इस वर्ष दीदी के यहाँ नहीं जा पाऊँगी
दी ने मना किया आने को
समझते हैं हम परिस्थिति को
जीजू कल आए थे अच्छा लगा पर
सामान बरामदे में रख
दी ने मना किया आने को
समझते हैं हम परिस्थिति को
जीजू कल आए थे अच्छा लगा पर
सामान बरामदे में रख
बाहर से ही चले गए
परी से भी नहीं मिले
मौसम का तकाजा है...
चलिए चलें..
प्रभु ! सखा को नातो राखिए .. ..शर्मा मीना
लाल कहूँ, गोपाल कहूँ,
नंदलाल कहूँ, क्या नाम धरूँ
मेरो कोई सखा नहीं प्रभु
सखा को नातो राखिए।
प्यार में प्यार से ,जीवन का आनंद ... श्रीराम रॉय
जब यादों में हम ना आएंगे
ऐसे में बहक हम जाएंगे ।।
बहाना बना कर जब न मिलोगे
इंतजार में दिल को रुलायेंगे।।
तृषा बुझा दो मरुथल की ..अनीता सुधीर
काया निस दिन गणित लगाती
जोड़ घटाने में है उलझी
गुणा भाग से बूझ पहेली
कब हृदय पटल पर है सुलझी
थी मरीचिका मृगतृष्णा की
अब तृषा बुझा दो मरुथल की।।
पन्द्रह नहीं, पाँच अगस्त ... सुबोध सिन्हा
सिर्फ़ तर्क करने वाला दिमाग एक ऐसे चाक़ू की तरह है
जिसमे सिर्फ़ ब्लेड है. यह इसका प्रयोग करने वाले के
हाथ से खून निकाल देता है।
बस एक मुठ्ठी आसमां ...कुसुम कोठारी
आकर हाथों की हद में सितारे छूट जाते हैं
हमेशा ख़्वाब रातों के सुबह में टूट जाते हैं।
मंजर खूब लुभाते हैं, वादियों के मगर,
छूटते पटाखों से भरम बस टूट जाते हैं ।
...
अश्रुपूरित श्रद्धाञ्जली
आज बस
सादर
परी से भी नहीं मिले
मौसम का तकाजा है...
चलिए चलें..
प्रभु ! सखा को नातो राखिए .. ..शर्मा मीना
लाल कहूँ, गोपाल कहूँ,
नंदलाल कहूँ, क्या नाम धरूँ
मेरो कोई सखा नहीं प्रभु
सखा को नातो राखिए।
प्यार में प्यार से ,जीवन का आनंद ... श्रीराम रॉय
जब यादों में हम ना आएंगे
ऐसे में बहक हम जाएंगे ।।
बहाना बना कर जब न मिलोगे
इंतजार में दिल को रुलायेंगे।।
तृषा बुझा दो मरुथल की ..अनीता सुधीर
काया निस दिन गणित लगाती
जोड़ घटाने में है उलझी
गुणा भाग से बूझ पहेली
कब हृदय पटल पर है सुलझी
थी मरीचिका मृगतृष्णा की
अब तृषा बुझा दो मरुथल की।।
पन्द्रह नहीं, पाँच अगस्त ... सुबोध सिन्हा
सिर्फ़ तर्क करने वाला दिमाग एक ऐसे चाक़ू की तरह है
जिसमे सिर्फ़ ब्लेड है. यह इसका प्रयोग करने वाले के
हाथ से खून निकाल देता है।
बस एक मुठ्ठी आसमां ...कुसुम कोठारी
आकर हाथों की हद में सितारे छूट जाते हैं
हमेशा ख़्वाब रातों के सुबह में टूट जाते हैं।
मंजर खूब लुभाते हैं, वादियों के मगर,
छूटते पटाखों से भरम बस टूट जाते हैं ।
...
अश्रुपूरित श्रद्धाञ्जली
आज बस
सादर
व्वाहहहहह
ReplyDeleteशानदार....
सादर
सुन्दर लिंक्स
ReplyDeleteबेहतरीन संकलन
ReplyDeleteमेरी रचना को स्थान देने के लिये आभार
जी ! आभार आपका .. आज की अपनी इंद्रधनुषी प्रस्तुति के साथ इस मंच पर मेरी विचारधारा/रचना को स्थान देने के लिए .. प्रस्तुति के अंत का साझा किया गया गीत अनायास 80-90 के दशक वाले दूरदर्शन की याद ताजा करा गया, पर "अश्रुपूरित श्रद्धाञ्जली" किसके लिए - ये नहीं समझ पाया ?
ReplyDeleteमेरी रचना को पसंद करने के लिए बहुत बहुत आभार दिव्याजी
ReplyDeleteहमे बेहद अफसोस है दिबू
ReplyDeleteपर जल्दबाजी थी
फिर बातें करेगे ढेर सारी
सादर
बहुत खूब प्रिय दिव्या जी!👌👌मीठी सी सी भूमिका और बहुत प्यारी प्रस्तुति!!! 👌👌👌
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार दिव्यता जी इस गुलदस्ते में मेरी रचना को स्थान देने के लिए ।
ReplyDeleteसभी रचनाकारों को बधाई।
सुंदर लिंक चयन ।
सभी रचनाएं बहुत आकर्षक सुंदर।
बधाई
दिव्या जी 🙏
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