Saturday, July 25, 2020

426 ...हस्ती हमारी कुछ भी तो नहीं

कोई टाईम-टेबल नही है
दिव्या का
कोई इन्तजार नही करता
पर परी मेरी प्रतीक्षा में रहती है
ममा आएगी तो मैं अपने हाथों से
उनको खिलाऊँगी...
बहुत रुलाएगी ये सच में...

आज की पसंद....


आई सुहानी नागपंचमी ..मालती मिश्रा
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डम डम डमरू बाजे, 
गले में विषधर साजे।
जटाओं में गंगा मां करतीं हिलोर,
आई सुहानी नागपंचमी का भोर।

द्वार सम्मुख नाग बने,
गोरस का भोग लग।
करना कृपा हम पर हे त्रिपुरार,
दूर करो जग से कोरोना की मार।




चाय पीना तो भूल ही गया खैर 
चाय तो फिर पी जा सकती हैं 
पर इस तरह के विचार 
बहुत मुश्किल से पनपते है.
दौर पतझड़ का सही
उम्मीद तो हरी है--


उस दिन के बाद लौटकर फिर गुजरे नहीं गली से
अब आईने में भी पराए से हुए सूरत के मुताबिक

वक्त की रफ्तार में, हस्ती हमारी कुछ भी तो नहीं
मिलना है जो मिलता है इस किस्मत के मुताबिक


हाट के शोरगुल बीच सदियों से 
खड़ा मैला कुचैला खुरदरा
वो बूढ़ा वृक्ष न जाने आँखो में 
है किसका इंतजार नित लौटती
 दूर तक जाकर उसकी निगाहें 

निराश मन से निहारता वो
मटमैले पैरों पे पुराना पर 
आज भी जीवित
मोचीराम का खुरदरा स्पर्श

इश्क मेरा रूहानी है ...मधु सिंह 
इश्क   मेरा   रूहानी है 
राहे- ख़ुदा    कहानी है 

बन बैठा मैं रब का बंदा
रब ही मेरी कहानी है 

सांसो की धड़कन में मेरे 
रब की लिखी कहानी है 
...
बस..
सादर






4 comments:

  1. बेहतरीन...
    आभार..
    सादर..

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  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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  4. मोहक रचनाओं का संकलन।
    सुंदर प्रस्तुति।

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