सादर वन्दे
विदाई अगस्त की
बस कुछ ही दिन में
सारा कुछ यहीं नहीं लिखेंगे
रचनाओं में भी बहुत कुछ है
देखिए....
विदाई अगस्त की
बस कुछ ही दिन में
सारा कुछ यहीं नहीं लिखेंगे
रचनाओं में भी बहुत कुछ है
देखिए....
रहा गर्दिशो में हरदम ,
मेरे जाब का सितारा,
मिले जीवन में गम हीं,
पर हिम्मत नहीं मैं हारा।
रही ईश्वर से मेरी विनती,
देना तुम हीं मुझे सहारा,
भला उससे क्या मैं माँगू,
तड़पाकर जिसने मारा।
छिन्न ह्रदय ले के यथापूर्व रात ढल -
गई, बहुत कुछ कहना था उसे,
ज्योत्स्ना के स्रोत में यूँ
ही अविरल बहना
था उसे, शेष
प्रहर में
फिर मेघ गहराए, फिर एक मुलाक़ात
विफल गई, यथापूर्व रात ढल गई।
यह उन्माद, बहन को अपना भाई एक सहारा है,
यह अलमस्ती, एक बहन ही भाई का ध्रुवतारा है,
पागल घडी, बहन-भाई है, वह आज़ाद तराना है ।
मुसीबतों से, बलिदानों से, पत्थर को समझाना है ।
न जाने क्यूँ जब भी
रात के अंधरे को चीरती
एम्बुलेंस की भागती
हूटर बजाती
आवाज आती है
वह हूटर की नहीं
समय की आवाज होती है
जब बताने पै आ जाता है एक गरीब
तब शर्म आती है आनी भी चाहिये
बहुत लिख लिये गुलाब भी और शराब भी
लिख देने वाला सच
बेशर्मी से जरा सा भी तो
‘उलूक’
कहीं भी
आज तक लिखा ही नहीं।
...
आज बस
सादर
...
आज बस
सादर
बेहतरीन चयन..
ReplyDeleteसादर..
उम्दा लिंक्स
ReplyDeleteआभार दिग्विजय जी।
ReplyDeleteदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
ReplyDeleteउत्कृष्ट लिंको से सजा शानदार मुखरित मौन।
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