सादर अभिवादन
काफी दिनों के बाद मैं
विदा करने आई हूँ
आठवां माह अगस्त को
कल सम्भवतः मुहर्रम है
छत्तीसगढ़ में ताजिया जुलूस पर
आंशिक पाबंदी
वो आँखें ....साधना वैद
नहीं भूलतीं वो आँखें !
मुझे छेड़तीं, मुझे लुभातीं,
सखियों संग उपहास उड़ातीं,
नटखट, भोली, कमसिन आँखें !
औरतें ...ओंकार जी
कैक्टस जैसी होती हैं औरतें,
तपते रेगिस्तान में
बिना खाद-पानी के
जीवित रहती हैं.
उनके नसीब में नहीं होते
जिन्दगी .....पुरुषोत्तम सिन्हा
कुछ बारिश ही, बरसी थी ज्यादा!
भींगे थे, ऊड़ते सपनों के पर,
ऊँचे से, आसमां पर!
यूँ तो, हर तरफ, फैली थी विरानियाँ!
वियावान डगर, सूना सफर,
धूल से, उड़ते स्वप्न!
व्योम का बोनसाई ....विभा रानी श्रीवास्तव
रुग्ण अवस्था में पड़ा पति अपनी पत्नी की
ओर देखकर रोने लगा, “करमजली!
तू करमजली नहीं.., करमजले वो सारे लोग हैं
जो तुझे इस नाम से बुलाते है..।”
“आप भी तो इसी नाम से...,”
“पति फफक पड़ा.. हाँ! मैं भी.. मुझे क्षमा कर दो!”
“आप मेरे पति हैं.., मैं आपको क्षमा...? क्या अनर्थ करते हैं..,”
“नहीं! सौभाग्यवंती...!”
“मैं सौभाग्यवंती...?" पत्नी को बेहद आश्चर्य हुआ...!
रंग मशाल की तलाश -...शांतनु सान्याल
पुरुष, मेरी
आँखों
में तो राख रंग के सिवा कुछ भी नहीं,
उम्र के उतरन में फिर वही हैं
धूसर ख़्वाब के पैबंद,
अनंत क्षुधित दिनों
के टांके, और
अशेष
जीने की अनबुझ तिश्नगी, पथराई
आँखों में धुंध की तरह तैरती
है ये ज़िन्दगी।
एक भूली -बिसरी याद
समझ ले
अच्छी तरह ‘उलूक’
अपने ही सिर के
बाल नोचता हुआ
खींसें निपोरता हुआ
एक अलबर्ट पिंटो
हो जाता है
और किसी को
पता नहीं होता है
उसको गुस्सा
क्यों आता है ।
.....
आज बस
सादर
काफी दिनों के बाद मैं
विदा करने आई हूँ
आठवां माह अगस्त को
कल सम्भवतः मुहर्रम है
छत्तीसगढ़ में ताजिया जुलूस पर
आंशिक पाबंदी
वो आँखें ....साधना वैद
नहीं भूलतीं वो आँखें !
मुझे छेड़तीं, मुझे लुभातीं,
सखियों संग उपहास उड़ातीं,
नटखट, भोली, कमसिन आँखें !
औरतें ...ओंकार जी
कैक्टस जैसी होती हैं औरतें,
तपते रेगिस्तान में
बिना खाद-पानी के
जीवित रहती हैं.
उनके नसीब में नहीं होते
जिन्दगी .....पुरुषोत्तम सिन्हा
कुछ बारिश ही, बरसी थी ज्यादा!
भींगे थे, ऊड़ते सपनों के पर,
ऊँचे से, आसमां पर!
यूँ तो, हर तरफ, फैली थी विरानियाँ!
वियावान डगर, सूना सफर,
धूल से, उड़ते स्वप्न!
व्योम का बोनसाई ....विभा रानी श्रीवास्तव
रुग्ण अवस्था में पड़ा पति अपनी पत्नी की
ओर देखकर रोने लगा, “करमजली!
तू करमजली नहीं.., करमजले वो सारे लोग हैं
जो तुझे इस नाम से बुलाते है..।”
“आप भी तो इसी नाम से...,”
“पति फफक पड़ा.. हाँ! मैं भी.. मुझे क्षमा कर दो!”
“आप मेरे पति हैं.., मैं आपको क्षमा...? क्या अनर्थ करते हैं..,”
“नहीं! सौभाग्यवंती...!”
“मैं सौभाग्यवंती...?" पत्नी को बेहद आश्चर्य हुआ...!
रंग मशाल की तलाश -...शांतनु सान्याल
पुरुष, मेरी
आँखों
में तो राख रंग के सिवा कुछ भी नहीं,
उम्र के उतरन में फिर वही हैं
धूसर ख़्वाब के पैबंद,
अनंत क्षुधित दिनों
के टांके, और
अशेष
जीने की अनबुझ तिश्नगी, पथराई
आँखों में धुंध की तरह तैरती
है ये ज़िन्दगी।
एक भूली -बिसरी याद
समझ ले
अच्छी तरह ‘उलूक’
अपने ही सिर के
बाल नोचता हुआ
खींसें निपोरता हुआ
एक अलबर्ट पिंटो
हो जाता है
और किसी को
पता नहीं होता है
उसको गुस्सा
क्यों आता है ।
.....
आज बस
सादर
आभार यशोदा जी।
ReplyDeleteसुन्दर संकलन
ReplyDeleteअसंख्य आभार - - नमन सह।
ReplyDeleteवाह अप्रतिम रचना संकलन
ReplyDeleteसुन्दर संकलन. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार
ReplyDeleteसस्नेहाशीष व असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका छोटी बहना
ReplyDeleteसराहनीय प्रस्तुति