भारतीय स्वतंत्रता दिवस की
पूर्व संध्या पर
आप सभी का अभिनन्दन
बात का बतंगड़ न बनाते हुए
सीधे चलें रचनाओं की ओर...
पूर्व संध्या पर
आप सभी का अभिनन्दन
बात का बतंगड़ न बनाते हुए
सीधे चलें रचनाओं की ओर...
शाखें कट भी गईं तो ठूंठ से
कोपल निकलते देखा है,
हाँ! अपने देश में दमन-दलदल
से भी संभलते देखा है।
समकोटीय यशस्वी मंदिर
मस्जिद, गिरजा और गुरुद्वारा,
जो अधिकारों संग दायित्व सिखाए
ऐसा हो संविधान हमारा।
शाख़ पर कोई क़हक़हा तो खिले
कैसी चुप सी चमन में तारी है
कल का हर वाक़िआ तुम्हारा था
आज की दास्तां हमारी है
उस व्यवस्था से तुम हो जाओ मुक्त
जो तुम्हारे कंधों पर रख देता है हाथ
जीवन भर साथ निभाने के
उस आश्वासन के साथ
और तोड़ देती हैं एक मजबूत हड्डी
तुम्हारे बाजुओं की
कैसा कोप विधाता का ये
एक हँसे दूजा रोए
कोई सुख की गठरी थामे
कोई अपना सब खोए
आग उदर की रोज जलाए
मिटती कहाँ ये मलिनता
रोटी के टुकड़े को तरसे
कुंठा बन गई हीनता।।
आज जो भी हो रहा है किसी के साथ
इस तरह का बहुत अच्छा जैसा तो नहीं हो रहा है
थोड़ी थोड़ी करती
रोज कुछ करती हमारी तरह करती
तो पकड़ी भी नहीं जाती
शाबाशियाँ भी कई सारी मिलती
जनता रोज का रोज ताली भी साथ में बजाती
सबकी नहीं भी होती
तो भी
दो चार शातिरों की फोटो
खबर के साथ अखबार में
रोज ही किसी कालम में नजर आ ही जाती
...
आज अकस्मात हम हैं
सादर
आज अकस्मात हम हैं
सादर
बढ़िया दिबू
ReplyDeleteआभार
सादर
आभार दिव्याजी।
ReplyDeleteशुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
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