Wednesday, August 19, 2020

451 कब छोड़ेगा तू लिखना बकवास छोड़ ही दे ये नादानी है

परसोें भी कहा
कभी असामान्य नही रहा
महीना अगस्त का
इस बार भी सामान्य नहीं है
बाहर चहल-पहल है पर
सूना है घर...
इस महीने कोरोना की कोई
पूछ-परख भी नहीं है
ऐसे में इसे सामान्य कैसे कहें
छोड़िए चलें रचनाओं की ओर.....

प्रति दिन नैवेद्ध चढ़ाया
आरती की दिया लगाया
घंटी बजा कर की आराधाना   
किया नमन ईश्वर को मन से|
पर शायद ही कभी जांचा परखा 
कितनी सच्ची आस्था है मन में
या  मात्र औपचारिकता निभाई है


Sad, Cry, Tear, Facebook, Reaction
मेरे आँसू मेरी बात नहीं सुनते,
मैं बहुत कहता हूँ 
कि पलकों तक मत आना,
अगर आ भी जाओ,
तो बाहर मत निकलना,
पर आँसू कहते हैं,
'सब कुछ तुम पर निर्भर है,


अनिर्वचनीयता
आदर्श कृति में दृष्टि अंतर्मुखी 
जीवन मूल्यों की धनी 
ज़बान पर सुविचार  रखती 
संस्कार महकते देह पर 
अपेक्षा की कसौटी पर सँवरती 
सतकर्म हाथों में पहन  
मृदुल शब्दों का दान करती 


तेरे हज़ारों चेहरों में
एक चेहरा है, मुझ से मिलता है
आँखो का रंग भी एक सा है
आवाज़ का अंग भी मिलता है
सच पूछो तो हम दो जुड़वां हैं
तू शाम मेरी, मैं तेरी सहर


कभी कुछ कहना बाकी है ,
कभी कुछ सुनना बाकी है ।
यूं ही कट गई उम्र सारी ,
न जाने क्या-क्या बाकी है ।।

सब अमन चैन तो है
सुबह के अखबार क्यों नहीं देखता है 
कहाँ भुखमरी है कहाँ गरीबी है कहाँ कोई बैचेन है 
तेरे शहर की हर हो रही गलत बात पर
नजर डालने वाला जरूर कोई चीनी है या पाकिस्तानी  है

काँग्रेस और भाजपा तो आनीजानी है

आज के लिए काफी है
कल शायद फिर
सादर





4 comments:

  1. हरदम सहयोग की आकांक्षी
    सादर

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  2. सभी सूत्र अत्यंत सुन्दर. 'जीवन' को सम्मिलित करने के लिए सादर आभार आदरणीय .

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  3. सुन्दर लिंक्स.मेरी कविता शामिल की.शुक्रिया

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