आज की शुरुआत
केदारनाथ जी की की रचना से..
फूलों ने
होली
फूलों से खेली
लाल
गुलाबी
पीत-परागी
रंगों की रंगरेली पेली
काम्य कपोली
कुंज किलोली
अंगो की अठखेली ठेली
मत्त्त मतंगी
मोद मृदंगी
प्राकृत कंठ कुलेली रेली
..
अब आगे देखें
आम के बौर पक गए
इमली लगी लटालूम
कोयल का स्वर गा रहा फाग
रसवंती रंगप्रिया के मन में
उमड़ आया अनुराग
सादर वन्दे
अब चलें रचनाओं की ओर ...
समेट कर, सारी व्यग्रता,
भर कर, कोई चुभन,
बह चली थी, शोख चंचल सी, इक पवन,
सिमटता सा सांझ,
डूबता, गगन,
कैसे न होता, एक अजीब सा एहसास,
अधीर सा करता, एक आभाष!
ऋतु आयी लेकर खुशहाली।
चहुँ दिस फैली किंशुक लाली।।
उड़ते रंग हवाओं में जब
झूम उठे फिर डाली डाली।।
तूफानों से क्या घबराना
रैना बीतेगी ये काली ।।
इस ब्लॉग के बारे में
पहली बार आई है
पहली बार आई है
इस ठंडी हवा की छुवन को
मैं तुम संग महसूस करना चाहता हूँ
सिन्दूरी शाम की आहट में
चिड़ियों की चहचहाहट देखनी है
एहसासों की पोटली खोलनी हैं
मैं ही मैं बस सोचता था आज तक,
दूसरे “मैं” से मिला हम हो गई.
फूल, खुशबू, धूप, बारिश, तू-ही-तू,
क्या कहूँ तुझको तू मौसम हो गई.
पर पापा अक़्सर ..
होती है ऊहापोह-सी भी हर बार कि
मेरे रगों तक पहुँचने वाली
ये मखमली गरमाहट उन ऊनी पुरानी
जुराबों या दस्ताने के हैं या फिर
है उष्णता संचित उनमें आपके बदन की।
फटी हुई जीन्स की आलोचना न करें बन्धु,
हो सके तो सही वेशभूषा को सम्मान दें।
कुतियों के भौंकने पर कान बन्धु देते क्यों,
कोयलों के गुणगान वाला आसमान दें।
....
आज बस
कल किसने देखा है
सादर
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आज बस
कल किसने देखा है
सादर
इस ठंडी हवा की छुवन को
ReplyDeleteमैं तुम संग महसूस करना चाहता हूँ
सिन्दूरी शाम की आहट में
चिड़ियों की चहचहाहट देखनी है
एहसासों की पोटली खोलनी हैं
सुन्दर रचना..
आभार..
सादर..
सभी रचनाएं बहुत अच्छी हैं, शानदार अंक है...। बधाई
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार मेरी रचना को शामिल करने के लिए
ReplyDeleteसुंदर अंक। प्रिय प्रीति जी का ब्लॉग जगत में अभिनंदन, 🌹🌹❤❤
ReplyDeleteधन्यवाद मैम
Deleteशुभ संथ्या।।। कई सुंदर रचनाओं से सुसज्जित इस पटल को नमन।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteसभी रचनाएँ एक से बढ़ कर एक ... दास्ताने दस्तानों की बेहद पसंद आई । शुक्रिया इतने खूबसूरत लिंक देने का ।
ReplyDeleteबेहतरीन संकलन
ReplyDeleteमेरी रचना को स्थान दे के लिए आभार
सभी को आने वाले पर्व की शुभकामनाएं
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