मुखरित मौन का
चार सौ इकतालिसवाँ क़दम
चल लिया इतना थका नहीं
कोरोना काल में भी...
चलिए अपन भी न रुकें रचनाएँ देखें...
हाइकु ...
रेत की आँधी–
दर्जी हट्टी में खड़े
नंगे पुतले।
बर्फ गलन–
छज्जे नीड़ से उड़े
फाख्ता के बच्चे।
अनु की कुण्डलियाँ ...
थोड़ा सा रुतबा हुआ,झट कॉलर ली तान।
होंठों पे बीड़ी धुआँ,मुँह के भीतर पान।
मुँह के भीतर पान,नशे की यही हकीकत।
बीड़ी का गुणगान,कलेजा रहते फूँकत।
मान अनू यह बात,नशा जो पीछे छोड़ा।
बना वही बलवान,बना मन सच्चा थोड़ा।
उम्मीदों से भरा...
हादसे कई हो जाते हैं फिर भी आँधिंयों से
लड़कर भी वृक्ष नहीं हटते अपनी जड़ों से
कली को देख उम्मीद तो है गुलाब का रंग
खिलकर बदल जाए तो क्या उम्मीद तो है
विध्वंस ...
करो शंखनाद, कर शिव को याद,
सृष्टिकर्ता, दु:खहर्ता से, कर फरियाद,
जटाएं, शिव की हैं बिखरी!
विध्वंस की, है ये घड़ी!
कैसे निजात पाऊँ ....
दुनिया में जीना हुआ मुहाल
अब और कहाँ जाऊं
कहाँ अपना आशियाना बनाऊँ
जिसमें खुशी से रह पाऊँ |
मन का बोझ बढ़ता ही जाता
तनिक भी कम न होता
कैसे इससे निजात पाऊँ
दिल को हल्का कर पाऊँ |
पीरियड्स ....
तभी राहुल की माँ ने उसके पापा का हाथ पकड़कर रोकते हुए
मैम से निवेदन किया कि उन्हें बेटे से अकेले में बात करने की आज्ञा दें।और राहुल को बरामदे में ले गयी।
थोड़ी ही देर में आकर सब से बोली कि "इसने नेहा का बैग नोटबुक लेने के लिए उसी के कहने पर खोला।और उसमें ग्रीन पैकेट देखकर पूछा कि इसमें क्या है?...
मतलब खाने की कौन सी चीज है"।
"इसने लड़कियों को फुसफुसाते सुना कि पीरियड है,
ध्यान रखना! किसी को पता न चले।तो इसने उनसे पूछा कि कौन सा पीरियड? मतलब किस सबजैक्ट का पीरियड"?
"क्योंकि बारह साल का राहुल अभी उस पीरियड्स के बारे में नहीं जानता।
जिसे इसी उम्र में लड़कियाँ जान जाती हैं"।
सच जानकर टीचर का सिर पश्चाताप से झुक गया...।
आज बस
कल की कल
सादर..
चार सौ इकतालिसवाँ क़दम
चल लिया इतना थका नहीं
कोरोना काल में भी...
चलिए अपन भी न रुकें रचनाएँ देखें...
हाइकु ...
रेत की आँधी–
दर्जी हट्टी में खड़े
नंगे पुतले।
बर्फ गलन–
छज्जे नीड़ से उड़े
फाख्ता के बच्चे।
अनु की कुण्डलियाँ ...
थोड़ा सा रुतबा हुआ,झट कॉलर ली तान।
होंठों पे बीड़ी धुआँ,मुँह के भीतर पान।
मुँह के भीतर पान,नशे की यही हकीकत।
बीड़ी का गुणगान,कलेजा रहते फूँकत।
मान अनू यह बात,नशा जो पीछे छोड़ा।
बना वही बलवान,बना मन सच्चा थोड़ा।
उम्मीदों से भरा...
हादसे कई हो जाते हैं फिर भी आँधिंयों से
लड़कर भी वृक्ष नहीं हटते अपनी जड़ों से
कली को देख उम्मीद तो है गुलाब का रंग
खिलकर बदल जाए तो क्या उम्मीद तो है
विध्वंस ...
करो शंखनाद, कर शिव को याद,
सृष्टिकर्ता, दु:खहर्ता से, कर फरियाद,
जटाएं, शिव की हैं बिखरी!
विध्वंस की, है ये घड़ी!
कैसे निजात पाऊँ ....
दुनिया में जीना हुआ मुहाल
अब और कहाँ जाऊं
कहाँ अपना आशियाना बनाऊँ
जिसमें खुशी से रह पाऊँ |
मन का बोझ बढ़ता ही जाता
तनिक भी कम न होता
कैसे इससे निजात पाऊँ
दिल को हल्का कर पाऊँ |
पीरियड्स ....
तभी राहुल की माँ ने उसके पापा का हाथ पकड़कर रोकते हुए
मैम से निवेदन किया कि उन्हें बेटे से अकेले में बात करने की आज्ञा दें।और राहुल को बरामदे में ले गयी।
थोड़ी ही देर में आकर सब से बोली कि "इसने नेहा का बैग नोटबुक लेने के लिए उसी के कहने पर खोला।और उसमें ग्रीन पैकेट देखकर पूछा कि इसमें क्या है?...
मतलब खाने की कौन सी चीज है"।
"इसने लड़कियों को फुसफुसाते सुना कि पीरियड है,
ध्यान रखना! किसी को पता न चले।तो इसने उनसे पूछा कि कौन सा पीरियड? मतलब किस सबजैक्ट का पीरियड"?
"क्योंकि बारह साल का राहुल अभी उस पीरियड्स के बारे में नहीं जानता।
जिसे इसी उम्र में लड़कियाँ जान जाती हैं"।
सच जानकर टीचर का सिर पश्चाताप से झुक गया...।
आज बस
कल की कल
सादर..
बहुत सुंदर संकलन,मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया।
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति उम्दा लिंको के साथ....
ReplyDeleteमेरी रचना को स्थान देने हेतु हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका।
बहुत ही सुन्दर संकलन है और मेरी रचना को यहाँ स्थान देने का बहुत बहुत शुक्रिया.
ReplyDeleteआपका हार्दिक आभार !