Tuesday, July 14, 2020

415 ..बस एक दो कौए उड़ते हुऐ से नजर आते हैं

सादर अभिवादन
कल रात ये सोच कर आँखें बंद की कि
रात में ये सपना देखूँगी
सुबह उठी तो देखा-सुना सब
भूल गई...और दिन में आज
भयंकर गलतियाँ कर बैठी
चलिए जो हुआ सही हुआ
और जो अब होगा 
वो भी सही ही होगा
आज की रचनाएँ...

इंतजार सावन की पड़े फ़ुहार 
आँखिया रोये बार बार 
करूँ तेरा इंतजार 
घड़ी घड़ी देखूं द्वार। 


खाक होती सनम जिन्दगानी देखा।
पास आती कजा भी सुहानी देखा।।

आँख भरती रही रात दिन रोज ही।
पर नहीं आँख में उसके पानी देखा।।

कह दो कोई चला जाये अपने शहर।
होते चर्चा गली में जुबांनी देखा।।


कैसे  कहूँ बात अंतस की
थिक थिरकन हृदय में उमड़ी।
घटा देख कर मोर नाचता
हिय हिलोर सतरंगी घुमड़ी।
लगता कोई आने वाला
सखी कौन है बूझ पहेली।।


2017-11-26-22-48-24-573
ऐ जिंदगी गले लगा ले..
विरक्त हुआ मन तुझसे जब भी
तूने कसकर पकड़ लिया
नई-नई आशाएँ देकर
मोहपाश में जकड़ लिया


Bahubali
अपनी भुजाओं के दम से,
उसने खोला जंज़ीर का ताला।
भस्म हुए हैं लोग कहर से,
सबका शरीर पड़ गया है काला।


Hanging Rope, Rope, Hangman, Hanging, Hang, Punishment
यह कहना सही नहीं है 
कि उसे मृत्युदंड मिला है,
दंड अपराध के लिए होता है,
उसका अपराध तो साबित ही नहीं हुआ,


पन्ने पलट लेते हैं
खुद ही डायरी के खुद को
वो भी आजकल
कुछ लिखवाना
कहाँ चाहते हैं 

बकवास
करने के बहाने
सब खत्म हो जाते हैं
पता ही नहीं चल पाता है
बकवास करते करते
...
आज सब पिटाई करेंगे मेरी
मुझे भी अपनी खाल में
रहना चाहिए था
सादर

5 comments:

  1. आभार यशोदा जी। कौन पीट रहा है? किसको? जमाना पीटने का रहा ही कहाँ? पिटने का हो चला है :)

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  2. शानदार लिंक सभी रचनाएं बेहतरीन

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  3. सुन्दर संकलन. मेरी कविता शामिल की. धन्यवाद

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  4. बहुत शानदार प्रस्तुति मुखरित मौन की, सुंदर सुंदर रचनाएं,सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।

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