सादर अभिवादन
किसी बच्चे से पूछा..
पढ़ाई कैसे चल रही है
बच्चे नें कहा..
समंदर जितना सिलेबस है
नदी भर पढ़ पाते हैं
बाल्टी जितना याद होता है
गिलास भर लिख पाते हैं
चुल्लू भर नम्बर आता है
अब चलिए रचनाएँ देखें
अब चलिए रचनाएँ देखें
क्यों ढूँढते हो मुझमें
राधा सी परिपक्वता
सीता सा समर्पण
यशोधरा सा धैर्य
मीरा सी लगन
दुर्गा सा पराक्रम
शारदे सा ज्ञान
मर्दानी सी वीरता
मुफ्त में अनुभव जिन्दगी ने दिया नही
पत्थरों की तरह घिस घिस के सिखाया है !!
चेहरी की झुर्रियाँ कहती जिसे दुनिया
जिम्मेदारियों की तपन से तप के पाया है !!
सत्य की यदि चाह है
तो उस आग से गुजरना होगा
जहाँ जल जाता है सारा ज्ञान
उस सागर को पार करना होगा
स्वप्न खो गए जब नींदों से
चढ़ा प्रीत का रंग गुलाल,
दौड़ व्यर्थ की मिटी जगत में
झरा हृदय से विषाद, मलाल !
द्रष्टा बन मन जगत निहारे
बना कृष्ण का योगी,अर्जुन,
कर्ता का जब बोझ उतारा
कृत्य नहीं अब बनते बन्धन !
उनका
धरम ज़िंदा । लेन - देन यूँ ही
बदस्तूर चलेगा, न आदि
न अंत है इस जोड़ -
तोड़ के खेल
का, तुम
गढ़
लो अपना अक्स सुनहरे फ्रेम
में, ये ज़माना है प्रवंचकों
का, तुम्हारा चेहरा
नुमाइशगाह
में भरपूर
चलेगा।
सामान कितना भी समेटू
कुछ ना कुछ छूट जाता है
सब ध्यान से रख लेना
हिदायत पिता की ....
कैसे कहूं सामान तो नही
पर दिल का एक हिस्सा यही छूट जाता है
...
इति शुभम्
कल की कल
कोई टाईम-टेबल नहीं
सादर
इति शुभम्
कल की कल
कोई टाईम-टेबल नहीं
सादर
आपका आभार, नमन सह।
ReplyDeleteवाह यशोदा जी ! बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार प्रिय सखी ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति यशोदा जी,हमारी रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद।
ReplyDeleteसुन्दर लिंक्स
ReplyDeleteरोचक भूमिका, चुल्लू भर नम्बर आने पर अफ़सोस फिर समंदर जैसा ही होता है, इससे तो अच्छा था पहले ही समंदर का पाठ पढ़ लेते, सुंदर रचनाओं का संकलन, आभार मुझे भी हलचल में शामिल करने हेतु !
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