सादर बरसावन
नया कुछ नहीं
सारा पुराना ही है
भगवान शिव कृपा कर रहे हैं
मानुष के मन से
कोरोना का भय निकाल रहे है
मन मे सोचे थे कि कोरोना पर कोई पोस्ट
नहीं लेंगे पर भयातुर लोगों को कोरोना के
सारा पुराना ही है
भगवान शिव कृपा कर रहे हैं
मानुष के मन से
कोरोना का भय निकाल रहे है
मन मे सोचे थे कि कोरोना पर कोई पोस्ट
नहीं लेंगे पर भयातुर लोगों को कोरोना के
सिवाय़ कोई विषय ही नहीं मिल रहा लिखने को
खैर...चलिए देखें आज क्या है...
खैर...चलिए देखें आज क्या है...
क़लम से काग़ज़ पर उतरने से पहले
कविता लंबा सफ़र तय करती है।
विचारों की गुत्थी पहले सुलझाती
फिर बिताए प्रत्येक लम्हे से मिलती है।
समूचे जीवन को कुछ ही पलों में
खँगालती फ़िर सुकून से हर्षाती है।
एक शख्स सुबह सवेरे उठा साफ़ कपड़े पहने और सत्संग घर की तरफ चल दिया ताकि सतसंग का आनंद मान सके, रास्ते में ठोकर खाकर गिर पड़ा कपड़े कीचड़ से सन गए वापस घर आया कपड़े बदलकर वापस सत्संग घर की तरफ रवाना हुआ फिर ठीक उसी जगह ठोकर खा कर गिर पड़ा और वापस घर आकर कपड़े बदले फिर सत्संग घर की तरफ रवाना हो गया जब तीसरी बार उस जगह पर पहुंचा तो क्या देखता है की एक शख्स चिराग हाथ में लिए खड़ा है और उसे अपने पीछे पीछे चलने को कह रहा है
बारिश की बूंदों ने
सहला दिया,प्यासी धरती के
तन को,नम होकर,
बूंदे जब समा गई,
धरती के आगोश में,
अंकुरो की कुलबुलाहट से,
माटी हुवी बैचेन,
फाड़ धरती का सीना,
वो नन्हा अंकुर,
निकल आया बाहर,
आओ बारिश में थोड़ी सी शरारत करें
छप छप करते हुए कुछ दूर तक चलें
वो देखो चिड़िया कैसे दुपक के बैठी है
बस ऐसे ही हम तुम भी संग संग चलें
जल ही लहर लहर से सागर
जल ही बूंद भरा जल गागर,
फेन बना कभी हिम् चट्टान
वाष्प बना फिर उड़ा गगन पर !
शिव से रति है काँप रही ,काँपे देव अनंग
जप तप और पुरुषार्थ कर, शिव का कर ले संग
शिव के चरणों भू मण्डल शीश पर नील गगन
बादल से है गरज रही शिव जी की गर्जन
..
बस
सादर
..
बस
सादर
बारिश भी शरारत करने से बाज नहीं आ रही है
ReplyDeleteकहीं बरसती है कहीं बूँदें छिड़क कर निकल जाती है
बहुत अच्छी प्रस्तुति
बेहतरीन प्रस्तुति.मेरी रचना को स्थान देने हेतु सादर आभार आदरणीय दीदी.
ReplyDeleteसादर
बहुत रोचक अंदाज .... पठनीय रचनाओं के सूत्र देती हलचल, आभार मुझे भी शामिल करने हेतु यशोदा जी !
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