वबा फैली हुई है हर तरफ,
अभी माहौल मर जाने का नई.
मशहूर शायर और दिग्गज गीतकार राहत इंदौरी ने इस दुनिया
को अलविदा कह दिया है, उनका इंतकाल दिल का दौरा पड़ने
से हुआ है। कोरोना वायरस से संक्रमित होने की वजह से
वह अस्पताल में भर्ती थे, 70 साल की उम्र में 11 अगस्त
को राहत इंदौरी ने आखिरी सांस ली। राहत इंदौरी जितने
उम्दा शायर थे उतने की शानदार गीतकार भी थे। उन्होंने
हिंदी सिनेमा के लिए कई शानदार गाने लिखे थे।
राहत इंदौरी के इंतकाल पर सादर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।
इंदौरी साहेब का जन्म मध्य प्रदेश के इंदौर में
एक जनवरी 1950 को हुआ था। शायरी की दुनिया में
कदम रखने से पहले, वह एक चित्रकार और उर्दू के प्रोफेसर थे।
उन्होंने हिन्दी फिल्मों के लिये गीत भी लिखे थे और
दुनिया भर के मंचों पर काव्य पाठ किया था। इन्होंने करीब
एक दर्जन किताबें लिखीं और हाल ही में इनकी बायोग्राफी
भी रिलीज़ हुई थी. इनमें एक बात थी जो दूसरों से कुछ
अलग और ऊपर थी. मौजूदा राजनीतिक-सामाजिक
माहौल में वे बहुत बेधड़क और बेलौस अंदाज़ में
अपनी बात कहते थे.
एक दी हुई विधा की बंदिश का सम्मान करते हुए,
उसमें अपना रंग जोड़ते हुए जो शायर अपनी बात कहता है,
वह बड़ा होता है।
उनके जाने के बाद यह शेर बहुत शिद्दत से याद आया-
'मैं जब मर जाऊं, मेरी अलग पहचान लिख देना,
लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना.'
हुए आइए हम आपको उनके कुछ खूबसूरत
गज़लों से रूबरू करवाते हैं।
(1)
अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी हैये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है
लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द में
यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है
मैं जानता हूँ के दुश्मन भी कम नहीं लेकिनहमारी तरहा हथेली पे जान थोड़ी है
हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त हैहमारे मुँह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है
जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगेकिराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है
सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी मेंकिसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है
(2)
हरेक चहरे को ज़ख़्मों का आइना न कहोये ज़िंदगी तो है रहमत इसे सज़ा न कहो
न जाने कौन सी मजबूरियों का क़ैदी होवो साथ छोड़ गया है तो बेवफ़ा न कहो
तमाम शहर ने नेज़ों पे क्यों उछाला मुझेये इत्तेफ़ाक़ था तुम इसको हादिसा न कहो
ये और बात के दुशमन हुआ है आज मगरवो मेरा दोस्त था कल तक उसे बुरा न कहो
हमारे ऐब हमें ऊँगलियों पे गिनवाओहमारी पीठ के पीछे हमें बुरा न कहो
मैं वाक़यात की ज़ंजीर का नहीं कायलमुझे भी अपने गुनाहो का सिलसिला न कहो
ये शहर वो है जहाँ राक्षस भी हैं राहतहर इक तराशे हुए बुत को देवता न कहो
(3)
दिल बुरी तरह से धड़कता रहावो बराबर मुझे ही तकता रहारोशनी सारी रात कम ना हुईतारा पलकों पे इक चमकता रहाछू गया जब कभी ख़याल तेरादिल मेरा देर तक धड़कता रहाकल तेरा ज़िक्र छिड़ गया घर मेंऔर घर देर तक महकता रहाउसके दिल में तो कोई मैल न थामैं ख़ुदा जाने क्यूँ झिझकता रहामीर को पढ़ते पढ़ते सोया थारात भर नींद में सिसकता रहा
....
ऐसे शायर थे राहत इंदौरी,
सुनिए उनके दमदार शेर
भावभीनी श्रद्धञ्जली
सादर
नमन और श्रद्धांजलि। अदभुत शायर के लिये।
ReplyDeleteसादर श्रद्धांजलि...
ReplyDeleteअश्रुपूरित श्रद्धांजली..
ReplyDeleteनमन!!!
ReplyDeleteनमन और श्रद्धांजलि
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