सादर अभिवादन
हम देख लिए हैं आज
कोई दिवस-विवश नहीं है
आज सिर्फ और सिर्फ रचनाएँ है
सफलता के लिए
बहुत कुछ
त्यागा जा सकता है
लेकिन सफलता को
किसी के भी लिए
दांव पर
नहीं लगाया जा सकता
क्योंकि
(सफल व्यक्तियों के लिए)
वह सबसे
अधिक मूल्यवान होती है
मेरे बेटों...
जब भी देखा है तुमको किचिन में
बहू या बहन का
हाथ बंटाते ...पलटा चलाते
बर्तन धोते...या बच्चे की नैपी बदलते
मेरा कलेजा फूल सा खिल उठा है
और मस्तक कुछ और ऊँचा हो
आसमान पर टिक गया है !
दृष्टि रेखा के समान्तराल, हर चीज़ है
वेगवान, उद्वेग व उच्छ्वास के
बहुत नीचे बहते हैं कहीं,
अनगिनत ख़ामोश
जलयान, उड़ते
हैं खुले वक्ष
के ऊपर
कुछ
कोरोना
विष पंख
लगाए अभी उड़ानों में,
दो गज दूरी
मंत्र गूँजता
अभी कानों में,
मन के
राम सिया भूले
फुलवारी वाले दिन ।
है जब तक
प्राणों का आकर्षण
भरमाया सा
मद मोह माया से
छला जाता हूँ
मन के मत्सर से
अनियंत्रित हूँ
खेत चटककर दुखड़ा रोते
सूख गया नदिया का जल।
मौन दिखा अम्बर भी बैठा
कौन निकाले इसका हल।
देख बिलखते खण्डित हांडी
भूख पेट की फिर बहकी।
....
आज बस
सादर
....
आज बस
सादर
ReplyDeleteNice post links
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteमेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया।
हार्दिक आभार आपका।बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति।सादर अभिवादन
ReplyDeleteबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति 🙏
ReplyDeleteमेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद यशोदा जी |
ReplyDeleteबढ़िया लिंक संजोए हैं ।
ReplyDeleteसभी रचनाएँ अपने आप में अद्वितीय हैं मुग्ध करता हुआ मुखरित मौन , पंक्तियों को शीर्ष में जीवन देने हेतु असंख्य आभार आदरणीया यशोदा जी।
ReplyDeleteयशोदा जी सभी लिंक बहुत बढ़िया...कुछ देर से आ पाई...क्षमा...मेरी रचना साझा करने का शुक्रिया ।
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