गुरु पूर्णिमा है आज
उन सभी गुरुजनों के श्रीचरणों में शत-शत नमन,
जिन्होंने प्रत्यक्ष या परोक्ष रुप से मुझे ज्ञान दिया,
प्रेरित किया और प्रगति के पथ पर चलना सिखाया।
गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर हार्दिक अभिनंदन।
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आज की रचनाएँ देखें..
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आज की रचनाएँ देखें..
आकुल करती, हल्की-सी भोर,
व्याकुल कोयल की कूक,
ढ़ुलमुल सी, बहती ठंढी पवन,
और शंकाकुल,
ये मन!
ताज्जुब है कि इसको कोई भी टोकता नहीं
घूमे है झूठ बे-पैरहन हाय इन दिनों
चेहरों की जगह झूठ ही मंज़ूर था हमें
सब ने लिया है नकाब पहन हाय इन दिनों
वो पक्के रंग वाला लड़का
लोग उसे काला
तो कभी सांवला कहते थे।
गोरा होना उसके बस में न था कभी
बस अपने रंग में ढल जाना
खुद को बुरा न मानकर
बस खुद को अपनाना ही था
उसके बस में।
शब्द निकले
मन के कोने से ऐसे
चन्द्र बदरी से जैसे
कभी दिखे
कभी छुपे
तड़पाये मुझे कुछ ऐसे
नटखट शिशु हो जैसे
बंजर धरती किसे पुकारे
सूखी खेतों की हरियाली
भ्रमर हो गए सन्यासी सब
आज कली को तरसे डाली
श्वास श्वास को प्राण तरसते
मृत्यु सभी पल टली गई।।
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आज बस
सादर
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आज बस
सादर
सुन्दर प्रस्तुति। मेरी रचना को इस संकलन में स्थान देने के लिए हार्दिक आभार।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर प्रस्तुति 👌🏻👌🏻👌🏻
ReplyDeleteमेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सखी यशोदा जी 🙏🙏🙏
सुंदर
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