सादर नमस्कार
आज गुरुवार
हम हैं पिटारा लेकर
देखिए क्या है....
हमारे पर्व दिल में रौशनी और रंग भरते हैं
रंगोली की उँगलियों को ये पिचकारी सिखाती है
भरोसा अब भी अपनी देश की सेना पे कायम है
जो सरहद की हिफ़ाज़त और वफ़ादारी सिखाती है
देखे प्रेम के कई रूप
भाँति भाँति के रूप अनूप
कभी भक्ति का भाव उजागर होता
माँ की ममता का बहाव होता
कभी मित्र भाव दिखाई देता
कभी निस्वार्थ प्रेम भाव लहराता
जिस रात की आंखों में, मैं झांक नहीं पाई
उस रात की आंखों का, हर ख़्वाब सितारा था
मर-मर के बिताई है "वर्षा" ने उमर सारी
कहने को हर एक लम्हा, जी-जी के गुज़ारा था
मद धूल में मिल जाएगा- जब ये मौसम जाएगा।
चार दिन की है अकड़- कैसे आनन्दगान गाएगा?
बरसात है- सावन न समझो।
रिमझिम के प्यार- सा, कुछ तो सावन जी ही लें।
प्रेयसी के मनुहार- सा, भिगोएँ- भीग खुद भी लें।
बरसात को सावन ही समझो।
प्रयाग के तटवर्ती प्रदेश में सुदूर तक फैले श्रृंगवेरपुर राज्य के राजा निषादराज हिरण्यधनु के पुत्र
एकलव्य से जुडी घटना को कुछ लोगों ने गलत अर्थों में लिया और
उस बात को बड़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत करके समाज में विभाजन की नींव डाल दी !
जबकि कुछ विद्वानों का मत है कि एकलव्य ने गुरु द्रोण को धर्मसंकट में पड़ा देख,
बिना उनके कहे, खुद ही अपना अंगूठा काट कर उनको अर्पित कर दिया था !
वैसे इस घटना को भी श्री कृष्ण जी की दूरंदेशी का परिणाम माना जाता है
जो आज के हरियाणा की साइबर सिटी गुरुग्राम में हजारों साल पहले घटित हुई थी.......!!
कब बसा, ये शहर,
देख, टूटा ये कल्पनाओं का घर,
टूटा वो पल,
रख कर,
कुछ पाएगा नहीं!
ठहर, ऐ मन, मेरे संग यहीं,
तू यूँ ना भटक, कल्पनाओं में कहीं!
....
बस कल की कल
सादर
बस कल की कल
सादर
आदरणीय दिग्विजय अग्रवाल जी,
ReplyDeleteहमेशा की तरह अच्छे लिंक्स का बेहतरीन संयोजन है.... मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार 🙏
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
मान देने हेतु हार्दिक आभार
ReplyDeleteहार्दिक आभार।सभी लिंक्स बेहतरीन
ReplyDelete