सादर नमस्कार
हो गई होली
मार्च भी आज जा रहा है
इक्कीस का चौथाई
आज गुज़र जाएगा
दुनिया के लोग अब भी
न चेते तो, न चेतने वाले भी
गुज़र जाएंगे साथ
अपने यारों को भी ले जाएंगे
अब पिटारें में देखें आज क्या है ...
कभी मेरे लिए
तेरी आँख से
एक कतरा निकले
भीग जाऊँ मैं
घर में भरा सब सरंजाम
भूल गए हम तो व्यायाम
स्विगी जोमैटो खूब मंगाया
दावत में भी माल उड़ाया
चेहरे की तो बढ़ी लुनाई
कटि सम हो गयी कलाई
कुछ भावनाएं हैं कोषस्थ कीट, झूलते
रहते हैं जीर्ण पल्लव के तीर, वो
रेशमी तंतुओं को चीर, एक
दिन उड़ जाएंगे बहुत
दूर, किसी ऐसे
जगह जहाँ
रहती है
अंतहीन नमी, जीवन खोजता है शाखा
शर्बत उत्तम बेल का,ठंडी है तासीर।
औषधि है सौ मर्ज की,हरे मनुज की पीर।।
वृक्ष तुल्य संबल मिला,सदा सजन के साथ।
लता बनी लिपटी रहूँ,ले हाथों में हाथ।।
फैसला तक़दीरों का क्या ये लकीरें करेंगी
ग़र है जज़्बा जीत का मुकाबलों से डरेंगी
भले दूर हो मंज़िल कदम मगर ना रोकना
पूरा करना मकसद बस सफ़र का सोचना
....
आज बस
ध्यान रखें...
कल एक एप्रिल है..
सादर
....
आज बस
ध्यान रखें...
कल एक एप्रिल है..
सादर
उव्वाहहहह..
ReplyDeleteआभार..
बढ़िया रचनाएं
सादर..
भावुक करता एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाओं का संकलन।सादर।
ReplyDeleteबेहतरीन संकलन
ReplyDeleteसभी रचनाएँ अपने आप में अद्वितीय हैं मुग्ध करता हुआ मुखरित मौन , मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार आदरणीय - - नमन सह।
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