सादर नमन
सावन का महीना
नहीं लग रहा सावन सा
फिर भी लगाने की कोशिश
देखिए आज की पसंद....
नव प्रवेश
सरिता शैल की प्यारी रचना
हमें मंजूर है ....सरिता शैल
हमें मंजूर है सीप बनकर रेत में दफन होना
शर्त फकत इतनी सी है तुम मोती बन चमको
हमें मंजूर है बीज बन मिट्टी में दफन होना
शर्त फकत इतनी सी है तुम फूल बन महकना
सावन का महीना
नहीं लग रहा सावन सा
फिर भी लगाने की कोशिश
देखिए आज की पसंद....
नव प्रवेश
सरिता शैल की प्यारी रचना
हमें मंजूर है ....सरिता शैल
हमें मंजूर है सीप बनकर रेत में दफन होना
शर्त फकत इतनी सी है तुम मोती बन चमको
हमें मंजूर है बीज बन मिट्टी में दफन होना
शर्त फकत इतनी सी है तुम फूल बन महकना
अरे रामा बुंदिया गिरै चहुंओर..
भींजत मोरि अंगिया रे हरी..
छैल छबीला बदरा...गरजे
तिरछी नजरिया बिजुरी चमके
अरे रामा पपीहा बोले सारी रात
बदरिया कारी रे हरी....।।
लाख करोड़ों पर भारी है
ये तेरी मुस्कान लाडली,
तू है मेरे जिगर का टुकडा
तू है मेरी जान लाडली !
दुःख हो या सुख
दोनों ही इस दौर में थे अकेले।
रोए तो स्वयं को
सुनाने के लिए की दर्द भी है दर्द।
हँसे भी तो स्वयं को
बहलाने के लिए कि ख़ुशी भी है ख़ुशी।
मै उषा की भोर में, एक गीत लिखता हूं,
तुम्हारे, मैत्री के संदर्भ में मनप्रीत लिखता हूं।
निरीह सा खड़ा, एकटक देख - देख
अर्द्ध रात्रि के पश्चात, मै जाग कर
देखता हूं तुम्हे, उन खूबसूरत स्वप्नों में
शामिल कर, जो मेरे उर के समीप है,
तुम्हे देखकर मै, खुद की जीत लिखता हूं।
स्वप्न हरा भरा ....पुरुषोत्तम सिन्हा
शब्द-विरक्त, धुंधलाता क्षण,
मौन-मौन,
मुस्काता, वो मन,
भाव-विरल,
खोता,
इक, हृदय इधर,
कोई थामे बैठा, इक हृदय उधर!
गुम-सुम, चुप-चुप,
निःस्तब्ध,
निःशब्द और मुखर,
उत्कंठाओं से, भरा-भरा,
स्वप्न हरा भरा ....पुरुषोत्तम सिन्हा
शब्द-विरक्त, धुंधलाता क्षण,
मौन-मौन,
मुस्काता, वो मन,
भाव-विरल,
खोता,
इक, हृदय इधर,
कोई थामे बैठा, इक हृदय उधर!
गुम-सुम, चुप-चुप,
निःस्तब्ध,
निःशब्द और मुखर,
उत्कंठाओं से, भरा-भरा,
राख को भी कुरेद कर देखो
अभी जलता हो कोई पल शायद
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
जैसे एहसां उतारता है कोई
अब असली सावन..
शिव महाकाल, सावन ..... पम्मी सिंह
प्रंचड रूपी शंकरा, विराजित चहुँ ओर।
अटल रूपी महेश्वरा,रंजित जग की भोर।।
निर्गुण,निराकार,नियंता,धारे रूप विशाल।
शिव रूपी सत् सनातनी,मुदित हुए शिवशाल।।
अब बस
कल फिर
अब असली सावन..
शिव महाकाल, सावन ..... पम्मी सिंह
प्रंचड रूपी शंकरा, विराजित चहुँ ओर।
अटल रूपी महेश्वरा,रंजित जग की भोर।।
निर्गुण,निराकार,नियंता,धारे रूप विशाल।
शिव रूपी सत् सनातनी,मुदित हुए शिवशाल।।
अब बस
कल फिर
वाहह..
ReplyDeleteसावन..सावन..सिर्फ सावन
बहुत सुंदर रंगों भावों का तानाबाना सभी रचनाकारों को बधाई , संग प्रस्तुतिकरण हेतु चयनित मेरी रचना के लिए.. आभार..🙏
सभी रचनाकारों को शुभकामनाए बहुत बढ़िया लिंक्स
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सराहनीय प्रस्तुति आदरणीय यशोदा दीदी.मेरी रचना को स्थान देने हेतु सादर आभार .
ReplyDeleteश्रावणी की अराधना, महाशाल में भोर।
ReplyDeleteनमोः नमोः महेश्वरा,गूंज रही चहुँ ओर!!
जैसी भावपूर्ण वंदना के साथ सुंदर अंक आदरणीय दीदी! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभारी हूँ। आज के सभी सहयोगी रचनाकारों शुभकामनायें । आपको भी बधाई ।सादर🙏🙏🌹🌹🙏🙏
सादर आभार आदरणीय।
ReplyDelete