एक दिन का रतजगा
कई दिन के लिए अस्वस्थ कर देता है
ऐसा ही कुछ हुआ देवी जी के साथ
खैर..स्वस्थ हो जाएगा शरीर थका हुआ
आज मेरी पसंदीदा रचनाएँ..
ऐसा ही कुछ हुआ देवी जी के साथ
खैर..स्वस्थ हो जाएगा शरीर थका हुआ
आज मेरी पसंदीदा रचनाएँ..
हम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाएंगे,
कनक-तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाएंगे।
हम बहता जल पीनेवाले
मर जाएंगे भूखे-प्यासे,
कहीं भली है कटुक निबोरी
कनक-कटोरी की मैदा से,
आज भी
बर्बर
से कम नहीं, हम आज भी
हैं अपने ही देश में एक
ख़ानाबदोश, वो
आज भी
किसी
विषाक्त तरुवर से कम -
नहीं, वही अंतहीन,
बेरंग है हमारी
ज़िन्दगी
का
सफ़र, हम जहाँ थे वहीं ..
मेरे लिए मन में प्यार पालकर देखो,
एक नजर मुझपर डालकर दैखो।
माना कि मैं कोई हूर की परी ना हूँ,
तुम अपने रूप को खंगालकर देखो।
किसी बहकावे में कतराओ ना मुझसे,
अपने दिल में मुझे संभालकर देखो।
राह निहारे एक चकोरी
कब अवसान दिवस का होगा
बस देखना प्रारब्ध ही था
सदा विरह उसने है भोगा
पलक पटल पर घूम रहा है
एक स्वप्न आधा नित रोता।।
समय बदलता कैसी चालें
देख हृदय से पीर झरे।
खोल रही हूँ याद पोटली
नयन नीर की धार गिरे।
मुझे अच्छा लगता है अपना नाम,
जब पुकारता है अपना कोई,
अक्षर-अक्षर में भरकर
ढेर-सारा प्यार,
भीगी हवाओं की तरह
मेरे कानों तक पहुँचता है मेरा नाम,
ख़ुशी भर देता है मेरे रोम-रोम में.
चलते-चलते एक और
उलूक की पुरानी कतरन
उलूक की पुरानी कतरन
जो लिखता है
उसे पता होता है
वो क्या लिखता है
किस लिये लिखता है
किस पर लिखता है
क्यों लिखता है
जो पढ़ता है
उसे पता होता है
वो क्या पढ़ता है
किसका पढ़ता है
क्यों पढ़ता है
लिखे को पढ़ कर
उस पर कुछ
कहने वाले को
पता होता है
उसे क्या
कहना होता है
...
इति शुभम
सादर
इति शुभम
सादर
रतजगा हो जाता है। उसे भूल जाना बेहतर होता है। हो गया याद रखना ठीक नहीं। फ़िर आ जायेगी निंदिया रानी :)
ReplyDeleteआभार दिग्विजय जी।
बेहतरीन प्रस्तुति।सभी रचनाएँ सुंदर।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।
ReplyDeleteदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह। सभी कृतियाँ अनुपम, प्रस्तुति बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.
ReplyDeleteशानदार लिंक चयन
ReplyDeleteमेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
सभी रचनाकारों को बधाई।