सादर अभिनन्दन
जुलाई का चौथा महीना
वो इसलिए कि
कोरोना काल में हर दिन
जुलाई का चौथा महीना
वो इसलिए कि
कोरोना काल में हर दिन
महीने के बराबर गुज़रता है
आज की रचनाएँ ...
आज की रचनाएँ ...
निष्क्रिय तो उसकी कलम हो गयी है
मन भी तो !
कुंद पड़ गयी मन की धार
संवेदनाएं चूक गयीं हृदय की
मृत हुए स्वप्न टूट गए मोती
बिखरे पानी पानी आंसूं
नियति यही कि मृत्यु बने अब
जीवन अपना अपना जीवन !
हसरते जो जीवन की अधूरी रहती है
ढलती उम्र की दिशा में हमें छलती है.
उठो लाल अब आँखें खोलो,
पानी लायी हूँ मुंह धो लो।
बीती रात कमल दल फूले,
उसके ऊपर भँवरे झूले।
चिड़िया चहक उठी पेड़ों पे,
बहने लगी हवा अति सुंदर।
अपनी_चाहत से भी बड़ा है..
कर्त्यव्य, सम्मान, बलिदान..
ईन्सानियत, मानवता ।।
जो हर अर्द्धांगिनी बखूबी निभाता..।
तीन धारियाँ पीठ पर, तेरी चपल निगाह।
मुश्किल होता समझना, तेरे मन की थाह।।
लम्बी तेरी पूंछ है, गिल्लू तेरा नाम।
जीवन बस दो साल का, दिन भर करती काम।।
...
बस
-दिव्या
...
बस
-दिव्या
बेहतरीन चयन
ReplyDeleteआभार
सादर
लाजबाव प्रस्तुति
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति...आभार
ReplyDeleteबहुत खूब..
ReplyDeleteआभार