सादर अभिवादन
महीना सितम्बर विदाई मांग रहा है
नहीं का प्रश्ऩ ही नहीं..जो आया है वो
जाएगा ही ..इस नश्वर संसार में कौन रुक सका है
है न फिलासफर टाईप की बात...
चलिए रचनाओं की ओर
आज की पहली रचना
पहली बार इस ब्लॉग में
धरती नाप ली नापने को
अंतरिक्ष में पड़े आसमान बहुत है
“पंख” थोड़े कमजोर पड़ गए
हौसलों में अब भी उड़ान बहुत है
है श्रेष्ठ पुरुष, धर्म
का एकमात्र
पुरोधा,
समाज केवल है उसका अनुचर, शोषण
का चाबुक है उसके हाथ वो जहाँ
चाहे वहां ले जाएगा हाँक
कर, लेकिन उसी
बिंदू पर है
अंतर्मन से एक
आवाज़ आई
कुछ कहना है...
चुप !!
विवेक ने तुरन्त
कस दी नकेल
और...
दे डाली एक सीख
खारे समंदर के साथ रह लेगी,
दोनों की अलग पहचान होगी,
पर समंदर को यह मंज़ूर नहीं था,
वह आमादा था
कि मीठी नदी भी
अनर्थ को ललकारने से बचना।
हूँ नम्र पर इतना नहीं कि
नरम समझकर
खीरे- ककड़ी की तरह चबा जाओ
पैर के नीचे से ज़मीन खीचनें की
औकात हम रखते हैं।
..
इति शुभम्
कल शायद फिर
सादर
..
इति शुभम्
कल शायद फिर
सादर
आपका हार्दिक आभार, सभी रचनाएँ सुन्दर व अर्थपूर्ण हैं - - नमन सह।
ReplyDeleteबेहतरीन रचनाओं से सजा सुन्दर संकलन । संकलन में मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए आपका हार्दिक आभार ।
ReplyDeleteमेरी इस रचना को अपने इस बेहतरीन संकलन मे स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार |
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति. मेरी कविता शामिल की. आभार.
ReplyDelete