सादर नमस्कार
कांटा लग गया कल
दर्द तो हुआ..और
दवा भी मिल गई
तत्काल समाप्त हुई पीड़ा..
खैर छोड़िए कांटे को
रचनाओं का पिटारा खोलें..
भारत के वीरो ने ली है, शपथ ...
सीमा पर शत्रु ने फिर से,
बढ़ाई अपनी चाल है,
फन कुचलने को उनकी,
प्रहरीबने हुए ढाल हैं
दुश्मन पड़ा है सकते में,
उल्टी पड़ी उसकी चाल है
हिमालय सिर्फ पर्वत नहीं,
भारत मां की भाल है
चलो बाँध स्वप्नों की गठरी
रात का हम अवसान करें
नन्हें पंख पसार के नभ में
फिर से एक नई उड़ान भरें
बूँद-बूँद को जोड़े बादल
धरा की प्यास बुझाता है
बंजर आस हरी हो जाये
सूखे बिछड़ों में जान भरें
क्षितिज में उभर चले हैं, रंगीन
विप्लवी वर्णमाला, फिर
कोई बढ़ाएगा हाथ,
व्यथित
अहल्या को है युग - युगांतर से
प्रतीक्षा, कोई सुबह तो
ले, पुनः कालजयी
अवतार।
दो पल्ले के किवाड़ में,
एक पल्ले की आड़ में ,
घर की बेटी या नव वधु,
किसी भी आगन्तुक को ,
जो वो पूछता बता देती थीं।
अपना चेहरा व शरीर छिपा लेती थीं।।
डायरी शैली की पुनः वापसी
मेरी उदासी मेरी सासु माँ को
बिलकुल अच्छी नहीं लगती है।
लेकिन आज वे भी मेरी उदासी का कारण
जानकर चिंतित दिखीं।
शायद कल कोई बड़ी चाभी
समय के गुच्छे से निकल सके।
दिल ने जो दिल से ठानी है, वो रार मुबारक
जीते तू ही हर बार ,हमें तो हार मुबारक....
इज़हारे मोहब्बत भी, तक़ाज़ों का सिला है,
वल्लाह ये आशिक़ी की हो, तक़रार मुबारक ....
...
इति शुभम्
सादर
बेहतरीन चयन..
ReplyDeleteआभार..
सादर..
मंत्रमुग्ध करता संकलन, सुन्दर प्रस्तुति, मेरी रचना शामिल करने हेतु हार्दिक आभार - - नमन सह।
ReplyDeleteबढ़िया रचनाओं क संगम
ReplyDeleteसादर..
हार्दिक आभार अशेष शुभकामनाओं के संग
ReplyDeleteसराहनीय प्रस्तुतीकरण