सादर नमस्कार..
आज हम हैं
पता नहीं क्यों हैं हम..
चलिए पिटारा खोलें
पिटारे से याद आया...
नए-नए चर्चाकार बने थे..
सूझ ही नहीं रहा था कि क्या चुनें
हमने ब्लॉग बुलेटिन का लिंक लिया
नया शीर्षक बनाया कुछ यूँ
बड़ी दीदी के पिटारें से ..
दूसरा लिंक उठाया चर्चामंच का
शीर्षक में लिक्खा कुछ यूँ..
रविकर फैजाबादी के पिटारे से..
दो-एक लिंक और रखकर प्रस्तुति पोस्ट कर दिया
हमारी श्रीमति जी की तबियत हरी हो गई..
आज के अंक में पैंतीस लिंक लगा दिए आप..
पर आज कुछ ऐसा नहीं है..
चलिए चलें..
शुरुआत एक अलक से..
पर इतने दर्द को तो औरतें चाय में ही घोलकर पी जाती हैं।
सीमा ने भी यही सोचा कि शायद कोई झटका आया होगा
और रात के खाने की तैयारी में लग गई।
किचन निपटाकर सोने को आई तो
विवेक को बताया। विवेक ने दर्द की दवा लेकर
आराम करने को कहा।साथ ही ज़्यादा काम करने की बात बोलकर
मीठी डाँट भी लगाई।
अज्ञात से ज्ञात की ओर
वीडियो बनाकर
एक प़़ड़ोसी ने एक लोटा हल्दी वाले दूध के बदले में दिया था।
मेरे इस पड़ोसी से शनि, राहू और केतू एक साथ नाराज हो गए थे
पुरुष बड़ा, नारी छोटी,
बात किसने है फैलायी?
सच सारा खेल पैसे की आजादी का
जिसकी जेब में पैसा उसकी बात में दम
आभार..
ReplyDeleteअलक कुल मिलाकर आठ बार पढ़ चुकी हूँ
पुनः आभार..
सादर..
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteसुन्दर लिंक्स संयोजन । बहुत बहुत आभार आपका मेरे सृजन को
ReplyDeleteसंकलन में सम्मिलित करने हेतु । सादर ।
बहुत सुंदर लिंक्स। मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, दिग्विजय भाई।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिंक समूह।
ReplyDeleteबढ़िया लिंक संयोजन। मुझे भी शामिल करने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार।
ReplyDeleteबढ़िया संकलन . आभार .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति एवं सभी लिंक बेहद उम्दा ...
ReplyDeleteमेरी रचना को यहाँ स्थान देने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार।
शानदार लिंक्स का चयन एवम संयोजन..सादर शुभकामनाएं..
ReplyDeleteप्रभु की कृपा हम सब पर बनी रहे
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