पहली अप्रैल,
हम कोई मूर्खतापूर्ण प्रस्तुति नहीं बनाएंगे
इन पाँच वर्षों में काफी से अधिक पानी
शहर से बह चुका है ...
चलिए नवरात्रि व रामनवमी का स्वागत करें
हम कोई मूर्खतापूर्ण प्रस्तुति नहीं बनाएंगे
इन पाँच वर्षों में काफी से अधिक पानी
शहर से बह चुका है ...
चलिए नवरात्रि व रामनवमी का स्वागत करें
मूर्खस्तु परिहत्र्तव्य: प्रत्यक्षो द्विपद: पशु:।
भिद्यते वाक्यशूलेन अद्वश्यं कण्टकं यथा।।
आचार्य चाणक्य ने कहा है कि कई लोग अपनी बुद्धि का प्रयोग नहीं करते और समय-समय पर मुर्खता पूर्ण कार्य करते रहते हैं। ऐसे पशु के समान माने जाते हैं क्योंकि यह सोचने-समझने की शक्ति का प्रयोग नहीं करते। इसलिए ऐसे लोगों से दूरी बनाकर ही रखनी चाहिए, क्योंकि कभी-कभी वह अपने शब्दों से शूल के समान उसी तरह भेदते-रहते हैं, जैसे अदृश्य कांटा चुभ जाता हो।
मिर्जापुर में एक सन्त पथिक जी आये थे,
जो उनके घर के निकट ही ठहरे थे.
उन्होंने उसकी डायरी में लिखा-
“बने बनाये राजमार्ग छोड़ो,
नयी पगडंडियाँ बनाओ,
यह तरुणाई की विशेषता है."
“सेवा की पूर्णता तथा
दोषों के त्याग की पूर्णता और
निष्काम भाव से
प्रेम की पूर्णता में ही जीवन की पूर्णता है.”
दफ़्न कर सकता हूं सीने में तुम्हारे राज़ को
और तुम चाहो तो अफ़्साना बना सकता हूं मैं
उम्र के तीसरे पड़ाव पर
शिथिल पड़ चुकी देह से सुलगतीं सांसें
उसका बार-बार स्वयं से उलझना
बेचैनियों में लिपटी तलाशती है जीवन
ज्यों राहगीर सफ़र में तलाशता छाँव है।
तुम्हारे अंतरंग, सीने से फिसलता जाए
सभी गेरुआ रंग। उतर गए सभी
लबादे, बिम्ब करता रहा दीर्घ
अट्टहास, बुझ गए सभी
धूप - धूनी, निःशब्द
लौट आए सभी
मंत्रोच्चार,
बजता
रहा
कुछ
शब्द बचा रखे हैं
कविता के लिए
प्रेम के लिए।
कहा जाता है
प्रेम
उम्रदराज़ भाषा में
गहरे तक
उभरता है।
.....
मेरे एक विद्यार्थी ने
सीए फाइनल की परीक्षा पास कर ली है
छः मास पहले दी थी परीक्षा..
सादर
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मेरे एक विद्यार्थी ने
सीए फाइनल की परीक्षा पास कर ली है
छः मास पहले दी थी परीक्षा..
सादर
मैं तो सोची पहेली बुझानें वाला अंक होगा
ReplyDeleteपर यह तो सारगर्भित अंक है
शुभकामनाएं...
सादर..
गहरा अंक...। सभी को खूब बधाई...। आभार दिव्या जी..।
ReplyDeleteपठनीय रचनाओं की खबर देती सुंदर प्रस्तुति, आभार !
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति प्रिय दिव्या जी | एक दिन के लिए मुर्ख बनाना कहाँ बुरा है | सस्नेह शुभकामनाएं|
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