सादर वन्दे
सितम्बर का अंतिम दिन
सच में अच्छा लग रहा है
नवागन्तुक कल आएगा...
चलें रचनाएँ देखें
शुरुआत सदा की तरह
अग्निशिखा से..
आज भी सदियों की तरह
जीने का अधिकार
चाहते हैं लोग,
आज भी
वही
पुराने आईने में रामराज का बिम्ब - -
एक सुकोमल छुअन
अनदेखी अनजानी सी
रूह की गहराइयों में
लगती कुछ पहचानी सी
पिघला रही है वजूद मेरा
हो गयी सरस तरल मैं....
जीवन मे कही मान मिला ,मिला कही अपमान
मन की खुशियां कहा गई ,कहा गई मुस्कान
अपने थे जो चले गये ,कहा है अपनापन
रस जीवन मे नही बचा, खोया है बचपन
अकेले खड़े हो मुझे तुम बुला लो।
मायूस क्यों हो ,जरा मुस्कुरा लो।
रात है काली और अँधेरा घना है,
तम दूर होगा तुम दीपक जला लो।
देखे राग-रंग दुनिया के
मृग मरीचिका ही सब निकले,
निकट जरा जा छूकर देखा
जैसे इंद्रधनुष हो नभ में !
अरमानों की अर्थी को
ख्वाबों की चिता पर सुलाती है,
ज़िन्दगी कुछ नहीं कर पाती
जब मौत बेवक़्त आती है।
....
गिनती-मिनती में आज
एक रचना अधिक हो गई
खैर..
सादर
सभी रचनाएँ सुंदर हैं, मेरी कृति को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार - - नमन सह।
ReplyDeleteशानदार चयन..
ReplyDeleteआभार..
सादर..
सभी रचनाएँ बहुत शानदार। मेरी ग़ज़ल को स्थान देने के लिए विशेष आभार।
ReplyDeleteसुकोमल भावों से सजी सुंदर रचनाओं का चयन, आभार !
ReplyDeleteसुंदर रचनाओं का चयन
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