नमस्कार..
ग्यारहवां दिन अगस्त का
शान्त सा है..
लोग सीख रहे हैं
विषाणुओं के साथ
दुनिया एक पाठशाला है
सिखाते रहती है...
....
आज की चुनिन्दा रचनाएँ..
ग्यारहवां दिन अगस्त का
शान्त सा है..
लोग सीख रहे हैं
विषाणुओं के साथ
दुनिया एक पाठशाला है
सिखाते रहती है...
....
आज की चुनिन्दा रचनाएँ..
कुल्हड़ वाली चाय यह मन को है ललचाय
दूध मलाई जब डले स्वाद अमृत बन जाए
कुल्हड़ वाली चाय की, सोंधी सोंधी गंध
और इलाइची साथ में,पीने का आनंद
तन कैदी कोई मन कैदी
कुछ धन के पीछे भाग रहे,
तन, मन, धन तो बस साधन हैं
बिरले ही सुन यह जाग रहे !
रोगों का आश्रय बना लिया
तन मंदिर भी बन सकता था,
जो मुरझा जाता इक पल में
मन पंकज बन खिल सकता था !
कहीं उजली, कहीं स्याह अंधेरों की दुनिया ,
कहीं आँचल छोटा, कहीं मुफलिसी की दुनिया।
कहीं दामन में चाँद और सितारे भरे हैं ,
कहीं ज़िन्दगी बदरंग धुँआ-धुआँ ढ़ल रही है ।
कल रात एक नज्म जगा गई थी,
कहती है शायर अब मेरी जानिब नही आते,
वो जो बिछौना पुराना छोड़ गए थे,
अब उसके चिथड़े होने लगे हैं,
खामोश रहो या कुछ बोलो
दिल के सच्चे लगते हो ।।
जैसा भी हो तेरा पहनावा
जैसा भी पहने रहते हो ।।
यह मुरझाया हुआ फूल है,
इसका हृदय दुखाना मत।
स्वयं बिखरनेवाली इसकी,
पँखड़ियाँ बिखराना मत॥
गुज़रो अगर पास से इसके
इसे चोट पहुँचाना मत।
जीवन की अंतिम घड़ियों में,
देखो, इसे रुलाना मत॥
देख धरा का अनुपम हरित श्रृंगार
बार बार मन में उठे एक विचार
वो करू जिसका वर्षों से था इंतजार
कुछ बीज एक गठरी में बांध रख छोड़े
...
भय सा लग रहा है
आज दो रचनाएं अधिक हो गई है
खैर देखा जाएगा
सादर
भय सा लग रहा है
आज दो रचनाएं अधिक हो गई है
खैर देखा जाएगा
सादर
आभार...
ReplyDeleteसादर..
आभार आदरणीय मेरी रचना को शामिल करने के लिए सभी रचनाकारों को शुभकामनाए
ReplyDeleteबेहतरीन लिंक्स
भावपूर्ण रचनाओं का सुंदर गुलदस्ता ! आभार मेरी रचना को स्थान देने के लिए !
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