सादर अभिवादन
वकालत किसे कहते हैं
कॉलेज स्टूडेंट ग्रुप ने एक वकील साहब से पूछा ::
"सर 'वकालत' का क्या अर्थ है ?"
वकील साहब ने कहा ::
"इसके लिये एक उदाहरण प्रस्तुत करता हूँ !
"मान लो कि, दो व्यक्ति मेरे पास आते हैं एक बिल्कुल साफ सुथरा और
दूसरा बेहद गंदा होता है। मैं उन दोनों को सलाह देता हूँ कि
वे नहा कर साफ सुथरा हो जाएं।
दूसरा बेहद गंदा होता है। मैं उन दोनों को सलाह देता हूँ कि
वे नहा कर साफ सुथरा हो जाएं।
अब तुम लोग बताओ कि, उनमें से कौन नहाएगा??"
एक स्टूडेंट ने कहा : "जो गंदा है वो नहाएगा।"
वकील ने कहा :
"नहीं, बल्कि साफ व्यक्ति ऐसा करेगा, क्योंकि उसे नहाने की आदत है
जबकि गंदे को सफाई का महत्व मालूम ही नहीं।
जबकि गंदे को सफाई का महत्व मालूम ही नहीं।
वकील:: अब बताओ कौन नहाएगा ??"
दूसरे स्टूडेंट ने कहा : "साफ व्यक्ति।"
वकील ने कहा :
"नहीं, बल्कि गंदा व्यक्ति नहाएगा क्योंकि उसे ही सफाई की जरूरत है।
अब बताओ कौन नहाएगा ??"
दो स्टूडेंट ने कहा : "जो गंदा है वो नहाएगा।"
वकील ने कहा :
"नहीं, बल्कि दोनों नहाएंगे क्योंकि साफ व्यक्ति को नहाने की आदत है
जबकि गंदे को नहाने की जरूरत।
जबकि गंदे को नहाने की जरूरत।
अब बताएं कौन नहाएगा ??"*
अब तीन स्टूडेंट एक साथ बोल पड़े : "जी दोनों नहाएंगे।"
वकील ने कहा :
"गलत, नहीं कोई नहीं नहाएगा, क्योंकि गंदे को नहाने की आदत नहीं
जबकि साफ को नहाने की जरूरत नहीं।
जबकि साफ को नहाने की जरूरत नहीं।
अब बताएं कौन नहाएगा ??"
एक स्टूडेंट विनम्रता पूर्वक बोला:
" सर आप हर बार अलग जवाब देते हैं और हर जवाब सही मालूम पड़ता है।
हमें सही जवाब कैसे मालूम होगा ???"
हमें सही जवाब कैसे मालूम होगा ???"
वकील साहब बोले :
"बस 'वकालत' यही तो है ! महत्वपूर्ण ये नहीं है कि वास्तविकता क्या है।
महत्वपूर्ण ये है कि, आप अपनी बात को सही साबित करने के लिए कितने
संभावित तर्क प्रस्तुत कर सकते है।"
संभावित तर्क प्रस्तुत कर सकते है।"
क्या समझे ! नहीं समझे .....
....
अब रचनाएँ...
मन तोड़ पाई जोड़ , संचित करे जो आज
रोगन शिथिल तन , कुछ भी न सोहती
सेहत अनमोल धन, बूझि अब दुखी मन
मन्दमति जान अपन भाग अब कोसती।
साँवरे से नेत्र उज्ज्वल
गा रहे हैं गीत अनुपम
उन पलक की धुन निराली
नित बजे संगीत अनुपम।।
योग निद्राशील वीणा
लालिमा दे श्वेत अम्बर
कुछ धूमिल से राग छेड़े
यूँ उड़ाकर रेत अम्बर
थम पलक आलाप गुंजित
सरगमों की रीत अनुपम।।
भेड़ों का मालिक अक्सर अपनी भेड़ों को लेकर उस
कसाई के पास जाता जो बकरे काट रहे होते..देखा!
इनका मालिक कितना निर्दयी है!!! घास-फूस के बदले
अपने ही प्यारे-प्यारे पालतू जानवरों को काट कर बेच देता है।
भेड़ें भीतर तक सहम जातीं..आप कितने अच्छे हैं!
हम अभी उन मूर्ख बकरों को अपनी मित्रता सूची से
डिलीट करते हैं जो इस कसाई को ही अपना मालिक समझते हैं।
तुमने मेरी आँखों मे देर तक झाँका,
चुपके से देखते, और छिप जाते शर्म की ओट,
मां की गोद में दुबके हुए तुम!
मेरे चेहरे की लकीरें पढ़ने में व्यस्त थे,
तुम्हारा
फूलों से बतियाना
सफेद फूलों जैसा है।
आओ
फूलों की रंगीन दुनिया में
एक
छत
सफेद फूलों की भी सजाएं...।
चलते-चलते..
वक़्त की हवा ने
यूँ ही छिटका दिए
बीज संवेदनाओं के
स्नेह धारा के अभाव में
अश्रु की नमी से ही
निकल आये अंकुर उनमें ।
नन्हे नन्हे बूटे
रेगिस्तान सी ज़मीं पर
...
आज्ञा चाहती हूँ
सादर..
...
आज्ञा चाहती हूँ
सादर..
सभी रचनाओं का स्वर अलग अलग होते हुए भी दिल के करीब है, वकालत का अर्थ आज मालूम हुआ।
ReplyDeleteमेरी रचना को लिंक करने के लिए सादर आभार
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 💐
ReplyDeleteयशोदा , बहुत सुंदर प्रस्तुति । सफेद फूल मन को मोह गयी ।।सारी ही रचनाएँ भावपूर्ण ।आभार
ReplyDeleteमहत्वपूर्ण ये नहीं है कि वास्तविकता क्या है।
ReplyDeleteमहत्वपूर्ण ये है कि, आप अपनी बात को सही साबित करने के लिए कितने
संभावित तर्क प्रस्तुत कर सकते है।
वाकई बहुत ही सटीक परिभाषा वकालत की...
उम्दा लिंकों से सजी शानदार प्रस्तुति...
मेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदयतल से धन्यवाद आपका।
आभार आपका यशोदा जी....। सभी रचनाएं अच्छी हैं....। सभी को बधाई
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग को शामिल करने के आभार।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचनाएँ 👌
ReplyDeleteसभी को हार्दिक शुभकामनाएं 💐💐💐