बिना सूचना दिए
आने की आदत से मज़बूर
दिव्या का सलाम
टाईम-टेबल बिगड़ा सा है
होगा कब ठीक
ये तो राम ही जाने
..
आज की रचनाएँ कुछ यूँ है..
दिव्या का सलाम
टाईम-टेबल बिगड़ा सा है
होगा कब ठीक
ये तो राम ही जाने
..
आज की रचनाएँ कुछ यूँ है..
पागल तो तुम भी थी
जानबूझ कर निकलती थी पास से
कि में सूंघ लूं
देह से निकलती चंदन की महक
पढ़ लूं काजल लगी
आंखों की भाषा
समझ जाऊं
लिपिस्टिक लगे होठों की मुस्कान--
मन के गलीचे को तो यूँ फैलाया मैं ने बहुत मगर,
जमीन चूमने को रहे बेताब उनके बहकते क़दम।
माना मेरे हालात से नाता नहीं, पूछें भर भी वो गर,
तो शायद क़ायम रहें अपना होने के दरकते भरम।
दोस्ती वो है जो आपके जस्बात को समझे,
दोस्ती वो है जो आपके एहसास को समझे!
मिल तो जाते हैं अपना कहने वाले ज़माने में बहुत,
अपना वो है जो बिना कहे ही आपको अपना समझे !!
घुमड़ के,और घिर-घिर,जो मेघ आने लगे हैं,
ये तन-मन भिगा के,नई चेतना जगाने लगे हैं,
सुलगते हुए भावों को यूँ,शीतल कर डाला है,
उम्मीद की नई कोंपल,मन में,उगाने लगे हैं।
बिना जल से
भरे नैनों के झरने
बहते जाते
कोरी हैं आँखें
सुन्दर नहीं है वे
जल के बिना
....
आज की क्लास खत्म
सादर
आज की क्लास खत्म
सादर
धन्यवाद मेरी रचना शामिल करने के लिए |
ReplyDelete"सांध्य दैनिक मुखरित मौन मंच में " मेरी कविता " खुद पे गुरूर " को स्थान देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद दिव्या अग्रवाल जी ! 🙏 😊
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