मना करने के बावज़ूद
सभी आ गए कल रात
रात में मिलकर भोजन तैय्यार कर खाए
रात बारह बजे पानी पीकर सोए
सुबह से लगे हैं पूजा की तैय्यारी में
किसी को भय नहीं
सब निश्चिंत हैं
ऐसी होती है आस्था..
ईश्वर कुशल बनाए रखे..
आज की रचनाएँ...
पारिजात के पुष्प ...आशा सक्सेना
हो तुम खुशबू का खजाना
दिया जो उपहार में
इस प्रकृति नटी ने तुम्हें
सवारने सहेजने के लिए |
दी अपूर्व सुन्दरता हर एक पंखुड़ी में
श्वेत रंग दिया भरपूर
लाल रंग की डंडी ने
अद्भुद निखार लाया है|
सभी आ गए कल रात
रात में मिलकर भोजन तैय्यार कर खाए
रात बारह बजे पानी पीकर सोए
सुबह से लगे हैं पूजा की तैय्यारी में
किसी को भय नहीं
सब निश्चिंत हैं
ऐसी होती है आस्था..
ईश्वर कुशल बनाए रखे..
आज की रचनाएँ...
पारिजात के पुष्प ...आशा सक्सेना
हो तुम खुशबू का खजाना
दिया जो उपहार में
इस प्रकृति नटी ने तुम्हें
सवारने सहेजने के लिए |
दी अपूर्व सुन्दरता हर एक पंखुड़ी में
श्वेत रंग दिया भरपूर
लाल रंग की डंडी ने
अद्भुद निखार लाया है|
धूसर नदी, एकाकी नील कंठ,
और झूलती बरगद की
जटाएं, लौह सेतु
और दूरगामी
रेल, एक
मौन थरथराहट, दूर तक है एक
अजीब सा सन्नाटा, जाना भी
चाहें तो आख़िर कहाँ जाएं ।
नदी अपने सीने में न
जाने कितने राज़
लिए बहती है,
घिर गए बद्रा और फुहार रिमझिमायी हैं,
यार परदेश ने हवाओं संग चिट्ठी भेजवायीं हैं,
बटोही ख़ुद मय सफ़र दम तोड़ दिये
सौ बरस की दूरी तूने क्यो खिंचवाई हैं
शारदा,शंकर-सहोदरि ,
सनातनि,स्वायम्भुवी,
सकल कला विलासिनी ,
मङ्गल सतत सञ्चारती.
ज्ञानदा,प्रज्ञा ,सरस्वति ,
सुमति, वीणा-धारिणी
नादयुत ,सौन्दर्यमयि ,
शुचि वर्ण-वर्ण विहारिणी.
कहाँ-कहाँ से उड़ते चले आ रहे हैं
बैठते चले जा रहे हैं
मन मुंडेर पर!
भीग गया है अंतस का कोना-कोना
ख्वाब को तोड़कर नींद से
मैं अब जागने लगी हूँ
लफ्जों की मुझे अब जरूरत नहीं
चेहरों को जब से मैं पढ़ने लगी हूँ
परवाह नहीं किसी की
अब तो मैं अकेले ही
आगे बढ़ने लगी हूँ
बस इतना ही
सादर
सादर
बेहतरीन
ReplyDeleteआभार
सादर
मौन थरथराहट, दूर तक है एक
ReplyDeleteअजीब सा सन्नाटा, जाना भी
चाहें तो आख़िर कहाँ जाएं ।
नदी अपने सीने में न
जाने कितने राज़
लिए बहती है,
वाह बेहतरीन अभिव्यक्ति।
सभी रचनाये सार्थक हैँ।
मुझे भी स्थान देंने के लिए आभार।
आपका आभार आदरणीय dr.zafar - - नमन सह।
Deleteधन्यवाद मेरी रचना को शामिल करने के लिए |उम्दा लिंक आज की |
ReplyDeleteआपका आभार आदरणीया यशोदा जी - - नमन सह।
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