Saturday, August 8, 2020

440.. मन पंछी सा उड़ता चला जाये

440 का झटका
लॉकडाउन खुलने के पश्चात
विधायक और मंत्रियों के अनुचर भी
चपेट में..
सड़कों में लोग झांकी नुमा अंदाज में
टहल रहे हैं..यानी शासन की अर्थ-व्यवस्था
को व्यवस्थित कर रहे हैं
खैर चलिए..चलें..

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–स्वर्णिम काल अध्याय है यह 2020
काल का काल है...
कहीं पर किडनी तो
कहीं सारे अंग निकाले जा रहे हैं...

–समय-काल निकल गया..
चाँदी के ईंट नींव निगल गया...



जा के उसके दर पे लौट आते रहे।
हम भी अपना शौक फ़रमाते रहे।।

वो भी हम को दम दिये जाते रहे,
हम भी धोखे उम्र भर खाते रहे।

पत्थरों को जा सुनाया हाले-दिल,
दिल पे हम पत्थर रखे जाते रहे।


प्रेम के भीतर प्रेम को सांस लेने देना
उसे बख्श देना तुम
इतनी सी इल्तिजा है तुमसे. 


मन पंछी सा
उड़ता चला जाये
काबू न आये

चलती है वो
ढोकर सिर पर
घर-कुटुंब


प्रेम वह था जो मैंने 
अभावों में भी है जिया
तुम्हारे छोड़ कर चले जाने के बाद भी 
उपहार में तुम्हारे दिये हुए 
आंसुओं को  
तुम्हारी बदनामी के भय से 
कभी अपनी आंखों से बहने नहीं दिया
...
आज बस
कल फिर
सादर

3 comments:

  1. आभार...
    सटीक प्रस्तुति..
    सादर..

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  2. सस्नेहाशीष व शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका

    सराहनीय प्रस्तुति..
    साधुवाद

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