Tuesday, December 8, 2020

563 ...माँ को बेटियों के परिवार में दखल नहीं देनी चाहिए

सादर अभिवादन..
आज भारत बंद है
दवा लेने गई थी
दवा की दुकानों को बक्श दिया था
पेट्रोल पंप बंद थे.... 
देश की मुसीबतों में
और मुसीबतें पैदा करना
हम भारतीयों की
पुरानी आदत है
खैर....
रचनाएँ देखिए..



"माँ को बेटियों के परिवार में दखल नहीं देनी चाहिए।
बेटियाँ जितनी जल्दी मायके का मोह छोड़तीं हैं 
उनकी गृहस्थी उतनी जल्दी फलती-फूलती है।"





किस मोह में है धावित माया मृग,
खोजता है जीवन, 
स्वयं के अंदर स्वयं की ही प्रतिच्छाया,
किस लिए इतनी पिपासा, 
किस मरुधरा में हैं घनीभूत,





मेरा अधकचरा पन 
मुझे बनाता है मैं 
मेरा बेढंगापन 
मुझे बनाता है मैं 
इनके बिना क्या रहूँगा मैं, 




वो स्याह अंधेरा था
फिर उसमे हल्की सी एक रेखा बनी
ज्यादा चमकीली नहीं
बस, धुंधली सी
स्याह रात
जो अब बैंगनी होने लगी
उस बैंगनी में छुपा था चटख सिंदूरी





जिन्दा वो आज भी हैं साँसों की सच्चाई में l
बेताबी वही हैं धड़कनों की परछाई में ll

बेताबी वही हैं धड़कनों की परछाई में l
बेताबी वही हैं धड़कनों की परछाई में ll
....
आज बस
सादर

6 comments:

  1. बहुत बढिया। मेरी रचना को स्थान देने के लिए विशेष आभार।

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  2. सराहनीय संकलन दी।मेरी लघुकथा को स्थान देने हेतु दिल से आभार।

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  3. मेरी रचना को यहाँ जगह देने के लिये शुक्रिया..... सुंदर रचनाएं 😍

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  4. सभी रचनाएँ असाधारण हैं, सुन्दर संकलन व प्रस्तुति मुखरित मौन को आकर्षक बनाते हैं, मेरी रचना को स्थान देने हेतु ह्रदय से आभार - - नमन सह।

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  5. वाह!सुंदर प्रस्तुति ।

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  6. सुंदर प्रस्तुति,मैम। मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार।

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