कहते हैं कोई एक बड़ा नेता मरता है तो
पचास नए नेता पैदा हो जाते हैं स्वतः
वैसा ही कुछ होगा अब...
एक माफ़िया मरा तो उसके चाटुकारों को
मौका मिलेगा सरदारी करने का..
अभिवादन...
आज की पसंद..
खबरदार ..हर्षवर्धन जोग
- देखो जी दूसरी शादी मुझे बिलकुल बर्दाश्त नहीं है बस. खबरदार कर रही हूँ. मेरे मरने के बाद भी मत कर लेना. मेरी अलमारी को हाथ लगाएगी या मेरे बरतनों को हाथ लगाएगी तो छोडूंगी नहीं उसे.
- अरे कर लूंगा तो तुम्हें कैसे पता चलेगा?
- बाद में भी इसी मकान में रहूंगी याद रखना. चिपट जाउंगी.
- किसे चिपटोगी? मकान को या दूसरी वाली को?
- जी नहीं तुमको!
- अच्छा! लो पहले चाय पी लो.
अनायास ....आनन्द सूफ़ी बेनाम
लाइफ इस ब्यूटीफुल .......
ब्यूटी हमेशा ना-समझ होती है,
जैसे ज़िन्दगी,
जैसे वो और जैसे मेरे मन में
बसी तुम।
समझ और समझदारी ही घातक है
ज़िन्दगी में
जैसे वो, उसका प्यार और
तुम्हारा गम।
अंतिम सत्य ...सुनीता शानू
मन डूवने लगे और
दूर तक कोई आवाज भी न हो
तो यह है
एक सदी ख़त्म होने का चिन्ह
यह मन की विवशता भी हो सकती है
कभी न देखे है ख़्वाब इतने ...अकीब जावेद
थे जाने को जो शिताब इतने
है दर्द भी क्या बे हिसाब इतने
है दर्द के क्या सवाल तेरे
जो तन्हा तन्हा जवाब इतने
अंतिम रचना एक बंद ब्लॉग से
भंग निशा की नीरवता कर ...मधु सिंह
हिमशिखरों में लगी आग है
तन उपवन जल रहा आज है
धू -धू जलती आशाओं की
अपनी व्यथा सुनाऊँ कैसे
आज बस
कल फिर
सादर
पचास नए नेता पैदा हो जाते हैं स्वतः
वैसा ही कुछ होगा अब...
एक माफ़िया मरा तो उसके चाटुकारों को
मौका मिलेगा सरदारी करने का..
अभिवादन...
आज की पसंद..
खबरदार ..हर्षवर्धन जोग
- देखो जी दूसरी शादी मुझे बिलकुल बर्दाश्त नहीं है बस. खबरदार कर रही हूँ. मेरे मरने के बाद भी मत कर लेना. मेरी अलमारी को हाथ लगाएगी या मेरे बरतनों को हाथ लगाएगी तो छोडूंगी नहीं उसे.
- अरे कर लूंगा तो तुम्हें कैसे पता चलेगा?
- बाद में भी इसी मकान में रहूंगी याद रखना. चिपट जाउंगी.
- किसे चिपटोगी? मकान को या दूसरी वाली को?
- जी नहीं तुमको!
- अच्छा! लो पहले चाय पी लो.
अनायास ....आनन्द सूफ़ी बेनाम
लाइफ इस ब्यूटीफुल .......
ब्यूटी हमेशा ना-समझ होती है,
जैसे ज़िन्दगी,
जैसे वो और जैसे मेरे मन में
बसी तुम।
समझ और समझदारी ही घातक है
ज़िन्दगी में
जैसे वो, उसका प्यार और
तुम्हारा गम।
अंतिम सत्य ...सुनीता शानू
मन डूवने लगे और
दूर तक कोई आवाज भी न हो
तो यह है
एक सदी ख़त्म होने का चिन्ह
यह मन की विवशता भी हो सकती है
कभी न देखे है ख़्वाब इतने ...अकीब जावेद
थे जाने को जो शिताब इतने
है दर्द भी क्या बे हिसाब इतने
है दर्द के क्या सवाल तेरे
जो तन्हा तन्हा जवाब इतने
अंतिम रचना एक बंद ब्लॉग से
भंग निशा की नीरवता कर ...मधु सिंह
हिमशिखरों में लगी आग है
तन उपवन जल रहा आज है
धू -धू जलती आशाओं की
अपनी व्यथा सुनाऊँ कैसे
आज बस
कल फिर
सादर
व्वाह दिबू व्वाह..
ReplyDeleteबेहतरीन रचनाएं पढ़वाई..
सादर..
वाह बेहतरीन प्रस्तुति
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