Wednesday, July 8, 2020

409 बदली छवि, तुम न बदले, तुम ही भाए

सादर अभिवादन
जुलाई भी सरक रहा है धामे-धीमे..
कोलाहल तो है
शिवनाम का
महाकाल जो ठहरे
उम्मीद सभी को है कि
वे बेड़ापार लगाएँगे...
आज की रचनाएँ कुछ यूँ है....

विमल गंगा बन बहा है 
ज्ञान गीता का कहा है, 
धर्म तुझसे पल रहा है 
सत्य का यह ध्वज बताये !


चांद की तरह वो अक्सर, बदल जाते हैं। 
मतलब अली काम होते निकल जाते हैं॥ 

स्वाद रिश्तों का कडवा, कहीं हो जाय ना 
छोटे मोटे से कंकड, यूं ही निगल जाते है 

खेतों में या तो
बारिश का पानी
इकट्ठा ही नहीं होना चाहिए
या फ़िर कभी-कभी
खिड़की से खेतों की ओर नहीं देखना चाहिए।


बाली उमरिया देखिए, लगा इश्क़ का रोग
साथ चाहिए छोकरी,नहीं नौकरी योग ।।

रखते खाली जेब हैं,कैसे दें उपहार।
प्रेम दिवस भी आ गया,चढ़ता तेज बुखार।।


धुंधले हुए, स्वप्न बहुतेरे,
धुधलाए,
नयनों के घेरे,
बदला-बदला, हर मौसम,
जागा इक, चेतन मन!
मौन अपनापन,
वो ही,
सपनों के घेरे!


थकान के साथ
शिथिलता का होना  
अनिवार्य है ,
शिथिलता के साथ
पलकों का मुँदना भी
तय है और
पलकों के मुँद जाने पर
तंद्रा का छा जाना भी
नियत है !

प्रलय का आरंभ ....अनुराधा चौहान

क्षण भर में ही काट दिया 
वृक्ष खड़ा था एक हरा
सीमेंटी ढांचा गढ़ने के लिए
ये कैसा क्रूर प्रहार किया

क्यों अनदेखी कर रहा मानव
प्रलय के आरंभ को
हरित धरा को वंश मिटाकर
जीवन में घोल रहा विष को


....
आज बस
कल फिर
सादर


5 comments:

  1. बहुत बढ़िया रचना
    बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ

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  2. https://kavitakidooniya.blogspot.com/2020/07/blog-post_8.html
    नई सुबह की नई किरण में, वह संदेशा लाता है।
    जागो प्यारे आँखें खोलो,मुर्गा बाँग लगाता है।
    पढिये मजेदार रचना ।

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  3. श्रावण के महीने में शिव का आराधन करने से सारी नकारात्मकता दूर हो जाती है और समृद्धि प्राप्त होती है। सो सचमुच महाकाल ही पार लगाएंगे, सुंदर रचनाओं से सजा है आज का सांध्य दैनिक मुखरित मौन !आभार !

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  4. बहुत सुंदर संकलन, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया।

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  5. बेहतरीन संकलन ,हार्दिक आभार

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