सादर अभिवादन
वाकई इस बार
शासन सच्चाई के साथ
लॉकडाउन किया है
सड़क पर एक भी कुत्ते नहीं हैं
पूरी ईमानदारी से
लॉकडाउन को फॉलो कर रहे हैं
मुस्तैदी से द्वार के बाहर डटे हुए हैं
चलिए आज की रचनाओं की ओर...
सड़क पर एक भी कुत्ते नहीं हैं
पूरी ईमानदारी से
लॉकडाउन को फॉलो कर रहे हैं
मुस्तैदी से द्वार के बाहर डटे हुए हैं
चलिए आज की रचनाओं की ओर...
“हृदय एक ऐसी मशीन है जो
बिना रुके जीवन भर चलती रहती है,
इसे प्रसन्न रखें,
यह चाहे अपना हो या दूसरों का”.
हृदय प्रसन्न रहे
इसके लिए सबसे जरूरी है कि
हम सहजता में रहें
तुम्हीं गढ़ने वाले, तुम्हीं हो उपासक
और तुम ही हो डूबाने वाले,
समझ के परे है ये
विनिमय का
खेल।
फिर भी मैं हमेशा की तरह दौड़ आती
हूँ, वही शिउली गंध भरे पथ से
तुम्हारे द्वार, तुम्हारे हाथों
ही होता है मेरा समर
क्या वो, महज इक मिथ्या था?
सत्य नहीं, तो वो क्या था?
पूर्णाभाष, इक एहसास देकर वो गुजरा था,
बोए थे उसने, गहरे जीवन का आभाष,
कल्पित सी, उस गहराई में,
कंपित है जीवन मेरा,
ये सच है?
या इक भ्रम में हम हैं!
पटक-पटक कर फोड़ने से नारियल दो-तीन भागों में टूट तो जाता है लेकिन नारीयल के छिलके से नारियल का गूदा अलग करने में अच्छी खासी मेहनत करनी पड़ती है। अमूमन लोग नारियल के छिलके से गूदा, चाकू की सहायता से अलग करते है।
इसी स्टेशन की बेंच पर बैठकर
मैंने बुने थे भविष्य के सपने,
बनाई थीं तमाम योजनाएं,
लिखी थीं दर्जनों कविताएँ,
इसी के कोने पर बैठकर
मैंने पहली बार उसे देखा था.
आज दिव्या नाराज हो जाएगी
उसका पेज खुला था..
हम ओव्हरलुक कर बैठे
कल वो आएगी
सादर..
उसका पेज खुला था..
हम ओव्हरलुक कर बैठे
कल वो आएगी
सादर..
बढ़िया..
ReplyDeleteसादर..
शुभ संध्या
ReplyDeleteसुंदर संकलन। मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, यशोदा दी।
ReplyDeleteरोचक भूमिका और पठनीय रचनाओं का संकलन, आभार मुझे भी शामिल करने हेतु !
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