Tuesday, March 9, 2021

654....फिरकनी के पीछे का आदमी

सांध्य अंक में  
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन
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सांध्य दैनिक
मुखरित मौन लाख बार पढा जा चुका है
यह संख्यात्मक गणना आप पाठकों के स्नेह और सहयोग से ही संभव हो पाया है परिवार की ओर से आप सभी का
स्नेहिल आभार।



फिरकनी के पीछे का आदमी

कौन
खोया है
कौन 
खोज रहा है
मैं इतना ही जान पाया 
कि फिरकनी
उस थके आदमी के कांधे पर
झूमने के अभिनय 
की विवशता है।
इतना जान पाया 



फिर सपने संजोए
आसमान को छूने की
फिर संघर्ष किया
बुलंदी तक उड़ने की



कदम दर कदम मैं चली थी सँभलकर ,
मगर मुश्किलों का मुकम्मल पता हूँ ।

ज़रा ध्यान से जो सुनोगे मुझे तुम ,
तुम्हारे ही दिल की तुम्हारी सदा हूँ ।



ऐ जिंदगी 
तू सच में 
बहुत ख़ूबसूरत है…!
फिर भी तू, 
उसके बिना
बिलकुल भी 
अच्छी नहीं लगती…!!



आसमाँ की जगह सागर देखा
सागर की जगह आसमाँ देखा
मैंने तैर कर चांद पर पहुंचना चाहा
और तड़फ ये कि तारों पर ही ठहर गए
तमाम उम्र हक़ीक़त ने परेशान न किया
ख़्वाबों ने लूट लिया
ख़्वाब जो तेरा था ज़िंदगी बन गया
ज़िंदगी जो मेरी थी  ख़्वाब बन गया।

आज बस इतना ही।






9 comments:

  1. एक लाख पदचिह्न..
    शुभकामनाएं..
    शानदार अंक..
    बधाई..

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  2. शुभकामनाएं....। बहुत आभार...। सभी रचनाएं श्रेष्ठ हैं...।

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  3. 101040 पृष्ठ
    शुभकामनाएं
    सादर..

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  4. बेहतरीन संकलन, बहुत धन्यवाद

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  5. सुंदर प्रस्तुति, बधाई !
    हार्दिक आभार !!

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  6. सुन्दर संकलन...बधाई

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  7. बढ़िया अंक...शुभकामनाएँ

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