सादर नमस्कार
आज हमारी बारी
कल इक्कीस तारीख से अट्ठाइस तक
फुल लॉकडाऊन
और होना भी चाहिए..
समझदार लोग चंगे हैं
नासमझ रामभरोसे हैं
चलिए आज का पिटारा देखें..
है बहुत पुरानी बात
अचानक आज याद आई
भूली भटकी यादों को
अब कहाँ समेटा जाए |
मस्तिष्क में अब
रिक्त स्थान नहीं है
इस याद को कहाँ समेटूं
हम नागरिक जो कुछ काम के थे
बेक़ाम होकर -
हमारा पसीना जो त्वचा के गहरे में नमक बन चुका है
इसी कफ़न से पोंछने का अभिनय करेंगे
अभी हमें मात्र चहरे से खुश रहना सिखाया जाए
अभी हम चहरे से और मन से एक हैं
ये आप के लिए खतरा है।
टूटा था मन, खुद से रूठा ये मन,
कैसी कल्पना, कैसा अदृश्य सा बंधन!
जागी प्यास कैसी, अशेष है सावन,
तू हुआ, क्यूँ भाव-प्रवण!
धीर, अपना धर!
स्वप्न, कब बन सका अभिसार...
सटीक शब्द वही बन जाए प्रकृत -
रचनाकार। अंतर्मन छुपाए
बहुआयामी दर्पण, वही
महत, जो कर पाए
आत्म मंथन,
अतल में
है
आज यूं हीं कुछ ..
हमेशा
सच को सच कहा
झूठ को झूठ
रहा जहां भी
पूरा रहा
नहीं होना था जहां
अच्छी
और बुरी
तो सोच होती है
उसी में
कुछ ना कुछ
कहीं ना कहीं
कोई लोच होती है
सब की
समझ में
सब कुछ
अच्छी
तरह आ जाये
ऐसा भी
नहीं होता है
...
बस
सादर
बहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteहार्दिक आभार, इस सुंदर प्रस्तुति व गरिमामयी मंच पर मुझे भी स्थान देने हेतु।
ReplyDeleteसमस्त पाठको का धन्यवाद।
आपका हार्दिक आभार - - नमन सह।
ReplyDeleteआभार दिग्विजय जी।
ReplyDeleteव्वाहहहहह..
ReplyDeleteबेहतरीन चयन
सादर नमन..
अच्छा संकलन। सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteउम्दा संकलन आज का |मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद |
ReplyDeleteबेहतरीन।
ReplyDeleteआभार
लाजबाव प्रस्तुति
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