Friday, September 11, 2020

475..बहुत कुछ है तेरे पास सिखाने के लिये पुराना पड़ा हुआ

सादर नमस्कार
आज मेरी बारी
आज का पिटारा...

रतजगे सी जिंदगी में
सपनों का आना भी
कम होता है
जब भी आतें हैं
लिपट जाती हूँ
सपनों की छाती से
ओढ़ लेती हूं
आसमानी चादर


पत्थरो को  फेंक कर  तुम  देख लो ।
आब  का  ये कद  बड़ा हो जाएगा ।।

मत निकलिए इस तरह से बेनकाब ।
फिर  चमन में  हादसा  हो  जाएगा ।।

अब अना से बढ़  रहीं  नज़दीकियां ।
रहमतों   से   फ़ासला  हो  जाएगा ।।


समय का स्रोत कहाँ बहता
है समान्तराल कगार
लिए, कभी वक्ष -
स्थल में
उग
आएं मरुभूमि और कभी वो
बहे असीम जलधार लिए,
कभी तुम हो बहोत
क़रीब, दूर हो
के भी,
और कभी लगे तुम जा चुके


सीख क्यों
नहीं लेता
बहुत कुछ है
सीखने के लिये
सीखे सिखाये
से इतर भी
कुछ इधर उधर
का भी सीख
ज्यादा लिखी
लिखाई पर
भरोसा करना
ठीक नहीं होता
...
व्वाहहहहह
लिखा-पढ़ी भी कम
रचनाएँ भी कम
सादर

5 comments:

  1. बहुत शानदार..
    आभार..

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  2. उम्दा लिंक्स चयन.. साधुवाद

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  3. बहुत सुंदर लिंक संयोजन
    सम्मलित रचनाकारों को बधाई
    मुझे सम्मलित करने का आभार
    सादर

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