Thursday, July 16, 2020

417..कुछ लोग उचककर बस कुर्सी को ताक रहे हैं


सादर अभिवादन
आज आया ऊँट पहाड़ के नीचे
सोलह जुलाई...
विदा होने की है जुलाई भी
बेसब्री से प्रतीक्षा किए थे सब
दो हजार बीस का
अब घण्टे गिन रहे हैं
दो हजार बीस के जाने का
...
चलिए रचनाएँ देखें ..


चुपचाप रहकर
अपने मंतव्यों के पतंग
कल्पनाओं के आसमान में ही
उड़ाना सुरक्षित है,
मनोनुकूल परिस्थितियाँ
बताने वाली
समयानुकूल घड़ियाँ
प्रचलन में हैं आजकल


Mother, Son, Baby, Beach, Sunset
छोटे से बहुत प्यार है माँ को,
छोटा उसके श्रम का निचोड़ है.


love
कुछ नहीं बदला है तुम्हारे इंतजार में 
न वो घड़ी थकी है न उसके कांटे 
आज भी रखा  है कॉफी का मग 
तुम्हारे ओठों के निशान लिए 
सूरज की तपिश भी वैसी ही है



कुछ लोग कुर्सी के उपर बैठे हैं
कुछ लोग कुर्सी के नीचे बैठे हैं
कुछ लोगों ने कुर्सी को घेर रखा है
कुछ लोग उचककर बस कुर्सी को ताक रहे हैं

सदा जब ख्वाहिशें होगीं  मकाँ कोई नहीं देगा।
बढ़ी जब प्यास होगी तो कुवाँ कोई नहीं देगा।।

लिया करता जमाना ये कभी जब इम्तिहाँ मेरा,
सहारा मतलबी जग में यहाँ कोई नहीं देगा ।

खड़ी की मंजिलें ऊँची टिकी जो झूठ पर रहती
यहाँ सच के लिए तो अब बयाँ कोई नहीं देगा ।।
....
आज बस
कल की कल देखेंगे
सादर



5 comments:

  1. कल की कल ही देखते हैं सारे
    बढ़िया चयन
    सादर

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  2. आदरणीय सर इस बुद्धिजीवी मंच पर मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सभी रचनाएं बेहतरीन सभी रचनाकारों को शुभकामनाए

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  3. बेहतरीन संकलन

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  4. सुन्दर प्रस्तुति. आभार.

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  5. वाह जीजू
    कमाल की प्रस्तुति
    सादर

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