सादर अभिवादन
कल रात ये सोच कर आँखें बंद की कि
रात में ये सपना देखूँगी
सुबह उठी तो देखा-सुना सब
भूल गई...और दिन में आज
भयंकर गलतियाँ कर बैठी
चलिए जो हुआ सही हुआ
और जो अब होगा
कल रात ये सोच कर आँखें बंद की कि
रात में ये सपना देखूँगी
सुबह उठी तो देखा-सुना सब
भूल गई...और दिन में आज
भयंकर गलतियाँ कर बैठी
चलिए जो हुआ सही हुआ
और जो अब होगा
वो भी सही ही होगा
आज की रचनाएँ...
आज की रचनाएँ...
इंतजार सावन की पड़े फ़ुहार
आँखिया रोये बार बार
करूँ तेरा इंतजार
घड़ी घड़ी देखूं द्वार।
खाक होती सनम जिन्दगानी देखा।
पास आती कजा भी सुहानी देखा।।
आँख भरती रही रात दिन रोज ही।
पर नहीं आँख में उसके पानी देखा।।
कह दो कोई चला जाये अपने शहर।
होते चर्चा गली में जुबांनी देखा।।
कैसे कहूँ बात अंतस की
थिक थिरकन हृदय में उमड़ी।
घटा देख कर मोर नाचता
हिय हिलोर सतरंगी घुमड़ी।
लगता कोई आने वाला
सखी कौन है बूझ पहेली।।
ऐ जिंदगी गले लगा ले..
विरक्त हुआ मन तुझसे जब भी
तूने कसकर पकड़ लिया
नई-नई आशाएँ देकर
मोहपाश में जकड़ लिया
अपनी भुजाओं के दम से,
उसने खोला जंज़ीर का ताला।
भस्म हुए हैं लोग कहर से,
सबका शरीर पड़ गया है काला।
यह कहना सही नहीं है
कि उसे मृत्युदंड मिला है,
दंड अपराध के लिए होता है,
उसका अपराध तो साबित ही नहीं हुआ,
पन्ने पलट लेते हैं
खुद ही डायरी के खुद को
वो भी आजकल
कुछ लिखवाना
कहाँ चाहते हैं
बकवास
करने के बहाने
सब खत्म हो जाते हैं
पता ही नहीं चल पाता है
बकवास करते करते
...
आज सब पिटाई करेंगे मेरी
मुझे भी अपनी खाल में
रहना चाहिए था
सादर
...
आज सब पिटाई करेंगे मेरी
मुझे भी अपनी खाल में
रहना चाहिए था
सादर
आभार यशोदा जी। कौन पीट रहा है? किसको? जमाना पीटने का रहा ही कहाँ? पिटने का हो चला है :)
ReplyDeleteशानदार लिंक सभी रचनाएं बेहतरीन
ReplyDeleteसुन्दर संकलन. मेरी कविता शामिल की. धन्यवाद
ReplyDeleteउम्दा सृजन
ReplyDeleteबहुत शानदार प्रस्तुति मुखरित मौन की, सुंदर सुंदर रचनाएं,सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteमेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।