सादर अभिवादन
सप्ताहांत शुभ हो
आज की रचनाएँ...
क्या भूलूँ क्या याद करूँ ?
कब कब क्या क्या वादे थे
कुछ पूरे कुछ आधे थे
कैसे उन पर ऐतबार करूँ
क्या भूलूँ क्या याद करूँ ?
आजमाइश तू बहाना है ...
ख्वाबों के ज़रिए यूं तुझ में आना जाना है ....
बादलों में ...
छुप के रहती बूंदे चाहत की ...
बरसे झमझम...
बारिशों में बूंदे राहत की
शक्तिरूपा, शक्ति-पीठ जा बैठे तुम,
त्याग चले, शिव को तुम,
विधि का लेखा, स्व-भस्माहूत हो चले,
शक्ति में, तुम आहूत हो चले!
मान लेने भर से ही तो
दिखते हैं संसार भर को पेड़,
पत्थर, नदी या चाँद-सूरज में भी
उनके भगवान ही।
माना कि .. है अपना अगर
मिलना नहीं नसीब,
तो बस मान लो हम-तुम हैं
पास-पास .. हैं बिलकुल क़रीब।
"स्वतंत्रता सेनानी का वंश हूँ भैया! दादाजी के नाम पर मिलने वाली हर राशि सदा किसी अभावग्रस्त को देता आया हूँ। अपने ऊपर व्यय करने की हिम्मत आज तक नहीं जुटा पाया..."
कलाकार होना भी कहां आसान है
अपनी कला को आकार देना पड़ता है
एक आधार एक रुप एक ढंग से संवारना
पड़ता है गुणों को पहचान कर स्वस्थ
सुन्दर आकर्षक प्रेरक प्रस्तुतियां देनी पड़ती हैं
......
आज बस
कल शायद फिर
सादर
......
आज बस
कल शायद फिर
सादर
हार्दिक आभार मेरी पोस्ट का लिंक चयनित करने के लिए
ReplyDeleteवाह , आज तो बहुत ज्यादा लिंक्स दिख रहे । बस अभी होंकर आते हैं ।
ReplyDeleteछः लिंक ही हैं दीदी
Deleteसादर नमन.
सभी लिंक्स बेहतरीन ।सेनानी का वंश मन को छू गयी ।सारी ही रचनाएँ एक से बढ़ कर एक ।
ReplyDelete