्व का लेखा-जोखा 
के धनी को शत-शत नमन.. 
उनके वंशज आज कलम-दावात 
की पूजा अर्चना करेंगे...
कम लोगों को जानकारी होगी..
कायस्थ कुल ही महाराज चित्रगुप्त के वंशज हैं
कायस्थ भारत में रहने वाले सवर्ण हिन्दू समुदाय की एक जाति है। गुप्तकाल के दौरान कायस्थ नाम की एक उपजाति का उद्भव हुआ। पुराणों के अनुसार कायस्थ प्रशासनिक कार्यों का निर्वहन करते हैं। हिंदू धर्म की मान्यता है कि कायस्थ धर्मराज श्री चित्रगुप्त जी की संतान हैं तथा देवता कुल में जन्म लेने के कारण इन्हें ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनों धर्मों को धारण करने का अधिकार प्राप्त है। वर्तमान में कायस्थ मुख्य रूप से बिसारिया, श्रीवास्तव, सक्सेना,निगम, माथुर, भटनागर, लाभ, लाल, कुलश्रेष्ठ, अस्थाना, कर्ण, वर्मा, खरे, राय, सुरजध्वज, विश्वास, सरकार, बोस, दत्त, चक्रवर्ती, श्रेष्ठ, प्रभु, ठाकरे, आडवाणी, नाग, गुप्त, रक्षित, बक्शी, मुंशी, दत्ता, देशमुख, पटनायक, नायडू, सोम, पाल, राव, रेड्डी, दास, मेहता आदि उपनामों से जाने जाते हैं। वर्तमान में कायस्थों ने राजनीति और कला के साथ विभिन्न व्यावसायिक क्षेत्रों में सफलतापूर्वक विद्यमान हैं। वेदों के अनुसार कायस्थ का उद्गम ब्रह्मा ही हैं। उन्हें ब्रह्मा जी ने अपनी काया की सम्पूर्ण अस्थियों से बनाया था, तभी इनका नाम काया+अस्थि .  

नियमित रचनाएँ
भैया दूज ...
कार्तिक की यमद्वितीया है भैया,
आज मेरे घर तू आना।
यम खाते थे यमुना घर जाकर,
आज मेरे घर तू खाना।
मुन्ने मुन्नी और भाभी को भी,
लेकर आना साथ में।


ये क्या फसाने हो गए ..
बस किताबी ज्ञान में उलझा हुआ है बचपना
खेलना मिट्टी में कंचों से जमाने हो गए।

वो किताबों से न जिनका था कोई रिश्ता उन्हें
ज्यों संभाला होश तो पैसे कमाने हो गए।


उसकी उदासियां..,!!

उसकी उदासियां
उसका हमसाया थी
वह तन्हा रही
अपनी ही जिंदगी में
एक चरित्र बनकर..!


मधुरागी ....

सुंदर सौरभ यूं
बिखरा मलय गिरी से,
उदित होने लगा
बाल पंतग इठलाके,
चल पड़ कर्तव्य पथ
का राही अनुरागी
प्रकृति सज उठी है
...
आज बस..
कुछ रचनाएँ नयी आने लगी है
नया तो पढेंगे ही
सादर..






Monday, October 28, 2019

158..शुभकामनाएं पर्व दीपावली पटाखे फुलझड़ी भी नहीं

सादर अभिवादन
बीत गई दीपावली
आज अन्नकूट है
गोवर्धन पूजा भी है
सब की छुट्टियाँ खतम होने की है

चलिए काम पर लगें...

सब बुझे दीपक जला लूँ!
घिर रहा तम आज दीपक-रागिनी अपनी जगा लूँ!

क्षितिज-कारा तोड़ कर अब
गा उठी उन्मत आँधी,
अब घटाओं में न रुकती
लास-तन्मय तड़ित् बाँधी,
धूलि की इस वीण पर मैं तार हर तृण का मिला लूँ!



यही जिन्दगी का फ़लसफ़ा 
बस मुस्कुराते जाईए
जब्त कर सीने में गम 
अश्क आँखों के पीते जाईए ।


सुख समृद्धि   
हर घर पहुँचे   
दीये कहते।   

मन से देता   
सकारात्मक ऊर्जा   
माटी का दीया।   


उस रात बहुत सन्नाटा था
उस रात बहुत खामोशी थी
साया था कोई ना सरगोशी
आहट थी ना जुम्बिश थी कोई
आँख देर तलक उस रात मगर
बस इक मकान की दूसरी मंजिल पर
इक रोशन खिड़की और इक चाँद फलक पर
इक दूजे को टिकटिकी बांधे तकते रहे


सो रहे थे बेच कर घोड़े, बड़े
और छोटे थे उनींदे से खड़े
ज़ोर से टन-टन बजी कानों में जब 
धड-धड़ाते बूट, बस्ते, चल पड़े  
हर सवारी आठ तक निकल गई


शुभकामनाएं पर्व दीपावली 
शुभकामनाएं
पर्व दीपावली
पटाखे
फुलझड़ी भी नहीं

खाली जेब
सब रोशनी से
लबालब भरी

‘उलूक’ 
हाँ हाँ ही सही

नहीं नहीं
जरा सा भी
ठीक नहीं। 
.....
अब बस
कल फिर मिलूँगी
सादर


Sunday, October 27, 2019

157..हर दीप में तुम्हीं नजर आये !!


सादर अभिवादन
आप सभी को दीपावली की शुभकामनाएँ
दीपोत्सव के समय दीप से बढ़कर कोई
भी पवित्र नहीं
चलिए रचनाओं की ओर..

Image result for दीपावली के चित्र
मौन स्वर ये  प्रार्थना  के 
तुम्हें समर्पित अविराम मेरे .
उपहार तुम्हारा अनमोल वो पल  
जो लिख दिए तुमने नाम मेरे ;
प्रेम -प्रदीप्त दो नयन तुम्हारे
जब  भी सुधियों में छाये !
जा  तुममें ही   उलझा चितवन 
हर दीप में  तुम्हीं   नजर आये  !!


एक नज़्म मेरी चोरी कर ली कल रात किसी ने
यहीं पड़ी थी बालकनी में
गोल तिपाही के ऊपर थी
व्हिस्की वाले ग्लास के नीचे रखी थी
नज़्म के हल्के हल्के सिप मैं
घोल रहा था होठों में
शायद कोई फोन आया था


कबूतर  ताकते  हैं  छत  से  
कोई  दाना  लायेगा  
इस  सुन्दर  से उपवन  में   
कोई  दीवाना  लायेगा 

बहुत  उत्सुक  हैं  वो  
लेकिन चुपचाप   बैठें  हैं ,
कोई  लायेगा खुशियाँ  
उनकी  या  कोई  ना  लायेगा 



मुबारक मुबारक मुबारक दीवाली,
बड़ी खूबसूरत मुहब्बत दीवाली।

अमावस घनेरी बहुत ही निराली,
लगे है बहुत खूबसूरत दीवाली।


एक दिया ऐसा भी हो , जो 
आपके भीतर तक प्रकाश करे , 

एक दिया मृतप्राय जीवन में , 
फिर आकर कुछ श्वास भरे | 
आज बस इतना ही
कल फिर मिलते हैं


Saturday, October 26, 2019

156..नरक चतुर्दशी इसे छोटी दीपावली भी कहा जाता है

दीपावली को एक दिन का पर्व कहना न्योचित नहीं होगा। दीपावली पर्व 
के ठीक एक दिन पहले मनाई जाने वाली नरक चतुर्दशी को छोटी दीवाली, रूप चौदस और काली चतुर्दशी भी कहा जाता है। मान्यता है कि 
कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के विधि-विधान से पूजा करने वाले 
व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है।
इसी दिन शाम को दीपदान की प्रथा है जिसे यमराज के लिए किया जाता है। इस पर्व का जो महत्व है उस दृष्टि से भी यह काफी महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पांच पर्वों की श्रृंखला के मध्य में रहने वाला त्योहार है।
दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस फिर नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली। इसे छोटी दीपावली इसलिए कहा जाता है क्योंकि दीपावली से एक दिन पहले रात के वक्त उसी प्रकार दीए की रोशनी से रात के तिमिर को प्रकाश पुंज से दूर भगा दिया जाता है जैसे दीपावली की रात को।

क्या है इसकी कथा-
इस रात दीए जलाने की प्रथा के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं और लोकमान्यताएं हैं। एक कथा के अनुसार आज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी दु्र्दांत असुर नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। 
इस उपलक्ष में दीयों की बारात सजाई जाती है।

इस दिन के व्रत और पूजा के संदर्भ में एक दूसरी कथा यह है कि रंति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके 
समक्ष यमदूत आ खड़े हुए।
यमदूत को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो क्योंकि आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नर्क जाना होगा। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है।

यह सुनकर यमदूत ने कहा कि हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक बार एक ब्राह्मण भूखा लौट गया था,यह उसी पापकर्म का फल है। इसके बाद राजा ने यमदूत से एक वर्ष समय मांगा। तब यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी। राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचे और उन्हें अपनी सारी कहानी सुनाकर उनसे इस पाप से मुक्ति का क्या 
उपाय पूछा।

तब ऋषि ने उन्हें बताया कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्राह्मणों को भोजन करवा कर उनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें। राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया। इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है।

इस दिन के महत्व के बारे में कहा जाता है कि इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल लगाकर और पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर उससे स्नान करने करके विष्णु मंदिर और कृष्ण मंदिर में भगवान का दर्शन करना करना चाहिए। इससे पाप कटता है और रूप सौन्दर्य की प्राप्ति होती है।

कई घरों में इस दिन रात को घर का सबसे बुजुर्ग सदस्य एक दिया जला कर पूरे घर में घुमाता है और फिर उसे ले कर घर से बाहर कहीं दूर रख कर आता है। घर के अन्य सदस्य अंदर रहते हैं और इस दिए को नहीं देखते। यह दीया यम का दीया कहलाता है। माना जाता है कि पूरे घर में इसे घुमा कर बाहर ले जाने से सभी बुराइयां और कथित 
बुरी शक्तियां घर से बाहर चली जाती हैं।

साभार विकीपीडिया

Friday, October 25, 2019

155..धनतेरस की शुभ कामनाएँ



धनतेरस  कार्तिक  कृष्ण  पक्ष  की  त्रयोदशी तिथि  के दिन भगवान धन्वन्तरि का जन्म हुआ था इसलिए इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है। भारत सरकार ने धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है। अमृत मंथन के दौरान औषधि लाने वाले भगवान धन्वंतरी आरोग्यता साथ लाने वाले धनवंतरी भगवान को आज साक्षात हम किसी डॉक्टर में देख सकते है। धन तेरस के दिन अपने चिकित्सक डॉक्टर को कृतज्ञ प्रणाम जरूर करे। साथ ही दवाई की दुकान वाले को भी कृतज्ञता अर्पित कर धनतेरस पर्व मनाये



धन्वन्तरि देवताओं के चिकित्सक हैं और चिकित्सा के देवता माने जाते हैं इसलिए चिकित्सकों के लिए धनतेरस का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। धनतेरस के सन्दर्भ में एक लोक कथा प्रचलित है कि एक बार यमराज ने यमदूतों से पूछा कि प्राणियों को मृत्यु की गोद में सुलाते समय तुम्हारे मन में कभी दया का भाव नहीं आता क्या। दूतों ने यमदेवता के भय से पहले तो कहा कि वह अपना कर्तव्य निभाते है और उनकी आज्ञा का पालन करते हें परन्तु जब यमदेवता ने दूतों के मन का भय दूर कर दिया तो उन्होंने कहा कि एक बार राजा हेमा के ब्रह्मचारी पुत्र का प्राण लेते समय उसकी नवविवाहिता पत्नी का विलाप सुनकर हमारा हृदय भी पसीज गया लेकिन विधि के विधान के अनुसार हम चाह कर भी कुछ न कर सके।

धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाने की प्रथा भी है। इस प्रथा के पीछे एक लोक कथा है, कथा के अनुसार किसी समय में एक राजा थे जिनका नाम हेम था। दैव कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। ज्योंतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा। राजा इस बात को जानकर बहुत दुखी हुआ और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े। दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया।



विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे। जब यमदूत राजकुमार प्राण ले जा रहे थे उस वक्त नवविवाहिता उसकी पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा परंतु विधि के अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा। यमराज को जब यमदूत यह कह रहे थे उसी वक्त उनमें से एक ने यम देवता से विनती की हे यमराज क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु से मुक्त हो जाए। दूत के इस प्रकार अनुरोध करने से यम देवता बोले हे दूत अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूं सो सुनो। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीप माला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। यही कारण है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं।
साभारः वेबदुनिया


Thursday, October 24, 2019

154 ..दीवारों पर खिलखिला रहे हैं रँग नये

होते हैं जिम्मेदार उजाले
करता है उन्हें उजागर
होता है सबकुछ
इसीलिए होती है अहम
रोशनी ज़रा सी...भले तो
मिले वह एक दीपक से
या फिर..किसी
दरवाजे की झिरी से...
दीप-पर्व की शुभकामनाएँ
सादर अभिवादन..

चलिए रचनाओं की ओर..

कतार लगी है दियों की 
मन में शुभता लिये 
मधुर है कितना कुछ 
इनके आस-पास 
पकवानों से सजे हैं थाल 
दीवारों पर खिलखिला रहे हैं रँग नये 
देहरी पर सजी रंगोली ने 
किया वंदन अभिनन्दन 
लगाकर रोली चंदन 
माँ लक्ष्मी के संग गौरी नन्दन का !!

वो दो नन्हे नन्हे से हाथ 
उस बेज़ान सी रेत से 
सौ बार घर बना चुके हैं 
हर बार ज़ोरदार लहर आती है 
और उन नन्हे हाथों से बने घर को 
तोड़ अपने साथ बहा ले जाती है 
इक बार लहर की तरफ देख 
मुँह बना कुछ बड़बड़ाता है
और वो फिर नए जोश के साथ

सफ़र जीवन का ....श्वेता सिन्हा

हार करके बैठना मत आँधियाँ पलभर की हैं
जीत उसकी ही हुई जो सदा डग भरता रहा

द्वेष  मिटाता रहा मनुष्य और मनुष्यता
सृष्टि का हर एक कण बस प्रेम में पलता रहा



कितनी दूर चला आया हूँ,
कितनी दूर अभी है जाना।
राह है लंबी या ये जीवन,
नहीं अभी तक मैंने जाना।

नहीं किसी ने राह सुझाई,
भ्रमित किया अपने लोगों ने।
अपनी राह न मैं चुन पाया,
बहुत दूर जाने पर जाना।

इश्क़ के दरिया में, हमें तो बस मझधार मिले 
थक-हार गए तलाश में, दूर-दूर तक साहिल न था। 

हैरान हुआ हूँ हर बार अपना मुक़द्दर देखकर
ग़फ़लतें होती ही रही, यूँ तो मैं ग़ाफ़िल न था। 

जब पहली बार निकलो यात्रा पर
तो कुछ भी न रखना साथ
चाकू, घड़ी, छतरी, टिश्यू पेपर, टॉयलेट सोप...
आदि कुछ भी नहीं
कहीं अगर ले लिया
इन सामानों से भरा झोला
...
समय की चोट से,
दो हिस्सों में बँट गया है मन
एक तरफ शोर
एक तरफ खामोशियां हैं !
बाकी सब ठीक है !!
सादर..





Wednesday, October 23, 2019

153...भले हैं नारद जी अच्छा ही चाहते हैं

सादर अभिवादन
दीपावली को तीन दिन शेष
हार्दिक अभिनन्दन
हमारी गाड़ी में ब्रेक नहीं है
रुकती ही नही...

आज की रचनाएँ कुछ ऐसी है...

आजादी का वो जश्न मनाएं तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में

पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
संसद बदल गई है यहां की नखास में

जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूं मैं होशो-हवास में


जलते दीप को देख,
दूर एक दीपक बोला
क्यों जलते औरों की खातिर
खुद तल में तेरे है अंधेरा ,
दीपक बोला गर नीचे ही देख लेता
तो वहाँ नही अंधेरा होता ,


वह मेरी पहली दीपावली थी, जो बस के सफर में गुजर गयी । बात वर्ष 1994 की है। उस शाम भी अखबार का बंडल लेकर प्रेस के कार्यालय से निकल सीधे कैंट बस स्टेशन पहुँच गया था। मुझे मीरजापुर अखबार वितरण कर वापस रात बारह बजे तक अपने घर वाराणसी भी लौटना होता था। अतः मन बेहद उदास और कुछ रुआँसा भी हो गया कि इतनी रात क्या बनाऊँगा, ढाबे पर भी तो कुछ नहीं मिलेगा।


सभी को मेरे जनाज़े में जाने की जल्दी दिखी ,
उनको अपने घर से कुछ ज्यादा दूरी दिखी ,

मैं मातम में खुद डूबा रहा अपनी मैयत देख ,
नुक्कड़ पर चाय में डूबी मेरी कुछ बाते दिखी ,

चलते-चलते...
नारद जी दिखाई पड़े

कितने साल
देखिये हो गये
कितने असुर
असुर नहीं रहे
देवता जैसे
ही हो गये

देवताओं का
असुरों में
असुरों का
देवताओं में
आना जाना
भी अब
देखा ही जाता है

नारद जी को
वैसे तो
देवता ही
माना जाता है

बस आज इतना ही
सादर..