सादर वन्दे..
आप कैसे हैं आज
मैं भली-चंगी हूँ
मौसम और माहोल गंदा है
इसीलिए पूछ बैठी..
आज की पसंदीदा रचनाएँ...
मैं तुम्हें खोजता रहा बाहर,
पर तुम तो अन्दर ही थी,
कभी तुमने आवाज़ नहीं दी,
कभी मैंने अन्दर नहीं झाँका.
दर्पण भी न पढ़ पाया ..उदयवीर सिंह
मुख के रंग -रंगोली को ।
कर जोड़े मुस्कान अधर
मानस की घात ठिठोली को ।
रेशम के वस्त्रों में लिपटा ,
काँटों का उपहार मिला ,
केतकी वन के पार - - शान्तनु सान्याल
अधूरा रहा जीवन वृत्तांत, तक़ाज़े से
कहीं छोटी थी रात, हर चीज़ को
लौटाना नहीं आसान, संग
हो के भी कुछ निःसंग
पल, निबिड़ रात्रि
विवस्त्र
तेरा चेहरा तेरी आँखे, तेरी धड़कन तेरी साँसे।
सताती है मुझे हरपल, तुम्हारे संग की यादें।।
तेरा चेहरा मेरी आँखें, मेरी धड़कन तेरी साँसे।
जगाती है मुझे हरपल, तुम्हारे संग की रातें।।
भूली सी कोई याद
जाने कब से सोयी है
हर दिल की गहराई में
करती है लाख इशारे जिंदगी
किसी तरह वह याद
दिल की सतह पर आये
फरहत शहज़ाद की ग़ज़लें ...अशोक खाचर
साथ जमाना है लेकिन
तनहा तनहा रहता हूँ
धड़कन धड़कन ज़ख़्मी है
फिर भी हसता रहेता हूँ
‘उलूक’ कुछ करना कराना है तो
गिरोह होना ही पड़ेगा
खुद ना कर सको कुछ
कोई गल नहीं
किसी गिरोहबाज को
करने कराने के लिये
कहना कहाना ही पड़ेगा
हो क्यों नहीं लेता है
कुछ दिन के लिये बेशरम
सोच कर अच्छाई
हमाम में
सबके साथ नहाना है
खुले आम कपड़े खोल के
सामने से तो आना ही पड़ेगा
सादर..
खुद ना कर सको कुछ
ReplyDeleteकोई गल नहीं
किसी गिरोहबाज को
करने कराने के लिये
कहना कहाना ही पड़ेगा
ताजा, गरमागरम
मस्त रहिए...
आभार दिव्या जी।
ReplyDeleteउव्वाहहहहहहह
ReplyDeleteबेहतरीन..
आभार..
सुन्दर संकलन. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.
ReplyDeleteतहे दिल से आपका शुक्रिया - - नमन सह।
ReplyDeleteअप्रतिम संकलन
ReplyDelete