सादर नमस्ते
आज पधारेंगे पितर
बुधवार शाम अस्त होते ही पितृगण धरती पर आ जाएंगे और 16 दिनों तक पितरों की तिथियों के अनुसार उनको हव्य, कव्य और जल प्रदान करेंगे। गंगा आदि पवित्र नदियों के तटों के अलावा घरों में भी तर्पण दिए जाएंगे।
चलिए उन्हीं पितरों को नमन करते हुए पिटारा खोलें
पितर पाख आज ले सुरू ..जयन्त साहू
छत्तीसगढ़ म तरपन संग
पितर भात म बरा
अउ तरोई के महत्ता
घर के दुवारी म पुरखा मन खातिर
चउक पुर के पान, दतुन, तरोई फूल
अउ काशी माड़े
घरो-घर दिखही।
येहा पुरखा मनला
सुरता करे के परब आए,
जेन मन ए दुनिया म नइये।
स्मृति का पानी ..प्रतिभा कटियार
स्मृतियों की बदलियाँ बरसती हैं
सफेद गुड़हल की पंखुड़ियों पर
मैं पंखुड़ियों से टपकती बूँदें
उतार लेती हूँ हथेलियों पर
देह उतर जाती है स्मृति के समन्दर में
समन्दर में उतर जाता है मीठा ज्वर
बिजली के तार पर बैठा हुआ तनहा पंछी ...कैफ़े आज़मी
शोर यूँ ही न परिंदों* ने मचाया होगा,
कोई जंगल की तरफ़ शहर से आया होगा।
पेड़ के काटने वालों को ये मालूम तो था,
जिस्म जल जाएँगे जब सर पे न साया होगा।
ऊपर वाले की ज़िम्मेदारी ..शान्तनु सान्याल
इतने ख़ेमों में बँटे हुए हैं हम
कि समझ में ही नहीं
आता कौन है
दाहिना
और
कौन है वाम, जिनके हाथों में
हो लाठियां उसी को रहता
है हाँकने का हक़,
और वही
ले
जाता है वधस्थल सरे आम।
नहीं न है पूंछ अब
अब
कटी पूँछ पर कोई
कुछ नहीं कह पाता है
पूँछ
हम हिला लेते हैं
किसी के सामने
जरूरत पड़ने पर कभी तो
किसी को
नजर भी नहीं आता है
इसलिये
अगले की पूँछ पर
अगर
कोई कुछ
कहना चाहता है
.....
बस आज
सादर..
आज पधारेंगे पितर
बुधवार शाम अस्त होते ही पितृगण धरती पर आ जाएंगे और 16 दिनों तक पितरों की तिथियों के अनुसार उनको हव्य, कव्य और जल प्रदान करेंगे। गंगा आदि पवित्र नदियों के तटों के अलावा घरों में भी तर्पण दिए जाएंगे।
चलिए उन्हीं पितरों को नमन करते हुए पिटारा खोलें
पितर पाख आज ले सुरू ..जयन्त साहू
छत्तीसगढ़ म तरपन संग
पितर भात म बरा
अउ तरोई के महत्ता
घर के दुवारी म पुरखा मन खातिर
चउक पुर के पान, दतुन, तरोई फूल
अउ काशी माड़े
घरो-घर दिखही।
येहा पुरखा मनला
सुरता करे के परब आए,
जेन मन ए दुनिया म नइये।
स्मृति का पानी ..प्रतिभा कटियार
स्मृतियों की बदलियाँ बरसती हैं
सफेद गुड़हल की पंखुड़ियों पर
मैं पंखुड़ियों से टपकती बूँदें
उतार लेती हूँ हथेलियों पर
देह उतर जाती है स्मृति के समन्दर में
समन्दर में उतर जाता है मीठा ज्वर
बिजली के तार पर बैठा हुआ तनहा पंछी ...कैफ़े आज़मी
शोर यूँ ही न परिंदों* ने मचाया होगा,
कोई जंगल की तरफ़ शहर से आया होगा।
पेड़ के काटने वालों को ये मालूम तो था,
जिस्म जल जाएँगे जब सर पे न साया होगा।
ऊपर वाले की ज़िम्मेदारी ..शान्तनु सान्याल
इतने ख़ेमों में बँटे हुए हैं हम
कि समझ में ही नहीं
आता कौन है
दाहिना
और
कौन है वाम, जिनके हाथों में
हो लाठियां उसी को रहता
है हाँकने का हक़,
और वही
ले
जाता है वधस्थल सरे आम।
नहीं न है पूंछ अब
अब
कटी पूँछ पर कोई
कुछ नहीं कह पाता है
पूँछ
हम हिला लेते हैं
किसी के सामने
जरूरत पड़ने पर कभी तो
किसी को
नजर भी नहीं आता है
इसलिये
अगले की पूँछ पर
अगर
कोई कुछ
कहना चाहता है
.....
बस आज
सादर..
आभार दिग्विजय जी।
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुतीकरण उम्दा लिंक संकलन...
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई सभी रचनाकारों
को. ......
असंख्य धन्यवाद, शानदार संकलन व प्रस्तुति, नमन सह।
ReplyDeleteवाह बहुत ही सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत बहुत सफल प्रस्तुति |
ReplyDeleteअति ऊत्तम प्रस्तुति
ReplyDeleteस्थान देने के लिये आपका कोटि-कोटि आभार आदरणीय सर, सादर प्रणाम।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर प्रस्तुति...