ज़िन्दगी जीनी हैं तो
तकलीफें तो होंगी ही…
वरना
मरने के बाद तो
जलने का भी एहसास नहीं होता !!
सादर वन्दे....
आज की रचनाएँ...
ये बातें .....
बातों की क्या कहिये,बातों से है अनंत-अथाह संसार,
जन्म से मृत्यु तक शब्दों से बंधा है जीने का आधार।
ये बातें तोतली जुबां मा,पा,डा से,शुरू जो होती हैं तो,
बुढ़ापे की बेचैन,अनमनी बुदबुदाहट पे ही,ठहरती हैं।
खिड़की ....
कमरे की बंद खिड़की के पास,
एक चुप
चुपके से खिसक आती है,
सीकचों से झांकती है घूंघट के भीतर का आकाश
उन आँखों का रहस्य - -
उठते भंवर देख उसके चेहरे में
थी इक अजीब सी ख़ुशी,वो
बहुत दिनों के बाद
मुस्कुराया था
आज।
काश मैं दे पाता उसे जलरंगी
पेंसिलों का उपहार, कुछ
कोरे भावनाओं का
संसार,
कैसे बीते दिन....
वो जन्मों की कसमे यादों में आये
रही मन में कसकें न वादे निभाए
कैसे बीते दिन ...................
ढूंढें निगाहें अब भी वो चाहे
वो नज़रों का मिलना कैसे भुलाएं
कैसे बीते दिन .....................
चलते - चलते
उलूक टाईम्स
सब
तेरी तरह के
नहीं होते ‘उलूक’
तुम तो हमेशा ही
बिना सोचे समझे
कुछ भी लिखना
शुरु हो जाते हो
पके पकाये
किसी और
रसोईये की
रसोई का भात
ला ला कर
फैलाते हो
...
बस
सादर
व्वाहहहहह..
ReplyDeleteआभार दिबू..
सादर...
आप का हार्दिक आभार, सुन्दर संकलन और प्रस्तुति।
ReplyDeleteआभार दिव्या जी।
ReplyDelete"सांध्य दैनिक मुखरित मौन में " मेरी कविता " ये बातें " को स्थान देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद दिव्या अग्रवाल जी ! 🙏 😊
ReplyDelete