सादर वन्दे
आज की प्रस्तुति मेरी पसंदीदा रचनाओं के साथ
नेता जी का नौकर चन्दूं,
चला घुमाने टॉमी को।
एक हाथ से पकड़ रखा था,
उजली बिल्ली रौमी को।
शैल चतुर्वेदी..... एक आल इन वन कवि
और जो व्यंग्य स्वयं ही अन्धा,
लूला और लंगड़ा हो
तीर नहीं बन सकता
आज का व्यंग्यकार भले ही
"शैल चतुर्वेदी" हो जाए
'कबीर' नहीं बन सकता।
"शराब"किसी ने इसकी बड़ी सही व्याख्या की है
श -शतप्रतिषत
रा -राक्षसों जैसा
ब -बना देने वाला पेय
साँप के आलिंगनों में मौन चन्दन तन पड़े हैं
जो समर्पण ही नहीं हैं
वे समर्पण भी हुए हैं
देह सब जूठी पड़ी है
प्राण फिर भी अनछुए हैं
ये विकलता हर अधर ने कंठ के नीचे सँजोई
हास में है और कोई, प्यास में है और कोई..
कोई भी
नहीं चाहिए
प्रश्न अभी
घिरी हुई हूँ
अभी मैं बहुत से
प्रश्नों से घिरी
नहीं न जीना
चाहती मैं......ये
छटपटाती ज़िन्दगी
...
बस
कल की कल
सादर
सुन्दर प्रस्तुति। कुछ चिट्ठों में टिप्पणी नहीं हो पा रही है?
ReplyDeleteसब लिंक सही है
Deleteसादर नमन..
समस्या लिंक की नहीं है। :) चिट्ठे टिप्पणी ले नहीं पा रहे हैं या लेना नहीं चाह रहे हैं या कुछ और है :) :)
Deleteमेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार,सादर नमस्कार दीं
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति ! शुभकामनाएं
ReplyDeleteलाजवाब प्रस्तुति।
ReplyDeleteमैं बस इस पृष्ठ पर ठोकर खाई और कहना है - वाह। वास्तव में साइट अच्छी है और अद्यतित है।
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