Monday, August 31, 2020

463., यूँ ही कुछ भी आसपास अपने आप लाजवाब लिख लिया जाता है


सादर नमस्कार

मेरी अंतिम प्रस्तुति
इस माह की
माहौल ठीक-ठाक ही रहा इस माह
स्याने लोग समझ गए
अब इसी तरह जीना है...
...
आज की पसंदीदा रचनाएँ.....



शैशव नहीं जानता दुनियादारी 
वह बेबात ही मुस्कुराता है 
पालने में पड़े-पड़े.. 
और भूखा हो जब पेट तो 
जमीन आसमान एक कर देता है !


शांतनु सान्याल
उस हाईवे के किसी एक कच्चे मोड़
से बिछुड़ जाती है ज़िन्दगी,
कीचड़ भरे रास्तों से
हो कर हम वहां
तक पहुँचे
भी
अगर, रोक लेती है बिन पुलिया की
नदी। फाइलों में कहीं गुम है
इस गाँव का नाम यूँ
कह लीजिये
उसका
कोई
अस्तित्व ही नहीं, कालापानी की
सज़ा है यहाँ ज़िन्दगी,

चिराग तूफ़ानों में जला सको 
तो राहों पे आगे बढ़ो
बचाना है गर गद्दारों से,
तूफ़ान में पतवार से निकलो! 


तू ऐसा कर !
ख़्वाब में आ के मिल...
याद करके 
सो गई हूँ मैं तुझे
रोज़ की तरह ही!!!


खाली स्क्रीन तकते रहना
उस पर गुज़रते लफ़्ज़ों
और एक जैसे चेहरों को
पारदर्शी होते देखना

"रीडिंग बिटवीन द लाइन्स" का हुनर
अब काम आ रहा है
डिस्कोर्स की परख होना
वरदान भी है अभिशाप भी


वो मज़दूर सब आलिशान आशियाने की 
छत मरम्मत कर आया 
पर अपने घर की छत से टपकते पानी ने 
उसे समझाया 
मौसम बदलने का इंतज़ार 
किया जा सकता है 


लिखने लिखाने पढ़ने पढा‌ने का भी संविधान है ‘उलूक’

पता नहीं किसलिये
तुझे सीमायें तोड़ने में मजा आता है

कोशिश तो कर किसी दिन
दिमाग आँख नाक मुँह बंद करना
और फिर
बिना सोचे समझे कुछ लिखने का
...
अब मिलेंगे जरूर
पर अगले माह
सादर


6 comments:

  1. बहुत ही बढ़िया..
    आभार..
    सादर..

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  2. बहुत बढियां रचना प्रस्तुति

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  3. सुन्दर प्रस्तुति मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में स्थान देने के लिए तहेदिल से शुक्रिया आप का ।

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  4. Thanks For Sharing The Amazing content. I Will also share with my
    friends. Great Content thanks a lot.
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  5. मेरी रचना को सम्मिलित करने हेतु आभार - - सुन्दर संकलन और प्रस्तुति।

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