कुछ नेकियाँ
और
कुछ अच्छाइयां..
अपने जीवन में ऐसी भी करनी चाहिए,
जिनका ईश्वर के सिवाय..
कोई और गवाह ना हो...!!
रचनाएँ....
मूक दर्शक ..शान्तनु सान्याल
राजधानी से मायानगरी तक देश है
सिमटा हुआ, तुम किस उपांत
से आए हो किसी को कुछ
भी नहीं पता, बस
सिमटे रहो
सोलह
वर्ग
में,
अनुभूति .... ओंकार जी
तुम हैरान रह जाओगे,
वहां तुम्हें जाले मिलेंगे,
गन्दगी मिलेगी,
फैली हुई मिलेगी
सड़ांध हर कोने में.
जीने का बस यही सहारा है ...फिरदौस ख़ान
बन्दगी तुम्हारी है, ज़िक्र भी तुम्हारा है
घर में अर्शे-आज़म से, रहमतें उतर आईं
सरवरे-दो आलम को, मैंने जब पुकारा है
मन्नतों के धागों को बांध के महब्बत से
औलिया की चौखट पर हाथ भी पसारा है
अदृश्य मदद ....रविंद्र "रवी"
बहुत ही कहने पर माँ जी ने पैसे तो रख लिए । पर एक विनती की - ' बेटा, वह मैंने नहीं लिखा है । किसी ने मुझ पर तरस खाकर लिखा होगा । जाते-जाते उसे फाड़कर फेंक देना बेटा ।'मैनें हाँ कहकर टाल तो दिया पर मेरी अंतरात्मा ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि उन 50-60 लोगों से भी "माँ" ने यही कहा होगा । किसी ने भी नहीं फाड़ा जिंदगी मे हम कितने सही और कितने गलत है, ये सिर्फ दो ही शक्स जानते है..
भींग उठते नयन ...उर्मिला सिंह
चहुँओर स्वार्थ की दुस्साहसता देखते तरल नयन
किसे अपना कहें, लोभ से सना सभी अपना पन
मुरझाए दिखते विटप- वृक्ष, उड़ रहे पीले से पात
किसे फुर्सत जो देखे , बिखरते सतरंगी नेह नात!
आज बस
सादर
और
कुछ अच्छाइयां..
अपने जीवन में ऐसी भी करनी चाहिए,
जिनका ईश्वर के सिवाय..
कोई और गवाह ना हो...!!
रचनाएँ....
मूक दर्शक ..शान्तनु सान्याल
राजधानी से मायानगरी तक देश है
सिमटा हुआ, तुम किस उपांत
से आए हो किसी को कुछ
भी नहीं पता, बस
सिमटे रहो
सोलह
वर्ग
में,
अनुभूति .... ओंकार जी
तुम हैरान रह जाओगे,
वहां तुम्हें जाले मिलेंगे,
गन्दगी मिलेगी,
फैली हुई मिलेगी
सड़ांध हर कोने में.
जीने का बस यही सहारा है ...फिरदौस ख़ान
बन्दगी तुम्हारी है, ज़िक्र भी तुम्हारा है
घर में अर्शे-आज़म से, रहमतें उतर आईं
सरवरे-दो आलम को, मैंने जब पुकारा है
मन्नतों के धागों को बांध के महब्बत से
औलिया की चौखट पर हाथ भी पसारा है
अदृश्य मदद ....रविंद्र "रवी"
बहुत ही कहने पर माँ जी ने पैसे तो रख लिए । पर एक विनती की - ' बेटा, वह मैंने नहीं लिखा है । किसी ने मुझ पर तरस खाकर लिखा होगा । जाते-जाते उसे फाड़कर फेंक देना बेटा ।'मैनें हाँ कहकर टाल तो दिया पर मेरी अंतरात्मा ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि उन 50-60 लोगों से भी "माँ" ने यही कहा होगा । किसी ने भी नहीं फाड़ा जिंदगी मे हम कितने सही और कितने गलत है, ये सिर्फ दो ही शक्स जानते है..
भींग उठते नयन ...उर्मिला सिंह
चहुँओर स्वार्थ की दुस्साहसता देखते तरल नयन
किसे अपना कहें, लोभ से सना सभी अपना पन
मुरझाए दिखते विटप- वृक्ष, उड़ रहे पीले से पात
किसे फुर्सत जो देखे , बिखरते सतरंगी नेह नात!
आज बस
सादर
आपका आभार, नमन सह।
ReplyDeleteबढ़िया..
ReplyDeleteश्रेष्ठ चयन..
आभार
सादर..
बढ़िया मंच अच्छी लिंक्स
ReplyDeleteसुन्दर संकलन. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.
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