नमस्कार...
आज हमारी बारी
लिखा - पढ़ी बाद में
आज की पसंदीदा रचनाएं देखें...
सावन का मृदु हास ...
शाख शाख बंधा हिण्डोला
ऋतु का तन भी खिला खिला
रंग बिरंगी लगे कामिनी
बनी ठनी सी चमक रही
परिहास हास में डोल रही
खुशियाँ आनन दमक रही
डोरी थामें चहक रही है
सारी सखियाँ हाथ मिला।।
शिव जी और उनका व्याघ्रचर्म
भगवान शिव का रूप-स्वरूप जितना आकर्षक है उतना ही रहस्यमय और विचित्र भी है। वे चाहे किसी भी रूप में रहें कुछ चीजें वे सदा धारण किए रहते हैं; जैसे, जटा, भस्म, चंद्र, सर्पमाल, डमरू, त्रिशूल, रुद्राक्ष, तथा व्याघ्रचर्म ! उनका कुछ भी अकारण नहीं है। इन सब वस्तुओं की अपनी-अपनी खासियत और महत्व है। इनमें से व्याघ्रछाल को छोड़ सभी की विशेषताएं तकरीबन सर्वज्ञात हैं ! पर यह व्याघ्रचर्म किसका है और कैसे प्राप्त हुआ यह कुछ अल्पज्ञात है, पर इसका उल्लेख पौराणिक कथाओं में उपलब्ध है..........!
कुछ मुहावरे...
कलाल की दुकान पर पानी पीओ तो शराब का गुमान होता है
फूलों के कारण माला का धागा भी पावन हो जाता है
अच्छा पड़ोसी मूल्यवान वस्तु से कम नहीं होता है
देने वाले का हाथ सदा लेने वाले से ऊँचा रहता है
माटी के लाल ....
सैनिकों की प्रीत को परिमाण में न तोलना
वे प्राणरुपी पुष्प देश को हैं सौंपतें।
स्वप्न नहीं देखतीं उनकी कोमल आँखें
नींद की आहूति जीवन अग्नि में हैं झोंकते।
डिमेंशिया ....
कितनी रातें, गुज़ारी तबसे, निहारता !
घूरती शून्य को, आँखें तुम्हारी, निस्तेज!
बैठा मुँडेर पर मैं, कौए बैठते थे जहाँ,
और उन्हें दौड़ा-दौड़ा कर उड़ता मैं,
कहीं जूठे न कर दे, सूखते गेहूँ,
तुम्हारी छठी मैया के परसाद के!
...
लोग भयातुर हैं, और क्यों न हों
कतिपय नासमझ लोगों के कारण
अगल-बगल के निवासी चिन्तित हैं
कुछ लोग अपने आपको बचाने के लिए
ज़रूरत से ज़ियादा सोंठ-लहसुन का सेवन कर
पेट की बीमारी पालने लगे है
आयुर्वेद शत-प्रतिशत कारगर है
अनुचित देख-रेख में दवा हानि भी पहुंचा भी देती है
कृपया ध्यान रक्खें
और स्वस्थ रहें
सादर
आज हमारी बारी
लिखा - पढ़ी बाद में
आज की पसंदीदा रचनाएं देखें...
सावन का मृदु हास ...
शाख शाख बंधा हिण्डोला
ऋतु का तन भी खिला खिला
रंग बिरंगी लगे कामिनी
बनी ठनी सी चमक रही
परिहास हास में डोल रही
खुशियाँ आनन दमक रही
डोरी थामें चहक रही है
सारी सखियाँ हाथ मिला।।
शिव जी और उनका व्याघ्रचर्म
भगवान शिव का रूप-स्वरूप जितना आकर्षक है उतना ही रहस्यमय और विचित्र भी है। वे चाहे किसी भी रूप में रहें कुछ चीजें वे सदा धारण किए रहते हैं; जैसे, जटा, भस्म, चंद्र, सर्पमाल, डमरू, त्रिशूल, रुद्राक्ष, तथा व्याघ्रचर्म ! उनका कुछ भी अकारण नहीं है। इन सब वस्तुओं की अपनी-अपनी खासियत और महत्व है। इनमें से व्याघ्रछाल को छोड़ सभी की विशेषताएं तकरीबन सर्वज्ञात हैं ! पर यह व्याघ्रचर्म किसका है और कैसे प्राप्त हुआ यह कुछ अल्पज्ञात है, पर इसका उल्लेख पौराणिक कथाओं में उपलब्ध है..........!
कुछ मुहावरे...
कलाल की दुकान पर पानी पीओ तो शराब का गुमान होता है
फूलों के कारण माला का धागा भी पावन हो जाता है
अच्छा पड़ोसी मूल्यवान वस्तु से कम नहीं होता है
देने वाले का हाथ सदा लेने वाले से ऊँचा रहता है
माटी के लाल ....
सैनिकों की प्रीत को परिमाण में न तोलना
वे प्राणरुपी पुष्प देश को हैं सौंपतें।
स्वप्न नहीं देखतीं उनकी कोमल आँखें
नींद की आहूति जीवन अग्नि में हैं झोंकते।
डिमेंशिया ....
कितनी रातें, गुज़ारी तबसे, निहारता !
घूरती शून्य को, आँखें तुम्हारी, निस्तेज!
बैठा मुँडेर पर मैं, कौए बैठते थे जहाँ,
और उन्हें दौड़ा-दौड़ा कर उड़ता मैं,
कहीं जूठे न कर दे, सूखते गेहूँ,
तुम्हारी छठी मैया के परसाद के!
...
लोग भयातुर हैं, और क्यों न हों
कतिपय नासमझ लोगों के कारण
अगल-बगल के निवासी चिन्तित हैं
कुछ लोग अपने आपको बचाने के लिए
ज़रूरत से ज़ियादा सोंठ-लहसुन का सेवन कर
पेट की बीमारी पालने लगे है
आयुर्वेद शत-प्रतिशत कारगर है
अनुचित देख-रेख में दवा हानि भी पहुंचा भी देती है
कृपया ध्यान रक्खें
और स्वस्थ रहें
सादर
अच्छ उपसंहरण..
ReplyDeleteआभार..
सादर..
वाह! सुन्दर प्रस्तुति!!! आभार!!!
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति में मेरी पोस्ट समिल्लित करने हेतु आभार!
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिंक्स,बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति।मेरे सृजन को स्थान देने हेतु सादर आभार आदरणीय सर ।
ReplyDeleteसादर
कमाल की प्रस्तुति
ReplyDeleteआभार जीजू
सादर
सम्मलित कर सम्मान देने हेतु हार्दिक आभार !
ReplyDeleteसभी सुरक्षित रहें, स्वस्थ रहें